गोविन्द ठाकुर
“…जब मोदी सरकार का गठन हुआ तो लगा था कि एनडिए के सहयोगी दलों ने बीजेपी के सामने घुटने टेक दिये हैं.. और मोदीजी जैसे चाहेंगे वे हां में हां मिलायेंगे.. मगर करीब तीन महीने बाद ही कम से कम एक दो मुददे पर ही सही.. मगर सहयोगियों ने आवाज तो लगा दी है…मतलब मोदीजी हमेशा ऐसे नहीं होगा… हमें भी तो चुनाव में जाना है… थोड़ा सोच समझकर… साथ रहेंगे..”नरेंद्र मोदी को सहयोगी पार्टियों के समर्थन से प्रधानमंत्री बने ढाई महीने हुए हैं और ऐसा लग रहा है कि शुरुआती सद्भाव धीरे धीरे कम हो रहा है। यह भी कह सकते हैं कि सहयोगियों के साथ सरकार का हनीमून पीरियड खत्म हो रहा है। भाजपा की सहयोगी पार्टियां खास कर बिहार का प्रादेशिक पार्टियां भाजपा विरोधी ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियों की तरह नीतिगत मसलों पर सरकार को घेर रही हैं। शुरू में ऐसा लगा था कि सहयोगी पार्टियों ने घुटने टेक दिए हैं और मोदी की शर्तों पर ही सरकार चलेगी। लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है। मंत्रिमंडल में जो स्थान मिला उसे चुपचाप स्वीकार कर लेने वाली पार्टियों ने अब मुंह खोलने शुरू कर दिए हैं और इसका मुख्य कारण अगले साल होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव है।
बिहार की दो सहयोगी पार्टियों के तेवर खासतौर से भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सरकार पर दबाव बनाया है। चिराग पासवान ने कई नीतिगत मसलों पर भाजपा और दूसरी सहयोगी पार्टियों से अलग रुख अख्तियार किया है। उन्होंने एससी, एसटी आरक्षण में वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया और इसके खिलाफ आयोजित 21 अगस्त से भारत बंद का समर्थन किया है।
मामले में भाजपा खामोश
इस मसले पर भाजपा खामोश है और दूसरे सहयोगी जीतन राम मांझी इसका समर्थन कर रहे हैं। लेकिन चिराग ने सीधा टकराव लिया। इसी तरह सरकारी सेवाओं में लैटरल एंट्री का चिराग ने विरोध किया और वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव के लिए लाए गए बिल का भी विरोध किया। अब चिराग एक कदम आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने जाति गणना की मांग की है। रांची में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चिराग ने जात गणना की मांग कर दी। यह भाजपा को असहज करने वाली बात है।
जिस दिन चिराग ने रांची में फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद जाति गणना की मांग की उसी दिन दिल्ली में जनता दल यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने इजराइल को हथियारों की आपूर्ति रोकने की मांग कर दी। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां इसकी मांग कर रही थीं। पहली बार जदयू ने भाजपा की राजनीति के लिहाज से अहम माने जाने वाले इस मुद्दे में दखल दिया है। सवाल है कि जदयू और लोजपा दोनों के इस तेवर का क्या मतलब है?
जानकार सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दबाव की राजनीति कर रही हैं। दबाव की इस राजनीति के दो कारण हैं। पहला तो सीटों का बंटवारा है। दोनों पार्टियां ज्यादा सीट के लिए भाजपा पर दबाव बना रही हैं। दूसरा कारण यह है कि जदयू और लोजपा दोनों मुस्लिम राजनीति भी करती हैं और दोनों को उम्मीद रहती है कि भाजपा के साथ होने के बावजूद कुछ मुस्लिम वोट उनको मिलेंगे। तभी दोनों अपने आप को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाजपा के एजेंडे का विरोधी भी दिखाते रहते हैं। भाजपा के नेता इस बात को समझ रहे हैं।