
रविवार दिल्ली नेटवर्क
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद में पर्वाधिराज दशलक्षण महामहोत्सव के आठवें दिन उत्तम त्याग पर प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ जैन शास्त्री के सानिध्य में समुच्चय पूजन, श्री शांतिनाथ जिनपूजा, सोलहकारण पूजन, दशलक्षण पूजा विधि-विधान के साथ हुए। साथ ही गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी के स्वास्थ्य लाभ हेतु नवकार मंत्र का जाप भी किया गया। कुलाधिपति परिवार की ओर से जैन धर्म में माता जी के अनमोल योगदान का स्मरण करते हुए उनके जल्द से जल्द स्वास्थ लाभ की कामना की गई। उल्लेखनीय है, गणिनी प्रमुख ने जैन धर्म पर 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उत्तम त्याग के दिन पूजा सामग्री बनाने वाले श्रावक-श्राविकाओं का स्वागत किया गया। प्रथम स्वर्ण कलश से तनिषा जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से श्री पार्थ जैन, तृतीय स्वर्ण कलश से प्रो. विपिन जैन, चतुर्थ स्वर्ण कलश से श्री आदर्श जैन को अभिषेक का सौभाग्य मिला। प्रथम स्वर्ण शांतिधारा का पुण्य डॉ. एसके जैन, डॉ. सम्यक माली, डॉ. योजश, डॉ. सिद्धार्थ, डॉ. सारांश, डॉ. समर्थ, डॉ. संयम, डॉ. नील, डॉ. अनिकेत, श्री वेदांत, डॉ. खुशी गांधी ने कमाया। द्वितीय रजत शांतिधारा का सौभाग्य श्री सुहित, श्री अनन्त, श्री अनिकेत, श्री प्रभास, श्री प्रांजल, श्री मोहित, श्री रिदम जैन को मिला। अष्ट कुमारी का पुण्य परी, खुशी, अंजलि, भूमि, प्रियांशी, वंशिका, खुशी, अक्षिता, जेसिका जैन ने कमाया। तत्वार्थ सूत्र के अष्टम अध्याय का वाचन श्री मनीष जैन ने किया। उत्तम तप धर्म पर कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन, श्रीमती जाह्नवी जैन आदि की गरिमामयी मौजूदगी रही।
दूसरी ओर रिद्धि-सिद्धि भवन में उत्तम तप धर्म की संध्या पर प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ जैन शास्त्री ने कहा, आत्म शुद्धि के लिए इच्छाओं को रोकना तप है। मानसिक इच्छाएं सांसारिक पदार्थों में चक्कर लगाती हैं या शरीर के सुख-साधनों में केन्द्रिय रहती हैं। अतः शरीर को प्रमादी न बनने देने के लिए बहिरंग तप किए जाते हैं। मन की वृत्ति आत्म-मुख करने के लिए अन्तरंग तपों का विधान किया गया है। दोनों प्रकार के तप आत्म-शुद्धि के अमोघ साधन हैं। भोपाल की सचिन एंड पार्टी के संगीतमय भजनों- पत्थर की प्रतिमा प्यारी, पूजा करते नर-नारी, कैसी ये आतिशय कारी…, तुम ही हो माता-पिता तुम ही हो, तुम ही हो बंधु सखा तुम ही हो…, प्रभु आएंगे तो अंगना सजाएंगे, दीप जला के उत्सव हम मानेंगे…, तुम्हारे दर की छटा निराली, हमारे मन को लुभा रही है, तुम्हारी भक्ति, तुम्हारी पूजा हमारे मन को लुभा रही है…, संयम से बांध के डोरी ज्ञान की भर के तिजोरी…, प्रभु जी तुम हो चंदा, तो मैं हूं चकोर तुम्हारे दर्शन पाकर मेरा बोल उठा मेरा मन मोर…, मैंने सपना जो देखा पिछली रात को, ऐसे सपने ना देखे किसी रात को… पर श्रावक-श्राविकाएं भक्ति में नृत्य में झूमने लगे।
उत्तम तप धर्म के दिन दिव्य घोष के बीच श्रीजी की आरती जिनालय से रिद्धि-सिद्धि भवन तक ले जाने का सौभाग्य पैरामेडिकल के प्रिंसिपल प्रो. नवनीत कुमार, फार्मेसी के प्रिंसिपल डॉ. आशु मित्तल, डॉ. आशीष सिंघई को मिला। संध्याकालीन कार्यक्रमों में फार्मेसी कॉलेज, पैरामेडिकल साइंसेज़ कॉलेज, एग्रीकल्चर कॉलेज और फाइन आर्ट्स के छात्र-छात्राओं की ओर से पद्म पुराणः एक गाथा नाटक का मंचन क्रिया। दीप प्रज्जवलन के बाद मंगलाचरण नृत्य के संग सांस्कृतिक संध्या का श्रीगणेश हुआ। इसके बाद स्टुडेंट्स ने रामायण के जैन संस्करण की प्रस्तुति दी। बालक श्रीराम की भूमिका निभाने वाले चार साल के अथर्व सिंघई ने णमोकार मंत्र का वाचन किया। नाट्य प्रस्तुति में बताया, यह जैन रामायण आचार्य रविषेण द्वारा रचित और पद्म पुराण में वर्णित है। अंशी जैन और टीम ने संगीतमय नाट्य के जरिए जैन रामायण की बारीकियों का आस्थामय प्रस्तुतिकरण किया। कार्यक्रम में जैन फेयरवेल के तहत वीसी प्रो. वीके जैन ने फार्मेसी, पैरामेडिकल, एग्रीकल्चर, फाइन आर्ट और एजुकेशन के अंतिम वर्ष के जैन स्टुडेंट्स को सम्मानित किया गया। अंत में सभी प्रतिभागियों को भी प्रशस्ति पत्र और उपहार देकर सम्मानित किया गया। इन कार्यक्रमों में प्रो. प्रवीण जैन, प्रो. एसके जैन, श्री विपिन जैन, प्रो. विपिन जैन, डॉ. विनोद जैन, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. कल्पना जैन, श्रीमती अहिंसा जैन, श्रीमती अंजलि सिंघई, श्रीमती विनीता जैन, डॉ. नम्रता जैन आदि उपस्थित रहे। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का संचालन और संयोजन डॉ. आशीष सिंघई ने किया।