मोदी विरोधी गठबंधन में अलग-थलग पड़ती कांग्रेस और राहुल गांधी

Congress and Rahul Gandhi getting isolated in the anti-Modi alliance

संजय सक्सेना

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बना आईएनडीआईए गठबंधन, जिसे आमतौर पर इंडिया गठबंधन के नाम से जाना जाता है. चुनाव में मिली असफलता के बाद लगातार ढलान और बिखराव की ओर अग्रसर है। खास बात यह है की इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस पर ही गठबंधन के क्षेत्रीय दलों द्वारा आंखें दिखाई जा रही है। त्रिमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू यादव, महाराष्ट्र में उद्धव गुट की शिवसेना, शरद पवार की पार्टी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, जम्मू कश्मीर में फारूक और उमर अब्दुल्ला सबका कांग्रेस और गांधी परिवार से मोह और विश्वास उठता जा रहा है। इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को ना राहुल गांधी पर और न प्रियंका वाड्रा पर भरोसा रह गया है कि वह केंद्र या राज्यों की सियासत में कुछ नया करिश्मा कर सकते हैं। यही वजह है दिल्ली के बाद जिस भी राज्य में चुनाव होता है वहां इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय सहयोगी दल या को कांग्रेस को ठेंगा दिखा देते हैं या अपनी शर्तों पर उसे साथ चलने को मजबूर कर देते हैं। यूपी में आम चुनाव के बाद विधान सभा की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिये एक भी सीट नहीं छोड़ी थी।इसी तरह से झारखंड और महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस का हाथ सहयोगी दलों को सीट देने की बजाय सीट मांगने की मुद्रा में रहा। अब दिल्ली और उसके बाद बिहार और पश्चिमी बंगाल में चुनाव होना है। यहां भी कांग्रेस को इंडिया गठबंधन में शामिल दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार में लालू यादव और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जैसे नेता आंखे दिखा रहे हैं।

हालत यह है कि यूपी में नौ विधान सभा सीटों पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिये एक भी सीट नहीं छोड़ी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के सहयोगी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तो अलग-अलग चुनाव ही लड़ रहे हैं। इससे दो कदम आगे की बात की जाए तो दिल्ली में ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेता कांग्रेस के प्रत्याशियों की बजाय आम आदमी पार्टी यह उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं। इसके पीछे अरविंद केजरीवाल से लेकर तेजस्वी यादव तक कई नेताओं द्वारा तर्क यह दिया जा रहा है कि गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था न कि विधान सभा के लिये। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो आम आदमी पार्टी के लिए जनसभा तक करने की घोषणा की है। जबकि ममता बनर्जी एवं उद्धव ठाकरे ने केजरीवाल को समर्थन देने की बात कही है। दिल्ली जैसा हाल महाराष्ट्र का भी है जहां कांग्रेस,शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना में आश्चर्यजनक राजनैतिक परिवर्तन दिखने को मिल रहा है। उद्धव ठाकरे, संजय राउत और सुप्रिया सुले जो हर समय बीजेपी और उसके नेता मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की हर समय मुखालफत करते रहते थे अब फडणीस की खुलकर तारीफ करने लगे हैं। इसी तरह बीते दिनों शरद पवार भी प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे और अब वह भी मोदी सरकार द्वारा लाये जाने वाले वक्फ संशोधन विधेयक से लेकर समान नागरिक संहिता पर प्रतिबद्धता दिखा रहे है। हाल में शरद पवार संघ और उसके स्वयंसेवकों की भी तारीफ कर चुके हैं।शरद पवार ने कहा कि कारसेवकों की मेहनत ही थी जिसका लाभ भाजपा को मिला। इस सबका एक संकेत यही है कि आईएनडीआईए के घटक कांग्रेस के विरुद्ध हो रहे हैं। कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन के कई सहयोगी दल कांग्रेस को आईना दिखाते हुए आईएनडीआईए में नेतृत्व बदलाव की बात करने लगे हैं। नेतृत्व के सवा पर ममता बनर्जी का नाम सामने किया जा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद आईएनडीआईए गठबंधन में कांग्रेस विरोधी क्षेत्रीय दलों की एकजुटता का जो स्वर निकल रहा था, वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में और मजबूत होता दिख रहा है।

बीजेपी और मोदी विरोधी राजनीति में कांग्रेस के अलग-थलग पड़ने से केन्द्र की भविष्य की राजनीति पर इसके गहरे प्रभाव पड़ते नजर आ रहे हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अरविंद केजरीवाल हिंदुत्व की राजनीति को भी आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रंथियों को वेतन देने का वादा किया है। लगता है कि आप हिंदुत्व पर भाजपा को सीधी चुनौती देने वाली पार्टी की छवि बनाना चाहती है।