दिल्ली के नेताओं के बदौलत गुजरात जीतेगी कांग्रेस

Congress will win Gujarat due to Delhi leaders

गोविन्द ठाकुर

“…गुजरात के अधिवेशन में तय किया गया कि अगला विधानसभा चुनाव अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के बैनर तले लड़ा जायेगा…इसें अलग क्या है यह समझ के दूर दिख रहा है, पहले से भी इसी तरह से चुनाव लड़े जा रहे हैं..बवजूद इसके एक के बाद एक राज्य हाथ से निकल रहा है..सवाल है कि कौन से नेता चुनाव लड़ायेंगे जिनकी समझ स्थानीय नेतों से अधिक है.. शीर्ष नेतृत्व को छोड़ बांकि नेता तो अपनी सीट तक नहीं बचा पा रहे फिर वह कौन सा करिशमा करेंगे… जबकि जरुरत है स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करने की .. बीजेपी से आगे बढकर मुहीम चलाने की .. अगर वही नेता गुजरात भी जैयेंगे जो अबी अभी महाराष्टृ और हरियाणा गये थे.. उसमें गुजरात मोदी और अमित शाह का गृह प्रदेश है…”

राहुल गांधी को पता नहीं किसने समझा दिया है कि गुजरात में उनकी पार्टी के आधे नेता भाजपा से मिले हैं या भाजपा के लिए काम करते हैं। लेकिन ये आधे नेता कौन हैं यह न तो राहुल गांधी को पता है और न उनको समझाने वालों को इसकी जानकारी है। कोई एक महीना पहले राहुल गांधी गुजरात गए थे तो उन्होंने कहा था कि 30-40 ऐसे नेताओं की पहचान करके उनको पार्टी से निकालना होगा। लेकिन एक महीने में वे ऐसे नेताओं की पहचान नहीं कर पाए हैं। अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी गुजरात का अगला विधानसभा चुनाव प्रदेश कमेटी के सहारे नहीं लड़ेंगी, बल्कि दिल्ली के नेता पार्टी को चुनाव लड़ाएंगे। गुजरात में हो रहे कांग्रेस के 84वें अधिवेशन के पहले दिन इस बारे में चर्चा हुई और बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने तय किया है कि गुजरात का चुनाव अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी लड़ेगी।

सोचें, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में कहां से नेता आएंगे? ये नेता भी तो किसी न किसी राज्य के होंगे और क्या गारंटी होगी कि वे भाजपा के लिए काम नहीं कर रहे होंगे? दूसरे दिल्ली और प्रदेशों के नेता कांग्रेस को अपने प्रदेश में तो ठीक से चुनाव लड़ा नहीं पा रहे हैं तो गुजरात जाकर क्या चुनाव लड़ाएंगे? तीसरी बात यह है कि राहुल गांधी और एआईसीसी की ऐसी बातें पार्टी नेताओं को मनोबल गिराती हैं। सोचें, अभी कांग्रेस ने शक्ति सिंह गोहिल को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वे बिहार और दिल्ली के प्रभारी रह चुके हैं और उनके प्रभारी रहते पार्टी संगठन का कैसे भट्ठा बैठा यह सबने देखा है। लेकिन सवाल है कि राहुल को उन पर भरोसा है या नहीं कि वे पार्टी के लिए काम करेंगे? अगर उन पर भरोसा है तो वे जो कमेटी बनाएंगे उस पर भरोसा क्यों नहीं होगा? वैसे भी कांग्रेस तो इस बात के लिए मशहूर है कि बरसों तक उसकी प्रदेश कमेटी नहीं बन पाती है। जैसे बिहार में पांच साल से कमेटी नहीं और तीन अध्यक्ष व तीन प्रभारी बन चुके हैं। कांग्रेस को अपने नेताओं पर संदेह करने की बजाय इन चीजों में सुधार करना चाहिए।