संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार दिख रही है। 2027 के विधानसभा चुनाव भले अभी दूर हों, लेकिन प्रदेश की सियासी जमीन पर हलचल तेज हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस भी अब खुलकर मैदान में उतरने के संकेत दे रही है। लंबे समय से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस पार्टी ने इस बार शुरुआती दौर में ही अपनी रणनीति साफ कर दी है। पार्टी ने प्रदेशभर में धन्यवाद रैलियों की योजना बनाकर साफ संकेत दिया है कि वह 2027 के चुनाव को हल्के में लेने के मूड में नहीं है।दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में एक तरह से संजीवनी साबित हुए। पिछले कई चुनावों से लगातार कमजोर प्रदर्शन झेल रही कांग्रेस ने इस बार 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके अलावा 7 से 8 सीटें ऐसी रहीं, जहां जीत-हार का अंतर बेहद कम रहा। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, कई सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को दो से तीन प्रतिशत वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व मान रहा है कि अगर संगठन को मजबूत किया जाए और जमीनी स्तर पर मेहनत की जाए तो 2027 में तस्वीर बदली जा सकती है।
कांग्रेस की प्रस्तावित धन्यवाद रैलियां इसी सोच का नतीजा हैं। पार्टी उन सभी लोकसभा क्षेत्रों में रैली निकालने की तैयारी कर रही है, जहां उसने 2024 में उम्मीदवार उतारे थे। खास तौर पर रायबरेली और अमेठी जैसी पारंपरिक सीटों के साथ-साथ सहारनपुर, बाराबंकी, सीतापुर और प्रयागराज जैसे क्षेत्रों में बड़े आयोजन की योजना है। इन सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और पार्टी इन्हें अपना मजबूत आधार मान रही है। इसके अलावा वाराणसी, देवरिया, बांसगांव, झांसी, कानपुर, अमरोहा, फतेहपुर सीकरी, महराजगंज, मथुरा, गाजियाबाद और बुलंदशहर जैसे क्षेत्रों में भी धन्यवाद रैलियों की तैयारी चल रही है, जहां पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा था।पार्टी सूत्रों के अनुसार, खरमास समाप्त होते ही यानी 14 जनवरी के बाद रैलियों का सिलसिला शुरू हो सकता है। पहली रैली 15 जनवरी के आसपास आयोजित किए जाने की संभावना है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद ही इस तरह के कार्यक्रम की योजना थी, लेकिन संगठनात्मक कारणों और रणनीतिक मंथन के चलते इसे जनवरी तक टाल दिया गया। अब पार्टी इसे चुनावी अभियान की औपचारिक शुरुआत मान रही है।
इन रैलियों का मकसद केवल धन्यवाद कहना भर नहीं है। कांग्रेस का फोकस लंबे समय से निष्क्रिय पड़े कार्यकर्ताओं को दोबारा सक्रिय करने पर है। पार्टी के आंतरिक आकलन के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे कार्यकर्ता हैं जो संगठन से जुड़े तो हैं, लेकिन बीते वर्षों में उन्हें न तो कोई जिम्मेदारी मिली और न ही कोई स्पष्ट दिशा। धन्यवाद रैलियों के जरिए नेतृत्व सीधे इन कार्यकर्ताओं से संवाद करेगा और उन्हें आगामी चुनावी लड़ाई के लिए तैयार करेगा।2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश में करीब 18 प्रतिशत वोट शेयर मिला, जो 2019 के मुकाबले लगभग दोगुना है। यह आंकड़ा पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यही बढ़ा हुआ वोट प्रतिशत कांग्रेस को 2027 की तैयारी के लिए आत्मविश्वास दे रहा है। पार्टी मान रही है कि अगर यही रुझान विधानसभा चुनाव तक कायम रखा गया तो उसे दो अंकों में सीटें मिल सकती हैं।
कांग्रेस की रणनीति का एक अहम पहलू पंचायत चुनाव भी हैं। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बिना मजबूत पंचायत स्तर के संगठन के विधानसभा चुनाव जीतना मुश्किल है। यही वजह है कि धन्यवाद रैलियों के साथ-साथ पंचायत चुनाव की तैयारी भी की जा रही है। पार्टी चाहती है कि जिला पंचायत, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम पंचायत स्तर पर कांग्रेस की मौजूदगी मजबूत हो, ताकि संगठन की जड़ें गांव तक पहुंच सकें।राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि कांग्रेस की यह कवायद समाजवादी पार्टी पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। 2024 में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन रहा, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर दोनों दलों के बीच खींचतान की खबरें सामने आती रही हैं। कांग्रेस नेतृत्व चाहता है कि 2027 से पहले अपनी सियासी ताकत दिखाकर वह भविष्य के किसी भी गठबंधन में मजबूत स्थिति में रहे।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का इतिहास रहा है, लेकिन बीते साढ़े तीन दशकों से पार्टी सत्ता से दूर है। 1989 के बाद से कांग्रेस प्रदेश में सरकार नहीं बना सकी। ऐसे में 2027 का चुनाव पार्टी के लिए साख का सवाल भी है। धन्यवाद रैलियों के जरिए कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल चुनावी मौसम की पार्टी नहीं है, बल्कि लगातार मैदान में रहकर संघर्ष करने को तैयार है।फिलहाल प्रदेश की राजनीति में भाजपा मजबूत स्थिति में है, जबकि सपा मुख्य विपक्ष की भूमिका में है। बसपा भी अपने संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश कर रही है। ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनौती आसान नहीं है। बावजूद इसके, 2024 के नतीजों ने पार्टी को उम्मीद दी है कि अगर सही रणनीति अपनाई जाए तो वह दोबारा प्रदेश की सियासत में प्रासंगिक भूमिका निभा सकती है।आने वाले महीनों में यह साफ हो जाएगा कि कांग्रेस की धन्यवाद रैलियां केवल प्रतीकात्मक आयोजन बनकर रह जाती हैं या फिर वाकई पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती देने में कामयाब होती हैं। इतना तय है कि 2027 की लड़ाई की बुनियाद अब धीरे-धीरे रखी जाने लगी है और कांग्रेस ने इसमें अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की पूरी कोशिश शुरू कर दी है।





