रविवार दिल्ली नेटवर्क
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के रिद्धि-सिद्धि भवन में विधि-विधान से हुई देवशास्त्र गुरु पूजा, सोलहकारण पूजन, दशलक्षण पूजन, श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से आदिराज जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से संभव जैन, तृतीय कलश से अमन जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से संस्कार जैन को अभिषेक करने का मिला सौभाग्य, प्रतिष्ठाचार्य बोले, शरीर को तपाकर ही हो सकती है आत्मा की शुद्धि, कल्चरल ईवनिंग में मेडिकल स्टुडेंट्स ने दीं आस्थामय प्रस्तुतियां
सातवें दिन उत्तम तप धर्म पर रिद्धि-सिद्धि भवन में श्रीजी की स्वर्ण झारी से शांतिधारा करने का सौभाग्य कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन को मिला। प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ जैन शास्त्री जी के सानिध्य में देवशास्त्र गुरु पूजा, सोलहकारण पूजन, दशलक्षण पूजन विधि-विधान से हुए। इस मौके पर फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, श्रीमती ऋचा जैन और श्रीमती नंदिनी जैन की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। रजत कलश से शांति धारा करने का सौभाग्य चरित्र सेठी, राजेश सेठी, चाहत जैन, काव्य, आदिश, संभव और सार्थक जैन को मिला। श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से आदिराज जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से संभव जैन, तृतीय कलश से अमन जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से संस्कार जैन को अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। साथ ही अष्ठ प्रातिहार्य का सौभाग्य अष्ठ कन्याओं- स्नेहा जैन, सुविधि, रिया, जूही, रौनक, दिया, कराशंगी, अंशिका, हर्षिका और तृषा जैन ने प्राप्त किया। दूसरी ओर ऑडी में सांस्कृतिक सांझ में भक्तिमय मंगलाचरण गान-पारसनाथ स्त्रोत्र किया गया। मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने जिन धारा नारी शक्ति सशक्तिकरण पर मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसके जरिए पुत्र प्राप्ति के मोह में अंधा होकर गर्भस्थ शिशु को मारने पर करारा कटाक्ष किया गया। मेडिकल कॉलेज के स्टुडेंट्स ने कान्हा सो जा जरा…, ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया अंगना में फिर आजा रे…, है कथा संग्राम की…, रक्त चरित्र…. आदि प्रस्तुतियों के जरिए बताया, गर्भवती महिला अपने प्रिया परिजनों से मिले विश्वास घात के बाद आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी से संन्यासिनी जीवन का व्रत लेती है। मैना सुंदरी की कहानी के जरिए पति की सेवा, सती अंजना की कहानी के जरिए दूसरों की बातों पर विश्वास न करने के संग-संग महावीर भगवान के जैन संघ की पहली और प्रमुख साधवी चंदनबाला की कहानी, दो बहनों-ब्राह्मणी और सुंदरी की कहानी का भी शानदार प्रदर्शन किया। इस मौके पर मेडिकल अंतिम वर्ष के छात्रों को सम्मानित भी किया गया। इससे पूर्व कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. एनके सिंह, प्रो. सीमा अवस्थी आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
प्रतिष्ठाचार्य ने चरण और चरण चिन्ह के बारे में भी बताया। उन्होंने दो भाइयों की कहानी के जरिए शिखरजी तीर्थक्षेत्र दर्शन की महिमा बताई। स्वाहा का अर्थ बताते हुए कहा, प्रतिष्ठा पाठ में बताया है, यह मंगलकारक और आत्म शुद्धि को उदभासित करने वाला है। स्वस्ति का अर्थ है- मेरा कल्याण करो। पंच बीजाक्षर के ॐ जघन्य, मध्यम जैसे तीन शब्दों से मिलकर बना है। भगवान वीतरागी है और हमें वित्तरागी से वीतरागी बनना है। दान कभी भी उधार लेकर नहीं दिया जाता, जितना आपके पास है, उसमें से ही देना उपयुक्त दान है। उत्तम तप धर्म पर बोलते हुए कहा, शरीर को तपाकर ही आत्मा की शुद्धि हो सकती है। बरसात के पानी का उदाहरण देते हुए कहा, साँप के मुँह में यह विष, केले के पत्ते पर यह कपूर बन जाता है, यह सब ग्रहण करने के प्रवृत्ति और तप पर निर्भर करता है। धर्म वाणिज्य है जैसे रूप में पूजेंगे, वैसा हो जाएगा। इस तरह हमारे तप के रूप का निर्धारण होता है। आज एक आसान में बैठकर उत्तम तप के मंत्र का जाप करना है। धर्ममय माहौल में तत्वार्थसूत्र जैसे संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों वाली रचना के सप्तम अध्याय का प्रिंसी जैन ने बड़े ही रोचक और भावपूर्ण तरीके से वाचन किया।
दूसरी ओर उत्तम संयम दिवस के अवसर पर मेडिकल कॉलेज की ओर से आरती की गई। प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री जी ने मानतुंगाचार्य द्वारा रचित श्री भक्तांमर स्त्रोत का पाठ वाचन किया। प्रतिष्ठाचार्य जी ने अपने प्रवचन में कहा, संसार में जितनी भी समस्याएं हैं, वह मनुष्य के मस्तिष्क से जुड़ी हुई हैं। श्वास वायु लेना और छोड़ना मनुष्य जीवन में एक महत्वपूर्ण फर्क लाता है। मानव मस्तिष्क रचनात्मक और विनाशक दोनों है, इसीलिए हमें अपना मस्तिष्क हमेशा सही दिशा में रखने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अपने पांच इंद्रियां मन को वश में रखने का प्रयास करना चाहिए। संयम का अर्थ बताते हुए कहा, बड़ी सावधानी से अपनी इंद्रियों को वश में करना ही संयम है। त्याग करना, इन्द्रियों को वश में करना उत्तम संयम धर्म है। मन को वश में करना संयम है। संयम दो प्रकार के होते हैं, इंद्रिय संयम और प्राणी संयम। पंडित जी ने पृथ्वी और पृथ्वी कायक के बारे में बताया, जल अगर जीव के साथ हो तो वह कायक है और जीव के बिना काय है। मनुष्य का मन बहुत ही चंचल है। मन स्वयं लगता नहीं, हमें लगाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य कहते हैं, वर्धमान बनना है तो वर्तमान में रहना होगा। अगर मनुष्य को जीवन में सफल होना है तो उन्हें अपनी कार्य शैली बदलनी होगी। प्रवचन के बाद जिनवाणी स्तुति और 9 बार ण्मोकार मंत्र का जाप किया।
भोपाल से आई सुनील सरगम एंड पार्टी के ओ वीर प्यारे टीएमयू वाले…, मंत्र णमोकार हमें प्राणों से भी प्यारा…, आये हम प्रभु तेरे दर पर…, तुम तो प्रभु वीतरागी मेरे मन की बेदी पर आप कब पधारोंगे…, आओ प्रभु मेरे मन मंदिर में…, हो मैंने तेरे ही भरोसे…, चरणों मे जाऊंगा मैं…., भक्ति में झुमूंगा मैं…, विषयों का प्यार है त्यजना निज कल्याण करेंगे…, रोम-रोम से निकले प्रभुजी नाम तुम्हारा…, थोड़ा पापों से डर, थोड़ा कर्मों से डर जब मिलेगी सजा तो सुधर जाएगा…, सांवरिया पारसनाथ मुझे भी पार लगा दो…, हो जिनवाणी तेरी ममता में आकर…, हो विद्यासागर जी पधारो मेरी आंगनिया…भजनों से रिद्धि-सिद्धि भवन झूमते हुए पूजा-अर्चना और भक्तिनृत्य में लीन हो गया। इस मौके पर प्रतिदिन बिना रुके मंदिर जाने वाले और जिनालय में अथक सेवा देने वाली फैकल्टीज़- डॉ. रवि जैन, डॉ. अर्चना जैन, श्री आदित्य जैन,श्री वैभव जैन,श्री अतिशय जैन समेत 14 स्टुडेंट्स को भी सम्मानित किया गया। इस दौरान ब्रहमचारिणी कल्पना दीदी, डॉ. विपिन जैन, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. नम्रता जैन, डॉ. विनोद जैन, श्री मनोज जैन, श्री आशीष सिंघई, डॉ आदित्य जैन, डॉ. नीलिमा जैन, डॉ. विनीता जैन, श्रीमती आरती जैन, श्री आदित्य जैन, डॉ. आर्जव जैन, श्री आदित्य विक्रम, श्रीमती विनीता जैन भी उपस्थित रही।