गोविन्द ठाकुर
राष्टृपति और उप राष्टृपति के चुनावी रणनीति में बीजेपी से मुंहखाना.. विपक्ष के अपने ही उम्मीदवार को सपोर्ट के बदले बिखर जाना..संसद में सभी मुददों पर अपनी डफली बजाना.. क्या कहलाता है। तो फिर..2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष के लिए सवाल है कि मोदी सरकार को ईमानदारी से कौन चुनौति देगा…कांग्रेस, टीएमसी, आप, टीआरएस, या कोई और … सच्चा विपक्ष कौन है, कौन बीजेपी को सभी मामलों में टक्कर देने में सक्षम है, साथ ही कौन सभी विपक्ष को समेट कर साथ ले जा सकता है…यह एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है..संसद से लेकर सड़क तक आधा विपक्ष एक दुसरे को नीचे दिखाने में लगा है…सब मोदी का विकल्प बनने को मरे जा रहे हैं.. या फिर कहें अपनों को ही मार रहे हैं…फिर कैसे 2024 में प्रधाममंत्री मोदी को सत्ता से हटा सकते हैं…
विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस ने पार्टी अध्यक्ष खड़गे को चुनकर मोदी सरकार के खिलाफ मुहीम को आगे बढा दिया है मगर पिछले कुछ घटनाऐ पर विचार करें तो कांग्रेस और विपक्ष के लिए मोदी सरकार को ललकारना मुश्किल होगा।
विगत संसद का सत्र हंगामेदार रहा रहा था विपक्ष ने मंहगाई, बेरोजगारी, जीएसटी और संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग को मुददा बनाया..और संसद की कार्यवाई नहीं चलने दी। मगर इससे क्या हुआ.. सरकार पर इसका थोड़ा सा भी असर नहीं पड़ा..क्यो, क्योंकि विपक्ष दिशाहीन रही। वह संसद से लेकर संसद के बाहर तक किसी एक का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं था। वे यह दिखाने में मशगुल रहे कि केन्द्र सरकार का उन्हीं के नेतृत्व में विरोध हो.. नतीजा यह रहा कि कांग्रेस करीब तेरह दलों को साथ लेकर संसद और बाहर में सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश में लगी रही, और टीएमसी, आप खुलकर कांग्रेस की इस पहल को पलीता लगाते रहे। मंहगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, जीएसटी मुददों पर ये अलग अलग गुट बनाकर विपक्ष की एकता को कमजोर करते रहे..सरकार ने इसका फायदा उठाकर विपक्ष को पूरी तरह से पीछे धकेल दिया। पूरी संसदीय कार्यवाई और राजनीतिक गठजोड़ में यही देखने को मिला कि कांग्रेस बांकी बचे दलों को लेकर सरकार से जूझती रही और टीएमसी आप सरकार को वॉकओवर देती रही है। कांग्रेस के 19 सांसदों को संसद से सत्र भऱ के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया मगर यहां भी विरोध के स्वर गिने चुने ही रहे। सत्र के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ईडी ने समन भेजकर अपनी दफ्तर बुला लिया था मगर फिर भी विपक्ष की ओर से खासकर टीएमसी आप ने सोनिया के साथ कोई तरफदारी नहीं की। विपक्ष की ओर से सोनिया गांधी के समर्थन में संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया गया जिसपर भी इन्होंने हस्ताक्षर नहीं की। जबकि कई मौकों पर कांग्रेस की ओर से ममता और टीएमसी का बचाव किया गया है। जानकारों का मानना है कि ममता बनर्जी और केजरीवाल इसलिए साथ नहीं होते हैं कि वे अपने को कांग्रेस की जगह देखना चाहते हैं।
संसद के बाहर भी विपक्ष पूरी तरह बंटी हुई है और उनमें आपसी ईमानदारी का अभाव है। राष्टृपति चुनाव के दौरान ममता बनर्जी असल विपक्ष की भूमिका दिखा रही थी, विपक्ष का उम्मीदवार कौन हो उसके लिए शरद पवार के साथ मिलकर विपक्ष को गोलबंद कर रही थी। उम्मीदवार के तौर पर सभी चार नाम शरद पवार, फारुख अबद्दुल्ह, गोपाल कृष्ण गांधी और यशवंत सिन्हा यह सभी नाम ममता बनर्जी ने ही सुझाये थे । जो सभी गैर कांग्रेसी थे मगर कांग्रेस ने सभी नामों को स्वीकृत किया यहां तक कि वामदल जो ममता के घोर विरोधी हैं उन्होंने भी इसे स्वीकार कर लिया। मगर ममता की अस्थिरता देखिए बीजेपी के कैडिडेट द्रौपदी मूर्मू के आने के बाद खुद के पार्टी के नेता और कुद के कैडिडेट यशवंत सिन्हा को बंगाल में नहीं घुसने दिया। अपने ही कैड्डेट को यह कहकर विपक्ष को पलीता लगा दिया कि अगर मूर्मू को लेकर बीजेपी बात करती तो वह उसे समर्थन देती। विपक्ष की फजीहत ममता ने से शुरु कर दी। नतीजा रहा कि बहुतों ने अपनी अपनी दुकानदारी देखी और यशवंत सिन्हा की हार सुनिश्चित कर दी। ये तो रही राष्टपति चुनाव की बात अब उप राष्टृपति चुनाव को देखिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ममता बनर्जी से दो बार टेलिफोन पर बात की। ममता ने सोनिया से कहा कि जो भी विपक्ष का उम्मीदवार होगा उसे सपोर्ट करेगी। शरद पवार के घर पर विपक्ष की बैठक में कांग्रेस नेता मार्ग्रेट अल्वा को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसकी घोषणा कोई कांग्रेसी नहीं बल्कि शरद पवार ने ही की थी। मगर ममता बनर्जी ने मार्ग्रेट अल्वा के समर्थन नहीं देने का ऐलान कर दिया। ममता ने यह घोषणा की कि उनकी पार्टी उप राष्टृपति के चुनाव भाग ही नहीं लेगी। जानकारों की माने तो ममता का यह कदम कांग्रेस विरोध और अपरोक्ष रुप से बीजेपी के उम्मीदवार धनकड़ के पक्ष में दिखता है। सवाल उठता है कि क्या इसी विपक्ष को लेकर मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने की बात होती है। क्या ममता बनर्जी सभी विपक्ष को लेकर चल सकती है क्या यह सब होने के बाद भी दुसरे दल ममता को प्रधानमंत्री के दावेदारी को मान लेंगे। कई बड़े नेताओं का मानना है कि ममता बनर्जी वही करेगी जो उसे मोदी के सामने रखे । इसके लिए वह किसी और को विपक्ष का नेता स्वीकार नहीं करेगी, भले ही इसके लिए विपक्ष का टोटा ही क्यों ना लग जाये। हाल फिलहाल में ममता बनर्जी के जो भी कदम उठे हैं उससे तो साफ जाहिर है कि वह विपक्षी एकता को मजबूत नहीं होने देगी क्योंकि कोई दुसरा उन्हें नेता मानेंगे नहीं और वह किसी और को नहीं मानेगी। तो विपक्ष को बीजेपी से लड़ेने से पहले अपनों से ही लड़ना पड़ेगा।
दुसरा आप नेता अरवींद केजरीवाल हैं जो किसी भी विपक्ष की बैठक में शामिल नहीं होते हैं खासकर जब कांग्रेस की उपस्थिति हो। दुसरा उनकी राजनीति पर गौर करें तो यही दिखता है कि आप बीजेपी से नहीं बल्कि कांग्रेस से लड़ रही है। उनकी मुहीम वहीं होती है जहां कांग्रेस बीजेपी को सीधे टक्कर दे रही हो, पंजाब जीतने के बाद अब गुजरात, हिमाचल फिर हरियाणा की तैयारी है। आप के कारण से कांग्रेस गोवा में सरकार बनाते बनाते रह गई क्योकि बीजेपी विरोधी वोट को आपऔर टीएमसी ने आपस में बांट लिए थे। संसद में भी आप के सांसद अपनी ढफली ही बजाते हैं, जिससे किसी ना किसी रुप में सरकार को फायदा होती है। केजरीवाल भी ममता की तरह कांग्रेस की जगह को भरना चाहते हैं। लोगों का अनुमान है कि केजरीवाल भी ममता की तरह उप राष्टृपति चुनाव से खुद को अलग ना कर ले। ऐसे में केजरीवाल क्या सच्चा विपक्ष होने का दंभ भर सकते हैं एक सवाल है।
टीआरएस सुप्रीमों चंद्रशेखर राव फिलहाल मोदी सरकार से लोहा लेते देखे जा रहे हैं साथ ही कांग्रेस के विरोधी होने के बावजूद भी वह उसके साथ कदम ताल कर रहे हैं। कारण हो सकता है कि तेलंगाना में बीजेपी सभी कलाओं के साथ राव को गददी से हटाने की तैयारी में है और उसके लिए बीजेपी राव को नाको चने चबाने वाली रणनीति बना ली है। चंद्रशेखर राव इललिए भी मोदी विरोधी हो गये हैं नहीं तो पहले राव ही सबसे पहले नवीन पटनायक और जगन रैडडी के साथ पीएम मोदी के महजोली रहे हैं। मगर समय के साथ अब राज्य में राव के लिए कांग्रेस से बड़ा विरोधी अब बीजेपी है। मगर राष्टृपति चुनाव में ममता के उम्मीदवार होते हुए भी सिन्हा का सबसे अधिक सहायता चंद्रषेखर राव ने ही की थी। उप राष्टृपति चुनाव में भी राव पूरी तरह से अल्वा के साथ है।
प्रधानमंत्री तो शरद पवार भी बनना चाहते हैं मगर उन्हें मालूम है कि बिना कांग्रेस के के विपक्ष का कोई रोल नहीं है और कांग्रेस किसी दुसरे को नेतृत्व नहीं दे सकती। बावजूद पवार पूरी तरह से संभाननाऐं को टटोलते हुए विपक्षी एकता को मजबूत करने में लगे हैं। बांकी दुसरे दल सपा, राजद, डीएमके, लेफ्ट, शिवसेना, नेशनल कांफ्रेंस, महबूबा मुफ्ती, के साथ कई दुसरे दल विपक्ष की एकता के लिए साथ हैं।
मगर सवाल उठता है कि क्या विपक्ष ममता, केजरीवाल, के कांग्रेस विरोधी रबैये से मोदी नित बीजेपी को टक्कर दे सकता है, शायद नहीं। मोदी सरकार को हटाने के लिए विपक्ष को सभी विपक्षी दलों को साथ लाना ही होगा तभी जाकर वह मोदी सरकार को टक्कर दे सकते हैं।