दुर्गा पूजा को यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक विरासत में शामिल करने पर श्रेय लेने की होड़

अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’

भारत में अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो दुर्गा पूजा बंगालवासियों के लिए एक जुनून है या यूँ कहें की बंगाल और दुर्गा पूजा एक दूसरे के पूरक हैं , दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता , हालांकि ऐसा भी नहीं है कि दुर्गा पूजा का उत्सव सिर्फ बंगाल में ही मनाया जाता है ,वास्तव में दुर्गा पूजा भारत के अधिकतर हिस्सों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है , लेकिन जो जुनून पश्चिम बंगाल में दिखता है वो बाकी राज्यों में कम ही दिखता है , खासकर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की बात करें तो थीम पर आधारित दुर्गा पूजा पंडाल न सिर्फ देश अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा होती है , विदेशों से टूरिस्ट कोलकाता सिर्फ दुर्गा पूजा देखने आते हैं, एक दृष्टि से दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक पहचान है

ऐसे में यूनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर मान्यता देना देश के लिए सुखद खबर तो हैं ही साथ ही साथ पश्चिम बंगाल के लिए इसका विशेष महत्व है ,किन्तु सांस्कृतिक और धार्मिक खुशियों पर संग आनंदित होने के बजाय अगर श्रेय लेने की होड़ शुरू हो जाए तो दो धुर विरोधी सरकारों के बीच जुबानी जंग का शुरू हो जाना लाजिमी है , लेकिन इससे पहले कि इस आनंद के क्षण में सियासी घमासान का विश्लेषण करें पहले समझने की कोशिश करते हैं कि युनेस्को क्या है ? युनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को सांस्कृतिक धरोहर की मान्यता देने की क्या महत्ता है ? इसके मायने क्या है ? और आखिर में इस बात को समझते हैं कि आखिर केन्द्र सरकार और पश्चिम बंगाल दोनों ही सरकारें इस बात को श्रेय लेने को क्यों आतुर हैं ?

युनेस्को का गठन 16 नवम्बर 1945 को हुआ था ,यह संयुक्त राष्ट्र संघ का एक घटक निकाय है , युनेस्को ( यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन ) अर्थात संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन , यह संगठन शिक्षा , प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति को बढावा देती है , इस संगठन का उदेश्य शिक्षा एवं संस्कृति के अंतराष्ट्रीय सहयोग से शांति और सुरक्षा की स्थापना करना है । युनेस्को में 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं, इसके कुछ सदस्य स्वतंत्र देश भी नहीं हैं, इसका मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है। इसके ज्यादार क्षेत्रीय कार्यालय क्लस्टर के रूप में है, जिसके अंतर्गत तीन-चार देश आते हैं, इसके अलावा इसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं, यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं, भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है।

यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश के कई ऐतिहासिक इमारत और पार्क शामिल हैं। यूनेस्को हर साल दुनियाभर से ऐसी सांस्कृतिक धरोहर को चुनता है जिन्हें बेहतर सुरक्षा और उनके बारे में जागरूकता फैलाए जाने की ज़रूरत है। विगत वर्ष पेरिस में यूनेस्को की 16वीं कमेटी की बैठक हुई जिसमें 48 नॉमिनेशन में से भारत की दूर्गा पूजा समेत, दक्षिण अमेरिका और यूरोप से 3-3 त्योहारों और कार्निवल्स को इस सूची में शामिल किया गया है ।

युनेस्को दूर्गा पूजा को सांस्कृतिक धरोहर की मान्यता की महत्ता की बात करें तो युनेस्को वास्तव वैश्विक स्तर पर चुने हुए सांस्कृतिक विरासत, धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है। दूर्गा पूजा के शामिल होने के साथ युनेस्को में शामिल भारतीय सांस्कृतिक विरासत की संख्या 14 हो गयी है ।

लेकिन जब से इस बात की घोषणा हुई है केन्द्र की भाजपा सरकार और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की सरकार इसका श्रेय लेने को आतुर तो हैं ही आमने-सामने भी हैं। केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने कहा कि इसके नोमिनेशन की प्रक्रिया 2018 में शुरू हुई थी. सामान्य तौर पर इसमें दो साल लगते हैं लेकिन इसे पूरा होने में तीन साल का वक्त लगा. संस्कृति मंत्रालय में मेरी टीम के प्रयासों के सफल होने पर खुशी मिल रही है, अर्थात केन्द्र सरकार के अनुसार दुर्गा पूजा को युनेस्को द्वारा सांसतिक विरासत में शामिल होना केन्द्र सरकार की सोच और कोशिशों का नजीजा है , जबकि ममता सरकार ने इस मुद्दे पर लगातार केन्द्र सरकार को आरे हाथों लिया है और सार्वजनिक रूप से यह कहती रही है कि दुर्गा पूजा को युनेस्को द्वारा सास्कृतिक विरासत में शामिल करना पश्चिम बंगाल सरकार की कोशिशों का नतीजा है , दोनों ही पक्षों के लिए यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा हमेशा से पश्चिम बंगाल सरकार और ममता बनर्जी को मुस्लिम समुदाय का हिमायती बताती है, तुस्टीकरण का आरोप भी लगाती रही है ,जबकि हिंदू के पर्व त्योहार पर ममता बनर्जी का रूख सकारात्मक नहीं रहता , ऐसा संदेश देने की कोशिश भाजपा हमेशा से पश्चिम बंगाल में करती रही है , चाहें सरस्वती पूजा पर छुट्टी का मसला हो , मुहर्रम और मूर्ति विसर्जन पर मुसलमान की तरफ अधिक झुके रहने की बात हो , भाजपा की कोशिश रहती है कि इस मुद्दे पर हिंदू मतों को लामबन्द करें, जबकि ममता बनर्जी भाजपा को मुस्लिम समुदाय विरोधी बताती रही हैं, ऐसे में दुर्गा पूजा के युनेस्को द्वारा सांस्कृतिक विरासत में शामिल होने पर दोनों पक्षों के बीच रशाकशी होना लाजिमी है जो निरंतर जारी है ।

हाल ही में गृह मंत्री के पश्चिम बंगाल दौरे पर कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में केन्द्रीय सांस्कृति मंत्रालय द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव एवं दूर्गा पूजा के युनेस्को के सांस्कृतिक धरोहर में शामिल होने की खुशी में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया । मुख्य अतिथि के तौर अमित शाह जी शामिल हुए तथा उन्होंने कहा कि एक जमाने में हमारी सांस्कृतिक विरासत, उसकी विविधता, भाषा, खान-पान और वेशभूषा की विविधताओं को हमारी कमजोरी के रूप में देखा जाता था , आज 75 साल के बाद दुनिया के सामने हमने सिद्ध कर दिया है की यह विविधता ही हमारी शक्ति है , मोदी जी ने 2014 से 2021 के बीच दुनिया को इसका परिचय भी करा दिया है कि यही हमारी ताकत है और विविधता में एकता भारत की विशेषता है, एक तरह से देखे तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केन्द्र में मोदी सरकार के कारण ही यह संभव हो सकता है ।

यह कार्यक्रम विशेष रूप से इसलिए भी हंगामा बरपा है क्योंकि इस अवसर पर पश्चिम बंगाल सरकार के किसी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया यहाँ तक की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी आमंत्रित नहीं रहीं , जबकि आम तौर पर ऐसे कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को या राज्य सरकार के प्रतिनिधि को आमंत्रित करने की परिपाटी रही है । हालांकि केन्द्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच की तल्खियाँ किसी से छुपी नहीं है , लेकिन ऐसे विषयों और ऐसे मौके पर जब प्रश्न देश की प्रतिष्ठा का हो , देश में खुशियों का माहौल हो तब सरकारों को दलगत राजनीति से उपर उठकर साथ एक मंच पर आना चाहिए ताकि वैश्विक स्तर पर हमारी एकजुटता न सिर्फ प्रदर्शित हो सके अपितु हम वैश्विक स्तर पर एक सकारात्मक संदेश भी देने में कामयाब हो ।