“नृपेन्द्र अभिषेक नृप
उपन्यास अपेक्षाकृत नई साहित्यिक विधा है।इसमें सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन को उभारने का प्रयास किया जाता है। इसमें सामान्य जीवन के द्वन्द्व ,फैलाव और गति का समावेश, अन्य साहित्यिक विधाओं की तुलना में अधिक होता है। वर्तमान समय में पत्र – पत्रिकाओं को अपने लेखों से सुसज्जित करने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी कैलाश मांजू बिश्नोई ने अपने पहले उपन्यास ” कलेक्टर साहिबा” के द्वारा ही हिंदी साहित्य की दुनिया में पदार्पण किया है।
इस उपन्यास में एक ऐसी लकड़ी की कहानी है, जो प्रेम और कैरियर के बीच के द्वंद में फंसी हुई दिख रही है। उसके कैरियर और जीवन के उतार चढ़ाव को उन्होंने बहुत ही बारीकी से सूचीबद्ध रूप में लिखा है। इनकी उपन्यास की भाषा शैली भी सरल और सहज है जो कि पाठकों के दिलों में आसानी से जगह बना ले रही है। कहानी की धारा अनवरत प्रवाहित हो रही है, जिससे कि पाठक एक – दूसरे क़िस्सों से जुड़ता जा रहा है। यह प्रवाहित धारा उपन्यास में चार चाँद लगा रही है। उपन्यास के प्रत्येक भाग को पढ़ने के बाद पाठक की जिज्ञासा बढ़ती जाती है। यह उपन्यास पूरी तरह यूपीएससी की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों पर केंद्रित है।
इस उपन्यास की कहानी भले ही काल्पनिक हो लेकिन आईएएस अभ्यर्थी के जीवन में आने वाले उतार – चढ़ाव को बड़ा ही सुंदर शब्दों में पिरोया है। इस काल्पनिक कहानी में वास्तविकता की ख़ुशबू के आने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है कि लेखक ख़ुद ही सिविल सेवा अभ्यर्थी रह चुका है। अपने तैयारी के दिनों के किस्सों को उपन्यास के हिस्से के रूप में शामिल करने से काल्पनिक कहानी में भी वास्तविकता की छोंक लग रही हैं।
कहानी का प्रारंभ वर्तमान तकनीकी दुनिया को प्रगाढ़ कर रहा है, जिसकी प्रेम की शुरुआत एक ई मेल के द्वारा होती है। नायिका ‘एंजल’ समाचार पत्र में एक लेख पढ़ती है , जिसमें लेखक यानी कि नायक गिरीश का ई मेल आई डी भी दिया हुआ रहता है, उसी से दोनों का संपर्क होता है। जहाँ से प्रेम की नैया सफ़र पर निकल पड़ती है। फिर दोनों के मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो जाता है। उपन्यास की शुरुआत ‘यूपीएससी से इश्क’ और समापन ‘लव मुकम्मल’ से होता है।
एंजल के जीवन में कठिनाइयों का अंबार था। समाज में प्रचलन है कि लड़की आईएएस बन गई और लड़का नहीं बना तो फिर प्रेम का वैवाहिकता तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। एंजल का जीवन संघर्ष भरा रहा है, उसे अपने आईएएस तक के सफ़र को तय करने में ही कठिनाई नहीं हुई, बल्कि उसके प्यार को पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा था। इन सबके बावजूद गिरीश ने हमेशा ही हर पल हर जगह एंजल का साथ दे कर अपना फ़र्ज़ निभाया। तभी तो एंजल ने किसी की भी एक न सुनी और गिरीश के साथ ही परिणय सूत्र में बंध गई।
प्रेम और संघर्ष पर आधारित इस कहानी में गिरीश और एंजल ने यह साबित किया है कि संघर्ष करते रहने से जीवन में सफलता पायी जा सकती है। इसीलिए जीवन में संघर्ष करते रहना चाहिए। संघर्ष जीवन को निखारता, संवारता व तराशता हैं और गढ़कर ऐसा बना देता हैं, जिसकी प्रशंसा करते जबान थकती नहीं। संघर्ष हमें जीवन का अनुभव कराता हैं, सतत सक्रिय बनाता हैं और हमें जीना सिखाता हैं। संघर्ष का दामन थामकर न केवल हम आगे बढ़ते हैं, बल्कि जीवन जीने के सही अंदाज़ का अनुभव करते हैं। यह सभी दास्ताँ इस उपन्यास में आपको पढ़ने को मिलेगी।
पुस्तक: कलेक्टर साहिबा
लेखक: कैलाश मांजू बिश्नोई
मूल्य: 280 रुपये