साम्प्रदायिक हिंसा, धर्म व राजनीति

ओम प्रकाश उनियाल

भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। अर्थात् सब धर्मों को समान माना जाता है, सबका बराबर सम्मान किया जाता है। किसी प्रकार का भेदभाव नहीं। संविधान में भी यह लिखा है। फिर आपसी टकराहट क्यों? छोटी-छोटी बातों को तूल देकर साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने से देश की अखंडता पर प्रश्न-चिन्ह लगता है। इतिहास गवाह है कि भारत में जब-जब जिसका साम्राज्य रहा उसने देश के टुकड़े ही किए। चाहे वे मुगल-शासक रहे हों या फिर फिरंगी-शासक। इन शासकों ने तब शायद यह नहीं सोचा होगा कि जिस भारत को तोड़कर अलग-अलग देश बनाए गए उनसे ताकतवर व श्रेष्ठ, भारत देश ही होगा। देश के लिए चिंताजनक बात यह है कि आज देश के भीतर ही सीमाएं खिंच रही हैं। धर्म के नाम पर शक्ति-प्रदर्शन व तुष्टीकरण की राजनीति कर देश को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। हाल ही में रामनवमी के दिन देश के जिन राज्यों में हिंसा का तांडव हुआ वहां विरोध की भावना झलकती है। यदि विरोध की भावना न होती तो हिंसा का मतलब ही नहीं उठता था। भारत सनातनी परंपरा वाला देश है। अपनी परंपरा पर देश कभी किसी को हावी नहीं होने देता और ना ही किसी का अहित करता है। यहां सब स्वतंत्र हैं, सबके अधिकार बराबर हैं।