प्रो: नीलम महाजन सिंह
जो बात राष्ट्रपति महोदया बार-बर कह रहीं हैं, मैं इस बात को 30 वर्षो से दोहरा रही हूँ! अवश्य ही भारत प्रजातांत्रिक गणतंत्र है, परन्तु हर एक व्यक्ति अपने आप से पूछे कि क्या नौकरशाह जनता के सेवक हैं? क्या राजनेता जनहितैषी हैं? सबसे महत्वपूर्ण यह है कि क्या न्यायलय से न्याय मिल रहा है? सच तो यह है कि हम भारत के लोगों को मौलिक अधिकार, कार्यान्वित रूप से नहीं मिले! ये सब शासक तो मखमली गद्दों पर मौज ले रहे हैं और नागरिक दर-बदर की ठोकर खा रहे हैं। भारत की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू ने न्यायालय के विचाराधीन कैदियों को वर्षों से जेलों में बंद होने के मुद्दे पर प्रकाश डाला है। न्यायालय तक पहुंचकर कर, कानूनी अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराए जाने के बावजूद भी नागरिक, वर्षों से जेलों में बंद कयों हैं? इस समस्या के मूल कारण को दूर करने के लिए पूरे समाज से आग्रह है। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा “इसका एक कारण यह है कि यहां की अदालतों पर अत्यधिक बोझ है”। राष्ट्रपती जी नेकहा, “ये लोग वर्षों तक जेलों में सड़ते हैं जो भीड़भाड़ वाली हैं, जिससे उनका जीवन नष्ट हो जाता है। हमें समस्या के मूल कारण का पता लगाना चाहिए”। जब ‘हम’ कहते हैं तो उसका मतलब पूरे समाज से है। इस मुद्दे पर बहस हो रही है और सबसे अच्छे विवेकवान लोग इस मामले पर विचार कर रहे हैं। सत्ता के दुरुपयोग को रोकने और अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक संस्थाएं महत्वपूर्ण हैं। यह विश्लेषण, हिंदुस्तान का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय; झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का उद्घाटन करते हुए, सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड के भाषण का है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, डी.वाई. चंद्रचूड, कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), अर्जुन राम मेघवाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन भी समारोह में उपस्थित थे। अदालतों की भाषा समावेशी होनी चाहिए, जिससे न्याय वितरण प्रणाली में पक्षकार और हितधारक प्रभावी हो सके। खासकर समाज के विभिन्न वर्गों की महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान होने की आवश्यकता है। यह कार्य हमेशा प्रगति पर है और हमें न्याय तक पहुंचकर सुनिश्चित करने के लिए नए तरीके खोजने का लगातार प्रयास करना चाहिए। मुकद्दमे-बाजी की लागत को कम करना अनिवार्य है, क्योंकि यह कई नागरिकों के लिए न्याय को निषेधात्मक रूप से महंगा पड़ता है। अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में सहज होने वालों के लिए अदालती प्रक्रियाओं को क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका की अर्जेंट लिस्टिंग से इनकार किया। उन्होंने कहा, “अंग्रेज़ी भारत में अदालतों की प्राथमिक भाषा रही है, लेकिन आबादी का बड़ा वर्ग इस वजह से छूट गया है। न्याय की भाषा समावेशी होनी चाहिए, जिससे पक्षकार और इच्छुक नागरिक प्रभावी हितधारक हो सकें। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णयों को कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाना शुरू किया है। समृद्ध भाषाई विविधता वाले झारखंड जैसे राज्य में ये कारक अधिक महत्वपूर्ण हो रहे हैं। अधिकारी उन लोगों के लिए अदालती प्रक्रियाओं को समावेशी बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में सहज हैं। हिंदी में अपना संबोधन देने के लिए महामहिम ने सीजेआई चंद्रचूड़ की प्रशंसा करते हुए कहा, “मैं आज हिंदी में बोलने के लिए सीजेआई की सराहना करना चाहूंगी। अन्य न्यायाधीश भी निश्चित रूप से उनके उदाहरण का अनुसरण करेंगें।” सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड ने अपने भाषण में मार्गदर्शक सिद्धांत को भी दोहराया, जिस पर उन्होंने कई मौकों पर ज़ोर दिया; वह न्याय वितरण प्रणाली हैं, जो लोगों तक पहुंचें। सीजेआई चंद्रचूड ने हिंदी में कहा, “सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अपना काम अंग्रेजी में करते हैं। हम आधिकारिक भाषाओं में निर्णयों का अनुवाद करके अंग्रेजी भाषा से दूर दराज के 6.4 लाख गांवों में रहने वाले लोगों तक पहुंच सकते हैं”। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित भाषाओं में निर्णयों के अनुवाद की प्रक्रिया शुरू की है और पहले ही 6,000 से अधिक निर्णयों का हिंदी में अनुवाद कर चुके हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्याय की पहुंच का विस्तार करने के लिए अभिनव तरीके खोजने के लिए कानूनी बिरादरी के सदस्यों- न्यायाधीशों, प्रतिष्ठित न्यायविदों और ‘बार’ के वरिष्ठ सदस्यों सहित हितधारकों से अग्राह्य किया। आधुनिक तकनीक और युवा पीढ़ी अपने नए और मूल विचारों के साथ, न्याय वितरण प्रणाली के नये तरीके खोजेंगें। जिन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद अपने पक्ष में फैसला सुना है, वास्तव में उन्हें राहत का लाभ नहीं मिलता है। सारांशार्थ यह कहना सत्य है कि न्यायपालिका ने अमीर, बड़े वकीलों, दौलतमंद लोगों को ही ऑर्डर दिये हैं जिसमें अधिकता प्रताड़ित व्यक्तियों के खिलाफ़ है. क्य़ा यह न्याय है? “ऐसे कई मामले हैं जो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अंतिम रूप से पहुंचते हैं। लेकिन, कभी-कभी जब अनुकूल फैसला मिल भी जाता है – वर्षों के इंतजार के बाद, वादियों को पता चलता है कि उन्हें वह नहीं मिला है जिसके लिए वे लड़ रहे थे। मैं एक छोटे से गांव से आती हूं, जहां मैंने एक छोटे से परिवार परामर्श केंद्र में काम किया। हम मामलों को अंतिम रूप देने के बाद भी उन पर फिर से विचार करते थे, जिससे हम यह पता लगा सकें कि हमारी किताबों में मामले को बंद करने के बाद भी ये परिवार कैसे रह रहे थे”। अगर अब कोई कानूनी प्रावधान नहीं है तो इसका कोई रास्ता निकाला जा सकता है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, “मैं इन लोगों से संबंधित हो सकती हूं, जो ओडिशा के ‘उपरबेड़ा’ गांव से हैं और राजनीति में आने से पहले एक स्कूल शिक्षक थी। उन्होंने दर्शकों को कार्रवाई के लिए भावपूर्ण आह्वान करते हुए कहा, “यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी आपकी है कि वादियों के साथ पूर्ण न्याय हो। मुझे यकीन है कि एक नया रास्ता बनेगा।” मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड ने हाल ही में ‘कैम्ब्रिज लॉ यूनिवर्सिटी’ में दिए गए एक व्याख्यान में संवैधानिक संस्थाओं के महत्व पर प्रकाश डाला था, जिसके बिना संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों की रक्षा नहीं की जा सकती। सीजेआई 30 मई को कैम्ब्रिज ‘प्रो-बोनो’ प्रोजेक्ट वार्षिक व्याख्यान के हिस्से के रूप में ‘संवैधानिक अधिकारों और संवैधानिक संरचना के संरक्षण पर व्याख्यान’ दे रहे थे। सच तो यह है कि कोई भी नागरिक ना ही सरकारी अफ़सर, ना ही किसी मंत्री, ना ही पुलिस थाना और ना ही कोर्ट कचहरी जाना पसंद करते हैं। सचिवालय में तो नागरिक प्रवेश ही नहीं कर सकते? मंत्रीगण तो बंदूकधारियों से घिरे रहते हैं? न्यायालय में तो बोलने ही नहीं दिया जाता! समय आ गया है कि व्यवस्था परिवर्तन हो और नागरिक अधिकारों का संरक्षण कर्त्तव्य पथ पर किया जाये। चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड, आप ‘Rockstar रॉकस्टार’ तभी कहलाएंगें, जब आप अंतिम पंक्ति में बैठे नागरिक को न्याय देंगें। आज ‘न्यायायिक अंत्योदय’ समय की पुकार है।
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स, परोपकारक)