ईसाई पादरी बनाते हैं ओलंपियन, वहां से निकलते शानदार ओलंपियन

Christian pastors turn Olympians and great Olympians emerge from there

विवेक शुक्ला

आप जानते हैं कि आगामी 26 जुलाई से पेरिस ओलंपिक खेल शुरू हो रहे हैं। राजधानी के मशहूर सेंट स्टीफंस कॉलेज को स्थापित करने वाली प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी बीती लगभग एक सदी से देश में खेलों के विकास के लिए अपने स्तर पर काम कर रही है। इनके सेंट स्टीफंस कॉलेज ने अनेक ओलंपिक खिलाड़ियों को निकाला है। इससे जुड़े छात्र और अध्यापक 1928 के ओलंपिक खेलों से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। पेरिस में भी इनकी भागेदारी रहेगी।इस लेख में बात इन पादरियों और उन खिलाड़ियों की, जिन्होंने इनके सहयोग से ओलंपिक खेलों में भाग लिया।

राजधानी दिल्ली के भूगोल को जानने वाले जानते हैं कि कश्मीरी गेट से दरियागंज के बीच का फासला तीन-चार किलोमीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जब भारत की हॉकी टीम 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक खेलों के लिए चुनी गई तो उसमें माइकल ए.गेटले और दरियागंज वाले इफ्तिखार अली खान पटौदी सीनियर भी थे। पदौदी का तो जन्म ही दरियागंज के पटौदी हाउस में हुआ था। पदौदी आगे चलकर भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने। उनके पुत्र मंसूर अली खान ने भी भारतीय टीम की कप्तानी की। माइकल ए.गेटले कश्मीरी गेट से थे। गेटले एंग्लो इंडियन थे। वे कश्मीरी गेट में पुराने सेंट स्टीफंस कॉलेज के पास रहते थे। उस दौर में कश्मीरी गेट और मोरी गेट में बहुत सारे एंग्लो इंडियन परिवार रहा करते थे। गेटले 1932 के लास एजेंल्स खेलों में दादा ध्यान चंद के साथी थे। संयोग से 1928 और 1932 में भारत को हॉकी का गोल्ड मेडल मिला था। तेज-तर्रार फारवर्ड गेटले ने हॉकी की बारीकियों को सेंट स्टीफंस कॉलेज में सीखा था। ये तब कश्मीरी गेट में था।

दरअसल सेंट स्टीफंस कॉलेज को स्थापित करने वाली ईसाई पादरियों की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी शुरू से ही राजधानी में समाज सेवा के साथ-साथ उदीयमान खिलाड़ियों को अपने स्तर पर प्रोत्साहित करने लगी थी। ये पादरी के कामों को संभालने के अलावा जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में रहकर समाज सेवा भी करते हैं।

बेशक, डॉ.करणी सिंह सेंट स्टीफंस कॉलेज के सबसे नामवर ओलंपिक खिलाड़ी रहे। उन्होंने 1960 ( रोम), 1964 (टोक्यो), 1968 ( मेक्सिको), 1972 ( म्युनिख) और 1980 ( मास्को) ओलंपिक खेलों की शूटिंग स्पर्धाओं में भाग लिया। साउथ दिल्ली में तुगलकाबाद से जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी आते-जाते हुए आपको करणी सिंह शूटिंग रेंज मिलेगी। इसके आसपास सैकड़ों बंदर टहल रहे होते हैं। करणी सिंह शूटिंग रेंज किसी खिलाडी के नाम पर रखा गया राजधानी का पहला स्टेडियम है। आमतौर पर यह नहीं होता। हमारे यहां स्टेडियमों के नामों पर सियासी नेताओं का एकछत्र अधिकार रहा है। करणी सिंह रेंज का निर्माण 1982 के एशियाई खेलों की निशानेबाजी की स्पर्धाओं के लिए हुआ था। मशहूर खेल प्रशासक और सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र रहे रणधीर सिंह ने 1968 से लेकर 1984 तक पांच ओलपिंक खेलों में भाग लिया। रणधीर सिंह का संबंध पटियाला के राज परिवार से है। वह पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह के छोटे बेटे भलिंद्र सिंह के बेटे हैं। उनके पिता भलिंद्र सिंह 1947 से 1992 तक अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के सदस्य , 1960 से 1975 और 1990 से 1984 तक भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष थे और 1982 के एशियाई खेलों को दिल्ली लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कमाल के निशानची मनेशर सिंह ने 2004 और 2008 के ओलपिक खेलों में भाग लिया। रणधीर सिंह की तरह मनशेर सिंह भी सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़े थे। इधर रहते हुए ही दोनों ने शूटिंग में महारत हासिल किया।

इस बीच,रोम खेलों में सेंट स्टीफंस कॉलेज में गणित के प्रफेसर रहे रंजीत भाटिया ने मैराथन दौड़ में भाग लिया था। रंजीत भाटिया ने गणित के महान शिक्षक के रूप में भी खूब नाम कमाया था। इसी रोम ओलंपिक में फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का 400 मीटर की स्पर्धा में पदक पाने का ख्वाब चूर हो गया था। वे सेंट स्टीफंस क़ॉलेज से तो नहीं थे, पर देश के बंटवारे के बाद वे सरहद पार करके दिल्ली ही आए थे। वे कुछ साल तक पहाड़गंज में रहे भी थे। 2000 के सिडनी ओलंपिक में सेंट स्टीफंस कॉलेज के पीयूष कुमार ने 4x 400 मीटर रिले स्पर्धा में और संदीप सेजवाल ने तैराकी की 100 और 200 मीटर ब्रेस्ट स्टोक स्पर्धाओं में भाग लिया था। जिस सेंट स्टीफंस कॉलेज में गांधी जी के सहयोगी दीनबंधु सी.एफ. एंड्रूज पढ़ाते रहे, वहां की छात्रा रही टेबल टेनिस प्लेयर नेहा अग्रवाल ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेलों में भाग लिया। राजधानी की एक चर्च में पादरी और सेंट स्टीफंस कॉलेज में लंबे समय तक पढ़ाते रहे मोनोदीप डेनियल कहते हैं कि हमारी कोशिश रहती है कि हमारे बच्चे अपनी पढ़ाई के अलावा खेलों और अन्य गतिविधियों में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करके देश के आदर्श नागरिक बने। हम अपने बच्चों को हर सभंव सुविधाएं उपलब्ध भी करवाते हैं। इसी सोच के चलते हाल ही दिल्ली- सोनीपत सीमा पर शुरू हुए सेंट स्टीफंस कैंम्ब्रिज स्कूल में विभिन्न खेलों की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं ताकि यहां से भी भारत के ओलंपिक खिलाड़ी निकले।

इस बीच, आगामी 26 जुलाई से पेरिस में शुरू हो रहे ओलंपिक खेलों में सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र रहे जसपाल राणा बतौर कोच भाग ले रहे हैं। जसपाल राणा ने शूटिंग के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों क्षेत्रों में 600 से अधिक पदक अर्जित किए हैं। शूटिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जसपाल राणा को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राणा की शिष्या मनु भास्कर पेरिस ओलंपिक खेलों की शूटिंग मुकाबलों में भाग ले रही हैं। खैर, जब ओलंपिक खेल शुरू हो जाएंगे तो डीबीएस के ईसाई पादरी वक्त निकालकर अपने उत्तर दिल्ली के ब्रदर हाउस में बैठकर ओलंपिक खेलों को देखेंगे। उन मैचों को खासतौर पर देखेंगे, जिनमें भारत भाग लेगा। इन अविवाहित पादरियों को खेलों की दुनिया बहुत प्रिय है।