
तनवीर जाफ़री
मध्य प्रदेश सरकार का विजय शाह नामक एक मंत्री इन दिनों अपनी बदज़ुबानी को लेकर चर्चा में है । यह व्यक्ति मध्य प्रदेश की हरसूद विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार की हैसियत से लगातार आठ बार विधायक चुना जा चुका है। उस ने पिछले दिनों भारत पाक तनाव के दौरान हुये ऑप्रेशन सिन्दूर के बाद भारतीय सेना की प्रवक्ता के रूप में भारतीय सेना का पक्ष रखने वाली कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी के बारे में अत्यंत विवादित और आपत्तिजनक बयान दे दिया जिससे देश के आम लोगों से लेकर अदालत तक घोर ग़ुस्से में आ गई। इस बड़बोले मंत्री ने एक सार्वजनिक सभा में कर्नल सोफ़िया को “आतंकियों की बहन” बताया और उनके बारे में अपमानजनक टिप्पणी की। पहलगाम में हुये कायराना आतंकी हमले का संदर्भ देते हुये विजय शाह ने एक जनसभा में कहा कि “जिन लोगों (आतंकवादियों ) ने हमारी बेटियों का सिंदूर उजाड़ा था, मोदी जी ने ‘उन्हीं की बहन’ भेजकर उनकी ऐसी की तैसी करा दी।” निश्चित रूप से यह बयान न केवल उस मंत्री के अज्ञान को दर्शाता है बल्कि इस तरह का बयान देकर उसने कर्नल सोफ़िया कुरैशी की बहादुरी उनकी राष्ट्रभक्ति और भारतीय सेना में उनके योगदान का भी अपमान किया। हालांकि अपनी इस अति विवादित टिप्पणी के बाद देश में उसके विरुद्ध उपजे आक्रोश को देखते हुये उसने मुआफ़ी मांग ली और कहा कि अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची हो तो वे इसके लिए खेद प्रकट करते हैं। परन्तु मंत्री के इस बयान पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उसके विरुद्ध देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज करने का आदेश दे दिया। परिणाम स्वरूप इंदौर ज़िले के महू के मानपुर थाने में उसके विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी मंत्री विजय शाह को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि एक संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए और ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह द्वारा, दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग पर अंतरिम राहत देने से भी इनकार कर दिया और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश पर रोक लगाने से भी मना कर दिया।
जिस कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी को उसने “आतंकियों की बहन” बताकर अपमानित किया ज़रा उसकी पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर भी नज़र डालिये। प्राप्त जानकारी के अनुसार सोफ़िया कुरैशी के परदादा मोहम्मद ग़ौस अंग्रेज़ों की सेना में बड़े पद पर तैनात थे परन्तु 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जोकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण जन-आंदोलन था, उसी दौरान वे ब्रिटिश सेना छोड़कर देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गये। इसी तरह कर्नल सोफ़िया के दादा मुहम्मद हुसैन भारतीय सेना में सेवारत थे। बाद में सोफ़िया क़ुरैशी के पिता ताज मोहम्मद क़ुरैशी भी भारतीय सेना में इलेक्ट्रॉनिक एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स कोर में कार्यरत रहे और 1971 के भारत पाक युद्ध में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना ही नहीं बल्कि कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी के एक चचा इस्माइल क़ुरैशी भी भारतीय सीमा सुरक्षा बल में सूबेदार थे। और उनके एक और दूसरे चाचा वली मुहम्मद क़ुरैशी आज भी सीमा सुरक्षा बल में सूबेदार के पद पर तैनात हैं। अब कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी तो स्वयं भारतीय सेना में हैं ही साथ ही उनके पति कर्नल ताजुद्दीन भी भारतीय सेना में ही हैं और मेकेनाइज़्ड इंफ़ेंट्री में अधिकारी हैं। यही नहीं बल्कि कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी का बेटा 18 वर्षीय समीर क़ुरैशी है और वह भारत की वायुसेना में शामिल होने के लिए परीक्षा दे चुका है जबकि उनकी बेटी हनीमा क़ुरैशी भी वायुसेना में पायलट बनने की तैयारी कर रही है। कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी की तुलना विजय शाह जैसे अनेकानेक उन नफ़रती चिंटुओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि से करके देखिये तो स्वयं पता चल जायेगा की वास्तविक देशभक्त और पेशेवर नफ़रतबाज़ों की देशभक्ति में कितना अंतर है। कर्नल सोफ़िया व उनके परिवार से जुड़े राष्ट्रभक्ति के और भी अनेक क़िस्से हैं।
परन्तु ऐसे महान देशभक्त योद्धा परिवार को अपमानित करने में इस ‘संस्कारी नफ़रती मंत्री’ ने कोई समय नहीं गंवाया। परन्तु स्वयं को चौतरफ़ा ज़लील होता देख अब न केवल मुआफ़ी मांगता फिर रहा है बल्कि मंत्री होने के बावजूद लुका छुपा भी फिर रहा है। इसको यह भी नहीं पता कि कर्नल सोफ़िया पिछले दिनों हुये ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान युद्ध के मोर्चे पर नहीं गयी थीं बल्कि उन्हें व उनके साथ भारतीय वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को भारतीय सेना द्वारा देश की साम्प्रदायिक एकता तथा आतंकयों द्वारा पर्यटकों का धर्म पूछ कर चुन चुन कर मारे गये पुरुषों का ऑपरेशन सिन्दूर के द्वारा बदला लिये जाने के प्रतीक स्वरूप मीडिया के सामने प्रवक्ता के रूप में पेश किया गया था। जबकि ‘अज्ञानी मंत्री’ कर्नल सोफ़िया को युद्ध मोर्चे पर लड़ने वाली बता रहा था? ऑपरेशन सिन्दूर में कर्नल सोफ़िया ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था। यह पहला अवसर नहीं था जबकि दक्षिणपंथी हिंदूवादी विचारधारा के किसी नेता ने इसतरह की बात कर धर्म विशेष के लोगों को अपमानित किया हो और न ही अपनी बदतमीज़ी व बदज़ुबानी के लिये मुआफ़ी मांगने वाला यह कोई पहला व्यक्ति था। बल्कि सही मायने में इस तरह की नफ़रती बातें करना और चारों और से थूके जाने पर मुआफ़ी मांग लेना यह सब बातें इनके संस्कारों में शामिल हैं। संसद से लेकर जनसभाओं व प्रेस वार्ता तक में यह ज़हरीले लोग अक्सर ऐसी बातें करते सुने व देखे जाते है।
दरअसल इनके नफ़रती संस्कार राष्ट्र्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक रहे माधवराव सदाशिव गोलवलकर के विचारों से प्रेरित हैं जोकि अपने लेखन और भाषणों में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को भारत के लिए ख़तरा, “आंतरिक दुश्मन” और “राष्ट्र के तीन दुश्मन” के रूप में बताया करते थे। इनसे प्रेरणा प्राप्त नफ़रती व विषवमन करने वालों को न तो अशफ़क़ुल्लाह ख़ान की क़ुर्बानी की अहमियत का अंदाज़ा है न ही सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज के जनरल शाहनवाज़ ख़ान की बहादुरी व अदम्य साहस का। इन्हें न ही ब्रिगेडियर उस्मान की क़ुर्बानियां नज़र आती हैं न ही वीर अब्दुल हमीद का बलिदान न ही न ही देश को परमाणु शक्ति बनाने वाले मिसाईल मैन भारत रत्न ए पी जे अब्दुलकलाम का भारतीय रक्षा क्षेत्र में किया गया योगदान। जिनके आदर्श गोलवरकर और मुआफ़ी वीर सावरकर व गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे जैसे लोग हों उनसे कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी का अपमान अनायास ही हुआ है,ऐसा हरगिज़ नहीं कहा जा सकता।