रासायनिक प्रदूषण भी घोल रहा शरीर में जहर

Chemical pollution is also poisoning the body

विजय गर्ग

वायु ही नहीं, रासायनिक प्रदूषण भी देश-दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है । यह जल को भी दूषित कर रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में कीटनाशक रसायनों का अत्यधिक प्रयोग घातक है। इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है अन्यथा भविष्य में इससे लोग तमाम तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाएंगे। लंबे समय तक रसायनों के संपर्क में रहने से कैंसर, अंग क्षति, प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना, एलर्जी या अस्थमा आदि कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
आलम यह है कि मानव निर्मित रसायन | अब न केवल ‘फारएवर’ हैं बल्कि वह अब “एवरी व्हेयर” प्रदूषक भी बन गए हैं। चाहे वायुमंडल की ऊंचाई हो या समुद्र की गहराई । मिट्टी और पेड़ों से लेकर निर्जन क्षेत्रों तक वह हर जगह पहुंच चुके हैं। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के तत्वावधान में चल रहे तीन दिवसीय वार्षिक पर्यावरण सम्मेलन के अंतिम दिन ‘पर्यावरण में रसायन’ पर चर्चा में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सीएसई की विशेषज्ञ रोहिणी कृष्णमूर्ति ने कहा कि 2019 में पर्यावरण में फैले रसायनों के कारण दुनिया भर में 20 लाख मौतें हुईं। पर्यावरण में रसायनों के उत्सर्जन की दर अधिक है। सालाना लगभग 22,000 करोड़ टन रसायन उत्सर्जित किए जाते हैं। दरअसल मनुष्य हर सेकंड 65 किग्रा कैंसर पैदा करने वाले रसायनों को वायुमंडल में उत्सर्जित करता है। कृष्णमूर्ति ने आगाह किया कि एक बार यदि शरीर में रसायन प्रवेश कर जाएं तो सिंथेटिक रसायन सबसे पहले फेफड़ों, त्वचा और आंतों पर असर डालते हैं। रक्तप्रवाह के माध्यम से गुर्दे या प्रतिरक्षा प्रणाली जैसे अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकते हैं। वह एक एक कोशिका में प्रवेश कर सकते हैं और डीएनए में मौजूद निर्देशों को प्रोटीन में परिवर्तित करने के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार