अपने पिताश्री के संस्मरण सुनाकर भावुक हुए मुख्यमंत्री

Chief Minister became emotional after narrating his father's memoirs

रविवार दिल्ली नेटवर्क

भोपाल : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से उनके पिता के निधन पर निज निवास पर जब आमजन मिलने पहुंचे तो वे पिता के संस्मरण सुनाकर भावुक हो गए। अपने पिताश्री की स्मृतियों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उज्जैन विकास प्राधिकरण के चेयरमेन से लेकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने पर भी उनके पिता ने सरकारी सुविधा से सदैव परहेज रखा। उन्होंने कहा कि जब वे विधायक का चुनाव जीतकर आये और पिताजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा- जीत गए अच्छी बात है लेकिन हमेशा स्वाभिमान की जिंदगी जीना। कभी किसी के पैरों में मत गिरना। अपने दम पर और कर्म के आधार पर आगे बढऩा। स्वयं के द्वारा की गई मेहनत ही एक दिन रंग लाएगी और ऊंचाई तक पहुंचाएगी। जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा- अच्छा काम करना, लोगों का भला करना। किसी को दु:ख पहुंचे, ऐसा काम कभी मत करना।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे। वे अपना काम आखिरी समय तक स्वयं ही करते रहे। कोई मिलने आता तो वे कभी यह नहीं कहते थे कि मैं विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री का पिता हूं। ताउम्र वे सामान्य जीवन जीते रहे। जब मुख्यमंत्री निवास में जाते समय मैंने उनसे साथ चलने का आग्रह किया तो पिताजी ने कहा मैं तो यहीं पर अच्छा हूं। आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं। तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो। मैं यहीं पर अच्छा हूं।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पिताश्री के दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना भी था। फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्रेक्टर ट्रॉली के साथ स्वयं उपज बेचने के लिए मंडी जाना… उनका यह नित्य क्रम था। हम सब कहते भी थे कि यह सब आप मत किया करो, आराम करो, आपको जाने की क्या आवश्यकता है। वे कहते थे कि यह मेरा काम है और मैं ही करूंगा। वे बाजार भी जब-तब सामान लेने निकल जाते थे। कभी उन्होंने किसी की भी किसी काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की। मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनेता। पिताश्री की स्मृतियों के साथ मां को भी याद कर वे भावुक हो गये और उन्होंने कहा कि पिताजी की तरह ही मां भी बेहद कर्मशील थीं। दोनों ने मुझे सदैव कर्मशील बने रहने की सीख दी और उनकी इसी सीख पर मैं अब तक अडिग होकर चला हूं और आगे भी चलता रहूंगा।