बदलाव का सेमिनार

change seminar

देवेंद्र रावत

45वां ऑल इंडिया रबी सेमिनार यूपी ऑयल मिल्स एसोसिएशन के तत्वावधान में 22 और 23 मार्च को आगरा में संपन्न हुआ। इस सेमिनार के मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला थे। यह सेमिनार हर साल आयोजित किया जाता है, लेकिन इस बार का सेमिनार बदलाव का प्रतीक था। इसमें कुछ ऐसे मुद्दों पर चर्चा हुई, जो पहले शायद ही कभी उठाए गए थे।

द सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री के चेयरमैन सुरेश नागपाल ने इस मंच से एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया, जो अब तक शायद ही कभी चर्चा में आया था—तेल की पैकेजिंग को लेकर। दबे स्वर में तो कई लोग मानते हैं कि कई तेल उत्पादक, इम्पोर्टर और पैकर कम मात्रा में तेल भरते हैं, लेकिन सुरेश नागपाल ने इसे मंच से खुलकर कहा। उन्होंने बताया कि छोटे पैक में भी तेल उत्पादक अपनी मनमर्जी से तेल भर रहे हैं। कुछ मिलर्स एक पाउच में 910 मिलीलीटर तेल भर रहे हैं, जबकि कुछ कीमत कम करने के लिए इसे घटाकर 770 ग्राम तक कर रहे हैं।

हमने जब बाजार में सर्वे किया, तो पाया कि फॉर्च्यून रिफाइंड तेल का पाउच 910 ग्राम का था, जबकि रुचि गोल्ड ब्रांड का पाउच 850 ग्राम का। हालांकि, इस पर उपभोक्ताओं का विशेष ध्यान नहीं जाता, लेकिन क्या ऐसा करना उचित है? इस सवाल के जवाब में सुरेश नागपाल ने कहा कि ऐसा करने से मिलर्स अपनी साख को गिरा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए।

पैकेजिंग नीति में खामियां
यदि हम सरकार की मौजूदा पैकेजिंग नीति की बात करें, तो सरकार ने सभी उत्पादकों और पैकर्स को निर्देश दिया है कि वे पैकेट पर तापमान और कीमत का उल्लेख करें। लेकिन असली खेल यहीं से शुरू होता है। उदाहरण के लिए, अगर सोयाबीन तेल को 21 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर भरा जाए, तो इसका वजन 919.1 ग्राम होगा, जबकि 60 डिग्री सेंटीग्रेड पर बनने पर इसका वजन 892.6 ग्राम रह जाएगा।

यद्यपि यह जानकारी पैकेट पर लिखी जा रही है, लेकिन कई ब्रांड उपभोक्ताओं को अंधेरे में रखकर 892.6 ग्राम तेल के बजाय 910 ग्राम के पैसे वसूल रहे हैं। ऐसा सरकार की स्पष्ट नीति न होने के कारण हो रहा है। हालांकि, केंद्रीय खाद्य तेल निर्माता, पैकर्स और आयातकों को अपने उत्पादों के वजन और तापमान की घोषणा करने के लिए 15 जनवरी 2023 तक की समय सीमा दी गई थी, लेकिन बाजार में उपलब्ध कई ब्रांड इसका पालन नहीं कर रहे हैं।

सरसों के तेल की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, लेकिन इसकी समस्या सोयाबीन तेल से अलग है। यदि सरसों के तेल को 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर निकाला जाता है, तो यह ‘कच्ची घानी’ न रहकर ‘पक्की घानी’ बन जाता है। लेकिन कई उत्पादक उपभोक्ताओं को धोखा देते हुए इसे ‘कच्ची घानी’ के नाम से ही बेच रहे हैं और उसी के दाम वसूल रहे हैं1

इस मंच से एक और महत्वपूर्ण सुझाव सामने आया कि भारत में एक ‘मस्टर्ड बोर्ड’ (Mustard Board) बनाया जाए, जो सरसों के तेल के गुणों को देश की जनता तक पहुंचाए। यह बोर्ड ‘अल्मंड बोर्ड ऑफ कैलिफोर्निया’ की तरह काम करे, जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बादाम के गुणों का प्रचार करता है। इसी तरह, भारत में भी एक मस्टर्ड बोर्ड बनाया जाए, जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सरसों तेल के फायदों का प्रचार-प्रसार करे। इस सुझाव का जिक्र सेमिनार के मुख्य अतिथि ओम बिरला ने भी अपने भाषण में किया और एमओपीए (MOPA) को इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया।

यह सेमिनार नए विचारों और नई नीतियों का मंच बना। इसमें किसानों की आमदनी बढ़ाने से लेकर मोदी सरकार की योजनाओं पर खुलकर चर्चा हुई। यूपी ऑयल मिलर्स के संयोजक दिनेश राठौर ने मोदी सरकार से आग्रह किया कि जिस तरह सरकार पाम ऑयल (Palm Oil) के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दे रही है, उसी तरह सरसों के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाए।

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 2021 में ‘मिशन पाम ऑयल’ (Mission Palm Oil) की शुरुआत की थी और इसके लिए 1,100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की थी। इसी तर्ज पर भारत में ‘मिशन मस्टर्ड’ (Mission Mustard) भी शुरू किया जाना चाहिए, ताकि सरसों के उत्पादन को बढ़ाया जा सके।

इस वर्ष सरसों की खेती का रकबा घटने से इसके उत्पादन में भी गिरावट की संभावना जताई जा रही है। पिछले वर्ष 115.8 लाख टन के मुकाबले इस वर्ष 111.25 लाख टन सरसों उत्पादन होने का अनुमान है।

इस सेमिनार में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए, जिनमें तेल पैकेजिंग की पारदर्शिता, सरसों तेल की शुद्धता, ‘मस्टर्ड बोर्ड’ की स्थापना और ‘मिशन मस्टर्ड’ की जरूरत जैसे विषय शामिल थे। इस सेमिनार ने खाद्य तेल उद्योग में बदलाव की दिशा में एक नई बहस को जन्म दिया है।