सीता राम शर्मा ” चेतन “
जब आप लिखते हैं अपने और अपनों के सपनों की बात ! लिखते हैं कविता, कहानी, व्यंग्य, उपन्यास या अन्य साहित्यिक विधा पर तो वह शांति, सपनों और काल्पनिक पात्रों तथा घटनाक्रमों के साथ लिखते हैं ! कभी-कभी इन विधाओं के पात्र और घटनाक्रम हमारे, हमारे आसपास और देश-दुनिया के वास्तविक पात्र और घटनाक्रम पर भी आधारित होते हैं । पर जब लिखना आपका शौक या धनोपार्जन का साधन ना होकर विवशता बन जाए । आपका नहीं लिखना आपमें घुटन पैदा करे और लेखन से आपकी दूरी आपको अपराध बोध से ग्रसित करने लगे तो समझिए कि आप सबसे बेहतर लिख रहे हैं । आप सचमुच वो लिख रहे हैं जो आपके साथ आपके परिवार, समाज, देश और दुनिया के लिए भी बहुत जरुरी है । यूं तो भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर चिंतन और फिर लेखन की विवशता पिछली कुछ सदियों से निरंतर रही है पर तकनीकी और आधुनिक चौतरफा बदलाव और विकास के साथ निरंतर पथभ्रष्ट और घोर अमानवीय होती राष्ट्रीय तथा वैश्विक मानवीय और राजनीतिक व्यवस्था ने इन दिनों हर चिंतनशील मनुष्य, विशेषकर लेखक को कुछ नहीं निरंतर बहुत कुछ लिखने को विवश कर दिया है । जो भी लेखक वर्तमान मानवीय और वैश्विक परिस्थितियों पर चिंतित हुए लेखन की विवशता से विवश हुए मानवता के साथ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सर्वोच्च हितों को ध्यान में रखकर उसके बचाव, सुरक्षा और विकास पर लिख रहे हैं, सर्वप्रथम उन्हें हृदय से साधुवाद !
अब सीधी और संक्षिप्त बात भारत के साथ वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों और संकटों पर, जिन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया और हो रहे तथा संभावित विनाश से बचाव के लिए समुचित प्रयास नहीं किए गए तो निकट भविष्य में ही महाविनाश की ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाएंगी, जिनसे बहुत चाहकर भी बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा । सबसे पहले बात वर्तमान राष्ट्रीय परिस्थितियों और संकटों पर, तो उस पर बहुत गंभीरतापूर्वक निष्पक्षता के साथ यह बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि भारत वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल में ना सिर्फ अपनी पुरानी विसंगतियों और अव्यवस्थाओं से मुक्त हो रहा है बल्कि अपने सर्वांगीण विकास और सुरक्षित भविष्य की स्वर्णिम यात्रा भी प्रारंभ कर रहा है । हालांकि इस सरकार में भी नेतृत्व को छोड़कर बहुत सारी कमजोरियां हैं, सर्वोच्च समर्पण और कर्तव्यनिष्ठ भाव से कार्य करने वाले लोगों की भी कमी है और कमी है दलगत स्तर पर पारदर्शी नीतियों और उस कार्यशैली की भी, जो एक अच्छी सरकार में होनी चाहिए । यहां यह कहने लिखने में रत्तीभर संकोच नहीं है कि खुद को महान राष्ट्रभक्त और ईमानदार बताने वाली मोदी सरकार में भी नीति, नीयत और ईमानदारी के स्तर पर बहुत सारी कमियां और खामियां हैं । इसके कारण क्या हैं ? उन कारणों की विवशता क्या है ? इस पर समय रहते भाजपा और भाजपाई सरकार को सोचना समझना और कुछ नहीं बहुत कुछ करना चाहिए । अहंकार और भटकाव सत्ता और शासन का स्वाभाविक गुण है । जो पिछले कार्यकाल से ही स्पष्ट दिखाई देता है । यदि यह भाजपाई प्रमुखों को दिखाई नहीं देता है तो उन्हें इस विषय पर बिना कोई तर्क-कुतर्क दिए बिना इस बात और सच्चाई पर आत्मावलोकन करना चाहिए कि 2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद कई मुख्य राज्यों में भाजपा सरकार होने और बनने के बाद अगले चुनाव में उस राज्य से वह कैसे और क्यों बाहर हो गई ? झारखंड, छत्तीसगढ, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, और अभी-अभी कर्नाटक से भी जिस तरह भाजपा की राज्य सरकार को जनता ने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया है, वह भाजपा के लिए गंभीर चिंतन का विषय है । होना चाहिए । जिस पर यदि समय रहते भाजपा आत्मावलोकन और दूरदर्शी चिंतन कर पाती तो कम से कम कर्नाटक में वह उस कांग्रेस से इतनी बुरी तरह पराजित नहीं होती, जिसका अस्तित्व ही समाप्ति की कगार पर खड़ा दिखाई देता था । हाशिए पर जाती उसी कांग्रेस से बड़ी हार का उसे सामना करना पड़ा है ! हालांकि कर्नाटक में मिली पराजय भाजपा के लिए सुखद और निकट भविष्य में ही होने वाली बड़ी क्षति से उसे बचाने वाली सिद्ध हो सकती है यदि वह इस पराजय से सचमुच कुछ बेहतर सीख सके । मुझे लगता है भाजपा को इसी वर्ष के अंत में होने वाले तीन मुख्य राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के चुनावों में जो बदलाव सबसे पहले करना चाहिए वह अपनी डबल इंजन की सरकार की बात और प्रचार का त्याग है क्योंकि डबल इंजन के वादों और दावों का खोखलापन और झूठ कई राज्यों की जनता ने बहुत गहराई से महसूस किया है । कई राज्यों की जनता ने भाजपाई नेताओं, खासकर मोदी जी की डबल इंजन की बात पर भरोसा कर यह महसूस किया है कि केंद्र सरकार की तरह अपनी राज्य सरकारों की मॉनीटरिंग करने में उत्तर प्रदेश को छोड़कर वह शत-प्रतिशत असफल रहे हैं । संभव है कि इसका बड़ा कारण केंद्र सरकार में उनकी अत्यधिक व्यस्तता का होना हो, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वे यदि चाहते तो अपनी राज्य सरकारों की जरुरी मॉनीटरिंग नहीं कर और करवा सकते थे । झारखंड की भूतपूर्व रघुवर सरकार की तानाशाही, फिजूलखर्ची और दबंगई आज भी मुझे बखूबी याद है । डबल इंजन की डबल मिलीभगत के उस काले दौर को बहुत चाहकर भी नहीं भुलाया जा सकता है जब आम जनता की तो बात ही छोड़िए उस सरकार के अत्यंत विश्वसनीय और माननीय मंत्री तक ने अपनी ही सरकार की कार्यशैली पर बार-बार सवाल उठाते हुए सरकार में भ्रष्टाचार की बात कही थी, पर केंद्र का इंजन बंद पड़ा था या फिर बिना चले तेजी से अपने नाजायज हिस्से का तेल गटके जा रहा था । जनता परेशान थी और नतीजा सामने है । ठीक यही कर्नाटक में हुआ है । जिसे भाजपा और मोदी को बहुत गंभीरतापूर्वक समझने की जरूरत है, यदि समय रहते विश्वसनीयता के पतन का यह दौर जारी रहा तो भविष्य में बेशक इसका दायरा बढ़कर केंद्रीय चुनाव को भी प्रभावित करेगा, जो अधिकांश भारतीयों के साथ कोई भी राष्ट्रीय शुभचिंतक कतई नहीं चाहता । देश की समस्याएं बहुत हैं पर मुझे लगता है कि आगामी एक वर्ष अर्थात मई 2023 से लेकर मई 2024 तक के समय की सबसे बड़ी राष्ट्रीय समस्या और चुनौति इस देश की राजनीतिक उथल-पुथल वाली षड्यंत्रकारी और विनाशकारी राजनीतिक दशा और दिशा को संभालना संवारना ही होगा । अन्यथा देश जिस तरह से पिछले नौ वर्षों में अपनी दशा और दिशा में सकारात्मक तथा सुधारात्मक बदलाव लाया है, यथाशीघ्र वह उससे फिर भटक जाएगा ।
अब बात वर्तमान वैश्विक संकट की, तो वैश्विक संकट भी कई हैं, पर दुनिया के सामने आज जो सबसे बड़ा संकट है, वह रुस-युक्रेन के बीच जारी युद्ध है । यह युद्ध किसी भी समय तृतीय विश्व युद्ध का अत्यंत भयावह रुप ले सकता है । दुनिया के कुछ शक्तिशाली देश और शासक अपने नीजि लाभ के लिए दुनियाभर की शांति व्यवस्था को भंग करने के साथ घोर मानवीय विनाश के लिए भी तैयार बैठे दिखाई देते हैं । इनसे बचने की जरूरत है । देश के रुप में अमेरिका और शासक के रुप में अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडेन इस जारी युद्ध के सबसे बड़े खलनायक की भूमिका में हैं । बहुत स्पष्टता के साथ कहा जाए तो बाइडेन भारत के भी सच्चे हितैषि कतई दिखाई नहीं देते हैं । भारत-चीन युद्ध इनका कूटनीतिक दुःस्वप्न है, जिससे भारत को सचेत रहने की जरूरत है । वैश्विक महाशक्ति का रुतबा खोते अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन अपने प्रमुख प्रतिस्पर्धी और शत्रु रुस को कमजोर करने के लिए उसे युक्रेन के साथ युद्ध में झोंकने में सफल हो चुके हैं और अब वे चाहते हैं कि दूसरे प्रमुख प्रतिस्पर्धी और शत्रु चीन को भारत के साथ युद्ध में झोंक कर उसे भी कमजोर कर दिया जाए । बाइडेन रुस को साधने का लक्ष्य बहुत चतुराई से नाटो के कंधे पर बैठकर कर रहे हैं । उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से नाटो के सदस्य कई पश्चिमी देशों को रुस के साथ युद्ध में झोंक दिया है, जो कोरोना जैसी महामारी के वैश्विक आपदाकाल से त्रस्त होने के बावजूद अपना धन, हथियार और महत्वपूर्ण समय इस युद्ध में नष्ट कर रहे हैं । दुर्भाग्य से बाइडेन की अमेरिका की नीजि शत्रुता को साधने की सामुहिक पश्चिमी रणनीति और कुटनीति अभी तक सफल जरुर रही है पर यह निश्चित है कि इस युद्ध के परिणाम स्वरूप अतंतः अमेरिका को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा । दुनियाभर के देशों को चाहिए कि वह इस युद्ध को विश्वयुद्ध में तब्दील होने से पहले इस युद्ध के मुख्य खलनायक की नीति और नीयत को समझते हुए इसे भयावह होने से पहले ही समाप्त करवाएं । इस युद्ध से दूरी बनाएं ।