विचार परिवर्तन, अवसरवादिता, मजबूरी या महज़ अफ़वाह ?

तनवीर जाफ़री

ईसाई समुदाय से जुड़े क्रिसमस त्योहार ने इस वर्ष कुछ विशेष सुर्ख़ियां बटोरीं। इसकी दो वजह थीं। एक तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ईसाई समुदाय को संबोधित करते हुये ईसाई समुदाय के साथ ‘अपना आत्मीयता का रिश्ता’ बताना। दूसरे राष्ट्रीय स्वयं संघ द्वारा क्रिसमस के दिन यानी 25 दिसंबर को कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्रिसमस भोज का आयोजन करने की ‘ख़बर का प्रचारित’ होना। ग़ौर तलब है कि गत 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में क्रिसमस के त्योहार पर ईसाई समुदाय को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि ईसाई समुदाय के साथ -‘मेरा बहुत पुराना और आत्मीय नाता रहा है’। उन्होंने कहा कि -‘गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वे ईसाई समुदाय के लोगों व उनके नेताओं से अक्सर मिलते रहते थे’। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि ईसाई समुदाय के साथ उनका बहुत पुराना और क़रीबी रिश्ता है। उन्होंने कहा कि क्रिसमस वह दिन है जब हम यीशु मसीह के जन्म का जश्न मनाते हैं। यह ईसा मसीह के जीवन संदेशों और मूल्यों को याद करने का भी एक पावन अवसर है’। इसी दौरान यह ख़बर भी देश के कई प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्रिसमस भोज का आयोजन करने जा रहा है। यह पहली बार था जब भाजपा सरकार के केंद्रीय सत्ता में रहते हुये इस तरह के आयोजन की ख़बरें प्रचारित हो रही थीं। इन्हीं ख़बरों में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय राज्यमंत्री जॉन बारला द्वारा मेघालय हाउस में कथित तौर पर क्रिसमस भोज की मेज़बानी करने,राष्ट्रीय ईसाई मंच की ओर से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के चर्च प्रमुखों को आमंत्रित करने तथा संघ के कई प्रमुख नेताओं के इस आयोजन में शामिल होने की बातें विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुईं।

इन ख़बरों पर लोगों की ख़ास तवज्जोह की वजह यह भी थी कि पिछले कुछ महीनों से देश का मणिपुर राज्य ईसाई विरोधी हिंसा से जूझ रहा है। ख़बरों के अनुसार मणिपुर में ईसाईयों के दर्जनों चर्च भी जला दिये गये हैं। पिछले कुछ समय से देश के और भी कई इलाक़ों से पादरियों, चर्चों और ईसाइयों के कुछ संस्थानों पर हमले की घटनाएँ सामने आई हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का ईसाई प्रेम दर्शाने और संघ द्वारा क्रिसमस भोज दिये जाने की ‘ख़बर’ के प्रचारित व प्रकाशित होने पर आम लोगों का नज़र रखना भी स्वभाविक ही था। दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक व पूर्व सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ़ गुरूजी ने 1966 में प्रकाशित अपनी एक पुस्तक ‘बंच ऑफ़ थॉट्स ‘ में ऐसी कई विवादित बातें लिखी हैं जिनसे शायद संघ अब स्वयं को असहज महसूस कर रहा है और इनसे पीछा छुड़ाना चाहता है। ग़ौरतलब है कि 1940 से लेकर लगातार 33 वर्षों (अपनी मृत्यु ) तक संघ प्रमुख रहे माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ़ गुरूजी ने अपनी पुस्तक ‘बंच ऑफ़ थॉट्स ‘ में लिखा है कि ‘उन्हें नाज़ी जर्मनी से प्रेरणा मिली है’। उन्होंने भारतीय ईसाइयों को ब्लडसकर या ख़ून चूसने वाला बताया और मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को देश के लिए आंतरिक ख़तरा क़रार दिया है।” इसी पुस्तक के दूसरे भाग में ‘राष्ट्र और उसकी समस्याएँ’ नाम का चैप्टर है। इसमें ‘आंतरिक ख़तरे’. नामक शीर्षक के अध्याय में मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट नामक उपशीर्षक हैं जिनमें विस्तृत तौर पर यह बताया गया है कि किस प्रकार यही तीन समुदाय भारत के लिए ख़तरा पैदा करते हैं।

परन्तु ऐसा लगता है कि 2014 में संघ संरक्षित भारतीय जनता पार्टी की सरकार के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद संघ, भाजपा व इससे जुड़े कई प्रमुख नेता ‘बंच ऑफ़ थॉट्स ‘ में प्रकाशित ‘गुरु जी ‘ के इन विवादित बयानों से अब अपना पीछा छुड़ाना चाह रहे हैं । उदाहरण के तौर पर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कई वर्ष पूर्व बी बी सी को एक साक्षात्कार दिया। साक्षात्कार लेने वाले थे बी बी सी के वरिष्ठ पत्रकार राजेश जोशी। जोशी ने जब राजनाथ सिंह से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक व पूर्व सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के उन विवादित विचारों के बारे में जानना चाहा जो उन्होंने अपनी पुस्तक ‘बंच ऑफ़ थॉट्स ‘ में व्यक्त किये हैं। और जिसमें उन्होंने ईसाई,मुस्लिम व कम्मुनिस्ट को देश के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में रेखांकित किया है। इस प्रश्न के उत्तर में राजनाथ सिंह ने बड़े ही आश्चर्यजनक रूप से गुरूजी के ऐसे किसी ‘विचार ‘ के प्रति पूरी तरह अपनी अनभिज्ञता जताई। इसी तरह दिसंबर 2015 में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन महासचिव व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता राम माधव ने अल-जज़ीरा टेलीविज़न चैनल को दर्शकों से भरे हुए एक हॉल में एक इंटरव्यू दिया। इसमें जब राम माधव से पूछा गया कि ‘क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को भारत के लिए आंतरिक ख़तरा मानते थे? क्या गोलवलकर ईसाइयों को ख़ून चूसने वाला मानते थे? इस सवाल के जवाब में राम माधव ने भी इस बात का खंडन किया। बावजूद इसके कि इस पुस्तक के अब तक अनेक एडिशन प्रकाशित हो चुके हैं उसके बावजूद राम माधव जैसे संघ के रणनीतिकार व पूर्व प्रवक्ता जब साफ़ तौर पर ‘गुरूजी ‘ के इन विचारों से पूरी तरह पल्ला झाड़ने लग जायें इसका आख़िर क्या अर्थ निकाला जाना चाहिये ? इसी साक्षात्कार में अलजज़ीरा पत्रकार ने राम माधव से यह भी पूछा था कि -“संघ के पूर्व प्रमुख गोलवलकर को आप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना प्रेरणा स्रोत बताया है। लेकिन गोलवलकर कहते हैं कि ‘उन्हें नाज़ी जर्मनी से प्रेरणा मिली है, साथ ही उन्होंने भारतीय ईसाइयों को ब्लडसकर या ख़ून चूसने वाला बताया और मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को देश के लिए आंतरिक ख़तरा क़रार दिया है ?” इस पर राम माधव यह कहकर लीपापोती करने लगे कि आपने उन्हें ‘मिसकोट ‘ किया’। जबकि यह पुस्तक दस्तावेज़ी शक्ल में हर जगह उपलब्ध है।

रहा सवाल बीते दिनों कश्मीर से केरल तक संघ द्वारा क्रिसमस पार्टी के आयोजन से जुड़ी ख़बरों का,तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह मनमोहन वैद्य द्वारा तो इस तरह के किसी भी आयोजन को सिरे से ख़ारिज करते हुए यह कहा गया है कि इस तरह के किसी भी कार्यक्रम की कोई योजना नहीं है और जो आयोजन किए भी जा रहे हैं, उनका संघ से कोई संबंध नहीं है और उसे संघ से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। परन्तु प्रधानमंत्री द्वारा क्रिश्चियन प्रेम दर्शाने और संघ द्वारा या संघ के कुछ नेताओं या भाजपा मंत्रियों द्वारा क्रिसमस के अवसर पर पार्टी आयोजित करने की सत्य या अर्ध सत्य ख़बरों के आलोक में यह सवाल उठना तो स्वभाविक है ही कि ‘गुरूजी ‘ के विवादित विचारों से पीछा छुड़ाने की कोशिश संघ का विचार परिवर्तन है,अवसरवादिता,मजबूरी या महज़ क़यास या अफ़वाह ?