यमुना को साफ करना और दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करना बड़ी चुनौती

Cleaning the Yamuna and making Delhi pollution free is a big challenge

मनोज कुमार मिश्र

27 साल बाद दिल्ली में भाजपा का सरकार बनी है। उसके सामने अनेक चुनौतियां हैं। दिल्ली केन्द्र शासित राज्य है यानि दिल्ली पर ज्यादा नियंत्रण पहले से ही केन्द्र सरकार का है। इसी के चलते आम आदमी पार्टी(आप) के दस साल के शासन में दिल्ली सरकार की लड़ाई केन्द्र सरकार और उसके दिल्ली के प्रतिनिधि उप राज्यपाल से चलती रही। इस विधान सभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार बनाना भी एक मुद्दा था। अब तो दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा का मेयर बन गया। कायदे में तो अब भाजपा की ट्रीपल इंजन की सरकार है। इसमें भाजपा दिल्ली के बारे में कोई काम न कर पाने का बहाना भी नहीं कर सकती है। दिल्ली के हर क्षेत्र में ही युद्ध स्तर पर काम करने की बड़ी जरूरत है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यमुना को साफ करके सभी दिल्लीवालों को पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने और दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करना सबसे बड़ी चुनौती है।

सरकार की मुखिया यानि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बतौर वित्तमंत्री 25 मार्च को एक लाख करोड़ का बजट पेश करके अपनी सरकार के कामकाज की दिशा तय की। दिल्ली के लिए यह ऐतिहासिक बजट माना जा रहा है।बजट में उन सभी कामों के लिए बजट आवंटित किए गए, जिनके वायदे भाजपा ने इस विधानसभा चुनाव में किए थे। कुछ पर तो काम शुरु भी हो गया है और कुछ पर आने वाले दिनों में काम शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं। इनमें ज्यादातर वायदों का संबंध पैसे से है। मुख्यमंत्री ने पिछले बजट से करीब 31.5 फीसदी की बढ़ोतरी की है और उनका दावा है कि इस वित्तीय साल में राजस्व भी 58,750 करोड़ रूपए के मुकाबले 68,000 करोड़ रूपए मिलने वाला है। वैसे तो हर काम में पैसे के साथ-साथ पूरी तैयारी और चौकसी आदि जरूरी है लेकिन यमुना को साफ करने के साथ पानी का संकट दूर करने और दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करना
के काम केवल पैसे से न होंगे। इस विधानसभा चुनाव के मुद्दों में अन्य मुद्दों से ज्यादा ये दोनों मुद्दे प्रभावी रहे। सरकार बनते ही मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ यमुना की आरती में शामिल हुई और यमुना को साफ करने का संकल्प दोहराया। यमुना का पानी मानक के हिसाब से तो यमुनोत्री के आगे कुछ ही दूर तक साफ है लेकिन दिल्ली में पल्ला बांध(वजीराबाद) से ओखला यानि 22 किलोमीटर तो गंदे नाले से भी बदतर हाल में है। इसको साफ करने के नाम पर सालों में करोड़ों रूपए खर्च किए जा चुके हैं। इस सरकार ने नौ हजार करोड़ रूपए यमुना की सफाई के लिए बजट में प्रावधान किया है।

यह सालों से प्रयोग किया जा रहा है कि यमुना में गंदा पानी जाने से रोका जाए। यमुना को साफ करके उसे अहमदाबाद के सावरमती नदी की तरह विकसित की जाए। यमुना के किनारे कोयले बिजली बनाने वाले संयत्र सालों पहले बंद करा दिए गए। औद्योगिक कचरे या सीवर के गंदा पानी को इन्हें साफ करने वाले संयंत्रो के माध्यम से सफ करके ही साफ पानी यमुना में जाने दिया जाए। यमुना को प्रदूषित करने में अव्वल माने जाने वाले नजफगढ़ नाले में इंटरसेप्टर लगवाया गया। इस बजट में इंटरसेप्टर का प्रावधान किया गया है। 1994 में जब यमुना के पानी में दिल्ली को तब के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने हिस्सा दिलाया था. तब दिल्ली का हरियाणा के साथ एक और समझौता हुआ था कि हरियाणा जितना पीने का पानी पल्ला बांध पर दिल्ली को देगा, दिल्ली उसे उतना ही पानी ओखला बांध पर सिंचाई के लिए देगी। अभी यमुना का पानी साफ होने को ही दिल्लीवासी सपना मान रहे हैं। अगर ऐसा हो गया तो दिल्ली पानी के मामले काफी आत्मनिर्भर हो जाएगी और दिल्ली का एक कलंक मान लिया गया यमुना साफ होकर दर्शनीय बन जाएगी।

यमुना सफाई जितना ही कठिन काम दिल्ली को प्रदूषण मुक्त या प्रदूषण कम करना है। दिल्ली सरकार के बजट में इसको भी प्राथमिकता दी गई है। अलग-अलग तरीके से प्रदूषण नियंत्रित करने की बात कही गई है लेकिन बड़ी बात सभी तरह के प्रदूषण(वायु, जल और हवा इत्यादि) के साथ-साथ कचरा और आपदा प्रबंधन के लिए एक ही जगह निगरानी की व्यवस्था करने के लिए एक साझा केन्द्र(इंट्रीगेटेड कमान एंड कंट्रोल सेंटर) बनाने का प्रावधान किया गया है। कहने के लिए 1483 वर्ग किलो मीटर की दिल्ली है लेकिन एनसीआर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के शहर दिल्ली से इस कदर जुड़े हुए हैं कि उन सभी को साथ लिए बिना कोई अभियान सफल नहीं हो सकता है। केन्द्र की सरकार के साथ मिलकर दिल्ली के सभी पड़ोसी राज्यों और दिल्ली की नगर निगमों के साथ-साथ दूसरी सरकारी एजेंसियों को साथ लेकर जनता की सक्रिय भागीदारी से इसका समाधान निकाला जा सकता।यह साबित भी हो चुका है कि केवल आधे कारों को हर रोज सड़क पर आने से रोकने से वायु प्रदूषण में ज्यादा कमी नहीं आने वासी है दूसरे, सरकारी कुव्यवस्था को झेल रहे सार्वजनिक परिवहन प्रणाली इस बार इस हालत में भी नहीं है कि दिल्ली सरकार इस तरह के प्रयोग बार-बार कर पाए। गिनती के बचे दिल्ली परिवहन निगम(डीटीसी) और सरकार के अधीन चलने वाली बसों की तादात तुरंत बढ़ानी होगी। इस बजट में सार्वजनिक परिवहन पर 12,952 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।

दिल्ली के चारों ओर ईस्टर्न पेरिफेरियल और वेस्टर्न पेरिफेरियल सड़क बन जाने से दिल्ली होकर एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले ट्रकों का दिल्ली के भीतर आना कम हुआ है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय दिल्ली के लिए 50 हजार करोड़ की परियोजना बनाई थी,इसमें ज्यादातर पूरे भी हो गए हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) समेत अनेक अदालतों ने दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए बार-बार कई कड़े आदेश दिए हैं। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की एक बड़ी वजह पराली जलाना भी माना जाता है।पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर पंरदेश के किसान खेत खाली करके दूसरी फसल लगाने के लिए खेत खाली करने के लिए खेत में बचे फसलों के अवशेष को जलाते हैं, जिसका धुंआ दिल्ली पर छा जाता है।

अदालती आदेश के बाद सरकारों ने पराली न जलाने और उसका दूसरा बेहतर उपयोग करवाने के प्रयास शुरू किए हैं। इसी तरह से एनजीटी ने दस साल पुराने व्यवसायिक वाहनों पर रोक लगा दी। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल पुराने डीजल वाहनों पर स्थाई बंदिश लगा दी है। बावजूद इसके इस बार प्रदूषण कम होता नहीं दिख रहा है। दिल्ली में पहले भी सारे व्यवसायिक वाहनों को अदालती आदेश से सीएनजी पर चलाया जा रहा है। हालात एक दिन में खराब नहीं हुए हैं। कुप्रबंधन और सरकारी लापरवाही ने दिल्ली के हालात बदतर बना दिए और सुधार के आसार दिख ही नहीं रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 1998 को आदेश दिया कि दिल्ली में चलने वाले सभी बसों को धीरे-धीरे सीएनजी पर लाया जाए। इसकी तारीख 31 मार्ट 2001 तय की गई। सरकारें एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहे तो अप्रैल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सख्त आदेश दिए।

उसके बाद सीएनजी पर बसों और व्यवसायिक वाहनों को लाने की प्रक्रिया तेज हुई। कायदे में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में मिले पैसों से दिल्ली की सड़कों पर बसें दिखने लगी। दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में 15 हजार बसें चलाने का हलफनामा दे रखा है लेकिन अब तो 2010 की बसें भी सड़कों पर से हटने लगी बसों की संख्या गिनती की रह गई हैं। डीटीसी के अधीन चलने वाली निजी बसें ही सड़कों पर दिख रही है। दिल्ली मैट्रों अपनी गति से चल रही है काफी लोग लोकल रेल से भी यात्रा करते थे उसे भी अभी ठीक से शुरू नहीं किया गया है। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी के चलते जिसके लिए संभव है वह अपने वाहन से यात्रा कर रहा है। ऐसे में सड़कों पर से वाहनों की भीड़ कम कैसे हो सकती है?

दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की तादात एक करोड़ से ज्यादा है। लाखों वाहन एनसीआर के दूसरे राज्यों में पंजिकृत हैं जो हर रोज दिल्ली में चलते हैं। इसलिए कोई भी योजना पूरे एनसीआर के लिए बनाने के बाद ही प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। दिल्ली का न अपना मौसम है और न ही दिल्ली वालों की जरूरत पूरा करने के लिए बिजली और पानी। दिल्ली की किसी भी समस्या का समाधान करना अकेले दिल्ली के बूते नहीं है। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली बेहतर हो ताकि सड़कों से निजी वाहनों की संख्या कम की जा सके। सड़कों को जाम से मुक्त करने के लिए ठोस प्रयास हो। दिल्ली में बाहर से आने वाले वाहनों से प्रदूषण कम करने के मानकों पर अमल करवाया जाए। प्रदूषण फैलाने वाले किसी भी उद्योग को दिल्ली में नहीं चलने दिया जाए। पूरे दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण रोकने के मानकों पर कड़ाई से अमल हो। पर्यावरण को राजनीतिक मुद्दा के बजाए आम जन के जीवन बचाने का मुद्दा बनाया जाए।

इसी तरह आम भागीदारी और सरकारी तंत्र के प्रयास से यह सुनिश्चित करना होगा कि यमुना में एक बूंद भी गंदा पानी न जाए और उसमें किसी तरह का कूड़ा-कचरा डालने पर कठोर दंड दिया जाए। मूल समस्या दिल्ली की अनधिकृत कालोनी और अवैध निर्माण है, जिनमें से ज्यादातर में सीवर प्रणाली है भी नहीं जहां है भी वह कारगर नहीं है। वहां की गंदगी तो सीध यमुना में जा ही रही है। जिन इलाकों में दिल्ली बसने के समय सीवर लाइन डली थी, उनमें से ज्यादातर बेकार हो चूकि है। सीवर लाइनें जाम है उसमें बहाव के लिए जगह ही नहीं है। सीवर और पानी की मुख्य लाइनों को बदलने का काम काफी समय से चल रहा है सीवर की गंदगी और गंदा पानी पाइप के रास्ते जल शोधन यंत्रों के बजाए सड़कों और नालों से सीधे यमुना में जा रहा है। इसे कब और कैसे ठीक किया जाएगा, कहा नहीं जा सकता है। प्रदूषण नियंत्र की तरह ही यमुना भी केवल पैसे के दम पर साफ नहीं हो सकती। सरकार की ताकत, मनसा और जन भागीदारी के बिना न तो दिल्ली प्रदूषण मुक्त रह पाएगी और न ही यमुना नदी साफ।