दिलीप कुमार पाठक
लोक आस्था का पर्व छठ उत्तर भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है l यूपी, बिहार, झारखंड में दीपावली से भी बड़ा त्योहार छठ माना जाता है l आस्था को वैज्ञानिकता की दृष्टि से देखा जाए तो छठ को इस नजरिए से भी देखा जा सकता है कि सभी लोग प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना करते हुए कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं l चूंकि हम लोगों ने सूर्य को प्रत्यक्ष देवता के रूप में देखा है, अब चूंकि सूर्य प्रकृति को पोषित करते हैं, पेड़, पहाड़, नदी, समुद्र आदि की मदद करते हैं, जिनसे समस्त जीवो का जीविकोपार्जन होता है l छठ पर्व पर महिलाएं जगत जीव कल्यान की कामनाएं करती हैं l चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व ने जाति, स्त्री – पुरुष के भेद को ख़त्म करने की सीख देता है l आम तौर पर किसी भी व्रत में पुरुषों की भागीदारी नहीं होती, परंतु छठ पर्व का महत्व कुछ ऐसा है कि इसमे महिला पुरुष, यहां तक कि बच्चों की भागीदारी भी होती है, इसलिए कि इसे महिलाओं का व्रत कहकर पुरुष दूर नहीं हो पाते उनकी भी सक्रिय भूमिका होती है l हमारे मध्यप्रदेश में छठ पर्व का इतना महत्व नहीं है, परंतु हम शारदा सिन्हा जी के कर्णप्रिय गीत सुन सुनकर लोक आस्था के महापर्व के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं l पहले छठ बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, नेपाल के कुछ इलाकों तक सीमित था, परंतु अब तो छठ देश के राज्यों सहित मुल्कों की सीमाएं लांघ गया है l छठ की लोकप्रियता के पीछे उसकी वैज्ञानिकता एवं स्त्री – पुरुष का आपसी सहयोग एवं बच्चों की स्नेहिल साझेदारी इसे बेहद खास बनाती है l वहीँ एक ही घाट पर हर जाति के लोग एक साथ महापर्व पर अर्घ्य देकर अपनी आस्था का प्रकटीकरण करते हैं l
छठपूजा अथवा छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह पर्व ऐसा ही महत्व रखता है जैसे उत्तराखंड का ‘उत्तरायण पर्व’ हो या केरल का ओणम, कर्नाटक की ‘रथसप्तमी’ हो, बिहार का छठ पर्व, सभी इसके घोतक हैं कि भारत मूलत: सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है, यहां बारह महीनों के तीज-त्योहार सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं। छठ से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं और लोकगाथाओं पर गौर करे तो पता चलता है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत राजाओं का यह मुख्य पर्व था। वनवास से लौटने के बाद माता सीता ने अपने कुल देवता सूर्य को अर्घ्य दिया था कहते हैं कि इस महापर्व को तब से ही मनाया जाता है l छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है l इस व्रत में महिलाएं पूरे 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं l इस व्रत में भगवान सूर्य और छठ मैया की पूजा की जाती है l इस व्रत में दो बार सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसमें पहले ढलते सूर्य को और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है l छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने परिवार और पुत्र की दीर्घायु एवं जगत कल्याण एवं प्रकृति संतुलन के लिए करती हैं l
इस बार छठ के पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से होने जा रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर, मंगलवार को होगा l छठ के पर्व ये चार दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं जिसमें पहला होता है नहाय-खाय, दूसरा खरना, तीसरा संध्या अर्घ्य और चौथा ऊषा अर्घ्य पारण l पहला दिन- नहाय खाय, जो कि 25 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा l दूसरा दिन- खरना, जो कि 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा l तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य, जो कि 27 अक्टूबर को किया जाएगा l चौथा दिन- ऊषा अर्घ्य, जो कि 28 अक्टूबर को किया जाएगा l
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय होता है, इस दिन व्रती किसी पवित्र नदी में स्नान करके, इस पवित्र व्रत की शुरुआत करती हैं, स्नान के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है, जिससे व्रत की शुरुआत हो जाती है l छठ पूजा का दूसरा दिन खरना होता है l खरना को लोहंडा भी कहा जाता है l इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं l शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ की खीर (रसिया) और घी से बनी रोटी तैयार करती है l सूर्य देव की विधिवत पूजा के बाद यही प्रसाद सबसे पहले ग्रहण किया जाता है l इस प्रसाद को खाने के बाद व्रती अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने तक अन्न और जल का पूर्ण रूप से त्याग करती हैं l छठ पूजा का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन संध्या अर्घ्य होता है l इस दिन व्रती दिनभर बिना जल पिए निर्जला व्रत रखती हैं l फिर, शाम को व्रती नदी में डूबकी लगाते हुए ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं l इस पूजा का चौथा और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है l इस दिन सभी व्रती और भक्त नदी में डूबकी लगाते हुए उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते है l इस दिन जल ग्रहण करके खोला जाता है, जिसे पारण कहा जाता है l छठ पूजा सूर्य देव और छठी मईया की आराधना का महापर्व है, जिसे शुद्धता, आस्था और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है l इस दिन व्रती पूरी निष्ठा और संयम के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देकर जीवन में सुख, समृद्धि और संतानों एवं जीव जगत कल्याण की कामना करते हैं l यह पर्व प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा है, जो मानव जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता के महत्व को दर्शाता है l





