छठ महापर्व : आस्था,श्रद्धा और आत्मसंयम का अलौकिक उत्सव

Chhath Mahaparva: A divine celebration of faith, devotion and self-restraint

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तरपर छठ पर्व भारत की उन प्राचीनतम और शुद्धतम परंपराओं में से एक है,जोआस्था श्रद्धा और आत्मसंयम की पराकाष्ठा को दर्शाती है। यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन की पवित्रता, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और पारिवारिक सुख-समृद्धि का अद्भुत संगम है। छठ महापर्व को सूर्य उपासना का सबसे पवित्र पर्व माना गया है। हिंदू धर्म में सूर्य देवता को जीवनदाता, स्वास्थ्य और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। छठ पूजा में सूर्य भगवान और उनकी पत्नी उषा (प्रातःकालीन किरण) तथा प्रत्यूषा (सायंकालीन किरण) की पूजा की जाती है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में आत्मसंयम, अनुशासन और प्रकृति के प्रति आभार का भाव ही सच्चा धर्म है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष भव्यता के साथ मनाया जाता है, परंतु अब यह भारत की सीमाओं से परे अमेरिका, मॉरीशस, यूके, कनाडा, दुबई, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तक एक वैश्विक सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। छठ महापर्व 2025 दिवाली के छह दिन बाद,अर्थात् 25 से 28 अक्टूबर 2025 के बीच मनाया जाएगा। हालांकि इस साल 2025 में भी दो दिन दिवाली मनाए जाने के बीच अब लोगों में छठ पूजा की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है,कई स्थानों पर 27 से 30 अक्टूबर को मनाए जाने की भी संभावना दिख रही है इन चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान में स्नान, व्रत, उपवास, शुद्ध आहार, नदी या तालाब के किनारे सूर्योपासना और परिवार की मंगलकामना के साथ सच्चे आत्म-संयम का पालन किया जाता है।छठ महापर्व 2025 की तारीखें और पंचांग आधारित विवरण इस प्रकार है,छठ पूजा 2025 की शुरुआत 25 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ होगी और 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य देकर इसका समापन होगा।25 अक्टूबर 2025, नहाय खाय (पहला दिन), 26 अक्टूबर 2025-खरना या लोहंडा (दूसरा दिन), 27 अक्टूबर 2025-संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)28 अक्टूबर 2025-उषा अर्घ्य (चौथा दिन) यह चार दिन सूर्य पूजा की प्रक्रिया का क्रम है, जिसमें प्रत्येक चरण का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से गहरा महत्व है। छठ महापर्व का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि इसमें न कोई मूर्ति होती है,न कोई पंडित और न ही कोई दिखावा, केवल शुद्ध मन, जल, सूर्य और श्रद्धा। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जो इसे मानवता का सार्वभौमिक उत्सव बनाती है।

साथियों बात अगर हम,चार दिवसिया सूर्य पूजा की प्रक्रिया क़े क्रम को गहराई से समझने की करें तो,” पहला दिन”, नहाय- खाय-शुद्धता की शुरुआत छठ पर्व की शुरुआत “नहाय-खाय” से होती है। यह दिन पूर्ण शुद्धता और आत्मसंयम का आरंभिक चरण है। व्रती (जो पूजा करती हैं) सबसे पहले पवित्र नदी, तालाब या जलस्रोत में स्नान करती हैं। फिर घर लौटकर रसोई और पूरे घर की शुद्धता सुनिश्चित की जाती है। इस दिन का भोजन केवल एक बार ग्रहण किया जाता है,आमतौर पर लौकी-भात और चने की दाल का प्रसाद बनता है, जो मिट्टी के चूल्हे पर शुद्ध गंगाजल और आम की लकड़ी से तैयार किया जाता है।नहाय-खाय के माध्यम से शरीर और मन को पवित्र करने का संदेश मिलता है। यह व्रती को आने वाले 36 घंटे के निर्जला उपवास के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करता है। “दूसरा दिन”- खरना (लोहंडा) : आत्मसंयम और तपस्या का प्रतीक, छठ का दूसरा दिन “खरना” कहलाता है, जो व्रत की आत्मिक यात्रा का सबसे कठिन और पवित्र चरण है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। सूर्यास्त के बाद मिट्टी के चूल्हे पर खीर (गुड़ और चावल से बनी), रोटी और केला का प्रसाद बनाया जाता है।

यह प्रसाद पहले सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है, फिर घर के सभी सदस्य एक साथ इसे ग्रहण करते हैं।खरना आत्मसंयम और समर्पण की परीक्षा है। इस दिन व्रती जल तक नहीं पीतीं। यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मन, इंद्रिय और विचारों की शुद्धि का महायज्ञ है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह उपवास शरीर की विषाक्तता को समाप्त करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक माना गया है। “तीसरा दिन”,संध्या अर्घ्य-अस्ताचलगामी सूर्य की उपासनातीसरे दिन का सबसे प्रमुख आयोजन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को नदी, तालाब, झील या कृत्रिम जलाशय में स्नान कर सूर्यास्त के समय अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं।अर्घ्य के लिए बांस की सूप (डाल) में पूजा की सामग्री रखी जाती है,जैसे ठेकुआ, फल, ईख, नारियल, दीपक, और पाँच प्रकार के मौसमी फल। सूर्य भगवान की आराधना के समय पूरावातावरण ‘छठ माता की जय’ और ‘सूर्य देवता की जय’ के उद्घोष से गूंज उठता है।यह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और पर्यावरणीय संतुलन का भी प्रतीक बन जाता है। महिलाएं लाल या पीले रंग की साड़ी पहनती हैं,जो ऊर्जा और समर्पण का प्रतीक है। घाटों पर दीपों की श्रृंखलाएँ जल उठती हैं, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा और प्रकाश के माध्यम से अंधकार के नाश का संकेत देती हैं।”चौथा दिन”-उषा अर्घ्य :उदय होते सूर्य का अभिवादन।छठ महापर्व का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है- उषा अर्घ्य का। प्रातः काल, जब सूर्य की पहली किरण क्षितिज पर दिखाई देती है, तब व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं। यह अर्घ्य आने वाले जीवन के नवप्रकाश, नई ऊर्जा और परिवार की दीर्घायु का प्रतीक है।इस दिन श्रद्धालु सूर्य देवता को दूध, जल, गंगाजल, पुष्प और फल अर्पित करते हैं। व्रती सूर्य की आराधना के बाद प्रणाम कर अपने व्रत का समापन करती हैं और फिर घर लौटकर “परना” करती हैं, यानी व्रत खोलती हैं। यह क्षण केवल व्रती के लिए नहीं, पूरे परिवार और समाज के लिए भी आत्मिक प्रसन्नता का होता है।

साथियों बात अगर हम छठ व्रत की वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि व सामाजिक और नारी- शक्ति का पर्व के रूप में समझने की करें तो,छठ महापर्व को यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सूर्योपासना के माध्यम से जीवन ऊर्जा के संरक्षण का पर्व है। सूर्य हमारे शरीर में विटामिन- डी का प्रमुख स्रोत है,जोप्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। जब व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की किरणों को ग्रहण करती हैं, तो इससे शरीर और मन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।साथ ही, यह पर्व पर्यावरण- संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण है। पूजा में केवल प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग होता है,बांस, मिट्टी, फल, ईख, और प्राकृतिक जल।इसमें किसी प्रकार के प्लास्टिक या रासायनिक उत्पाद का प्रयोग नहीं किया जाता। छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि मानव और प्रकृति के बीच संतुलन ही स्थायी समृद्धि की कुंजी है सामाजिक और नारी-शक्ति का पर्व-छठ महापर्व नारी की अडिग आस्था और संकल्प-शक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है। 36 घंटे का निर्जला उपवास केवल शारीरिक सहनशक्ति नहीं, बल्कि आत्मिक दृढ़ता का प्रतीक है। इस पर्व में नारी ‘परिवार की सुख-शांति और संतान की दीर्घायु’ के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर देती है।साथ ही,यह पर्व सामाजिक समानता का भी प्रतीक है, इसमें जाति, वर्ग या आर्थिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता। सभी लोग मिलकर घाटों की सफाई, सजावट और प्रसाद-वितरण में भाग लेते हैं। यह सामूहिकता भारत की “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना को साकार करती है।

साथियों बात अगर हम छठ महापर्व क़े आध्यात्मिकसंदेश को समझने की करें तो,छठ केवल सूर्योपासना नहीं, बल्कि यह मनुष्य और ब्रह्मांड के बीच संवाद का माध्यम है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति का प्रत्येक तत्व,जल, वायु, अग्नि,पृथ्वी और आकाश हमारे अस्तित्व का आधार है। जब हम सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो हम अपने भीतर की अंधकारमय प्रवृत्तियों, अहंकार ईर्ष्या, आलस्य और क्रोध को भी समर्पित करते हैं, ताकि जीवन में प्रकाश, शांति और संतुलन बना रहे।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,छठ महापर्व मानवता और प्रकृति के समरस सह-अस्तित्व का प्रतीक हैँ,छठ महापर्व 2025 केवल बिहार या उत्तर प्रदेश का नहीं, बल्कि अब यह भारत की आत्मा और भारतीयता का वैश्विक प्रतीक बन चुका है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि सच्ची समृद्धि पूजा में नहीं, बल्कि प्रकृति, अनुशासन और श्रद्धा के संतुलन में है।जब गंगा, यमुना, सरयू, सोन या किसी भी जलाशय के तट पर लाखों दीपक जलते हैं और महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तब वह दृश्य केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का महासागर बन जाता है जो मानवता को जोड़ता है,आत्मा को निर्मल करता है और हमें जीवन के परम सत्य की ओर ले जाता है।छठ महापर्व 2025 सचमुच यह याद दिलाएगा कि भारत की परंपराएँ केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि वे जीवन के दर्शन, अनुशासन और आत्मसंयम की अमर पाठशालाएँ हैं,जो युगों तक मानवता को प्रकाश देती रहेंगी।