लोकमित्र
पिछले 30 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय, एक दशक से हिंदी और अंग्रेजी में निकलने वाली आर्थिक पत्रिका ‘इकोनॉमी इंडिया’ के संपादक और प्रकाशक, अंग्रेजी में लिखी भ्रष्टाचार पर दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी और समग्र किताब ‘ए क्रूसेड अगेंस्ट करप्शन ऑन दी न्यूट्रल पाथ’ के लेखक, एक गैर राजनीतिक संस्था भारत परिवर्तन अभियान की स्थापना के साथ ही गांवों को समग्रता से देखने और समझने के लिए बिहार के चंपारण जिले के 800 गांवों का सघन भ्रमण करने वाले तथा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और दूसरी संस्थाओं में घूम-घूमकर व्यवस्था परिवर्तन, सामाजिक बदलाव व भ्रष्टाचार पर लैक्चर देने वाले पत्रकार मनोहर मनोज ने नि:संदेह अपनी 472 पेजों वाली भारी भरकम किताब ‘व्यवस्था परिवर्तन एक विमशर्: पहल एक नये भारत के रचना की पर बहुत समग्रता से काम किया है। देश में किसी भी भाषा में शायद ही पहले कभी कोई इतनी सम्पूर्ण किताब व्यवस्था परिवर्तन पर लिखी गई हो। यह सचमुच अतिश्योक्ति नहीं है कि यह किताब समाज के हर हिस्से के सुधार और बदलाव की ऐसी सधी हुई वैज्ञानिक विवेचना करती है कि इसके बाद किसी अन्य विचार की लगता है जरूरत ही नहीं रह जाती।
इस किताब की शुरुआत 51 ऐसे संकल्पों से होती है, जो लगता है किसी अभियान के लिए ली जाने वाली शपथें हैं। नये परिवर्तन की पहल क्या होनी चाहिए इस शीर्षक से लेखक ने जो दर्जनों संकल्प व्यक्त किये हैं, उससे ही इस किताब की समूची भूमिका स्पष्ट हो जाती है। लेखक अपने इन संकल्पों में सबसे पहले राजनीतिक पक्षधरता को स्पष्ट करता है, जिसमें कहा गया है, ‘हमारी नजर में परिवर्तन की यह पहल न तो साम्यवादी होनी चाहिए, न पूंजीवादी और न ही समाजवादी। यह तो सिर्फ सुधारवादी होना चाहिए। नया परिवर्तन कोई ढकोसलावाद नहीं होना चाहिए, यह सिर्फ पारदर्शितावाद होना चाहिए। हमें नहीं जरूरत है जुमलों की, हमें जरूरत है मुद्दों को तलाशने की और उसके ईमानदार समाधान की।Ó किताब की शुरुआत में कसौटी के तौरपर लिखे गये ये वाक्य एक तरह से किताब और लेखक की वैचारिक पक्षधरता को स्पष्ट करते हैं और किताब को व्यवस्था परिवर्तन के एक बड़े मंच में परिवर्तित करते हैं। यह किताब जैसा कि मैंने पहले कहा बहुत बड़े फलक को समग्रता में समेटती है।
इसलिए इस किताब की अगर हम चैप्टरवाइज विवेचना करें तो अपने आपमें एक छोटी पुस्तिका तैयार हो सकती है। इस किताब के व्यापक फलक का अंदाज इसी बात से लगता है कि इसमें 9 वृहद अध्याय हैं, जिनमें 114 विषयवार चैप्टर हैं। इस किताब की खूबसूरती यह है कि इसमें किताबों की बोझिल पारंपरिकता नहीं है। जैसे हजारों किताबों की एक रूटीन परंपरा होती है, यह उससे अलग है। इसमें न सिर्फ आर्थिक, सामाजिक, प्रशासनिक मुद्दों को बहुत सुचिंतित तरीके से विमर्श के मंच में रखा गया है बल्कि इस किताब में भारत की जातीय, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना के साथ-साथ भौगोलिक मनोरचना और उसके समष्टिगत स्वभाव को भी गंभीरता से समझा गया है। यह किताब कई जगहों पर किताब की बजाय रिपोर्ताज पढ़ने का सुख देती है। कई जगह यह सांस्कृतिक विमर्श का सुख देती है तो अगले ही चैप्टर में ऐसा खांटी कानूनी और संवैधानिक विमर्श हमारे सामने मौजूद होता है जो कि एक झटके में ही हमें पिछले अध्याय की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक यात्रा से बाहर ले आता है। इस किताब की सबसे बड़ी खासियत या खूबी इसकी बहुत सोच समझकर की गई ड्राफ्टिंग है। इसमें जहां सैद्धातिक और व्यवहारिक बदलावों को एक साथ व्यवहारिक चश्में से देखने की कोशिश की गई है, वहीं कामकाजी मशीनरी यानी विभिन्न सरकारों के तमाम मंत्रालयों के कामकाज पर भी गहराई से और कल्पनाशील अंदाज में नजर डाली गई है, ताकि बदलाव महज किताबी न हों और न ही इतने आदर्शवादी कि जिन्हें जमीन में उतारा ही न जा सके। हालांकि बहुत
बड़ी होने की वजह से कई बार यह किताब अपनी बनावट में कसावट की कसौटी से दूर छिटक जाती है। देश के मौलिक सुधारों के एजेंडा पर विमर्श करते हुए, कई बार लगता है कि राजनीतिक एजेंडों की इसी मंच पर बात करना, इस विषय की समग्रता में कसावट को बाधित करता है। लेकिन जब हम गहराई से सोचते हैं तो साफ पता चलता है कि समग्रता बहुत नपी-तुली और डिजाइनर आकार-प्रकार की नहीं होती। यह किताब चूंकि लंबे समय में अलग अलग स्थितियों और मन:स्थितियों में लिखी गई है और अलग अलग अध्यायों तथा विस्तारित विषयों को लिखने के बाद एक साथ बैठकर संपादित करने की कोशिश नहीं की गई है, इस वजह से किताब के अंदर अलग अलग अध्यायों और चैप्टरों में अलग अलग रंग दिखते हैं। कई जगह ये हमारे पठन के क्रम को बाधित भी करते हैं और इसी वजह से ये किताब हमें एक सिटिंग में पढ़ी जानेवाली किताबों का शैलीगत आनंद नहीं देती। लेकिन यह किताब शायद विविधता से भरे हिंदुस्तान की तरह है जिसमें एक रंग, एक समस्या, एक खुशी और एक तरीके को ढूंढ़ना अपने आपमें संकीर्णता है। यह किताब सचमुच में भारत जैसे समस्याओं से ग्रस्त ढीलेढाले महादेश को उसके उसी अंदाज में विमर्श करती है और निष्कर्ष के रूप में एक ऐसा ब्लू पिं्रट का आकार-प्रकार छोड़ती है, जो निश्चित रूप से भविष्य के भारत को ज्यादा सक्षम, सुगठित और प्रेरक बनाता है।
किताब का नाम – व्यवस्था परिवर्तन एक विमर्श:पहल एक नए भारत के रचना की’
लेखक का नाम- मनोहर मनोज
प्रकाशक का नाम इकोनामी इंडिया पब्लिकेशन, नयी दिल्ली
खंड व कुल पृष्ठ कुल पेज करीब 475
प्रकाशन वर्ष 2022