प्रकृति का संरक्षण ही प्रकृति की पूजा

Conservation of nature is worship of nature

ओम प्रकाश उनियाल

यूं तो सनातन धर्म में हर देवी-देवता को पूजा जाता है क्योंकि सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जो युग-युगांतर से चला आ रहा है, जिसकी जितनी व्याख्या की जाए कम ही है। आस्था, श्रद्धा और भक्ति का अथाह सागर है सनातन धर्म। भारत के कोने-कोने में विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। जिनका किसी न किसी देवी-देवता से संबंध होता है। हरेक की अपनी-अपनी मान्यता भी होती है। सुख-समृद्धि, कष्ट-निवारण के लिए अपने इष्ट आराध्य का नित स्मरण कर पूजते हैं। देवी-देवता अदृश्य हैं केवल भाव से ही उनको पूजा जाता है। लेकिन एक देव ऐसा भी है जो साक्षात है। वह है प्रकृति। जिसे हम भुलाते जा रहे हैं। जब मनुष्य के पास किसी प्रकार के संसाधन नहीं हुआ करते थे तब वह प्रकृति पर ही निर्भर रहता था। प्रकृति ही उसका भरण-पोषण करती थी। कंद-मूल उसका आहार थे। वृक्षों के पत्ते व छाल उसके वस्त्र। औषधीय जड़ी-बूटियां बीमारी का इलाज। गुफाएं घर। खेती के लिए वर्षा जल। पीने के पानी के लिए अथाह जल स्रोत। तब प्रकृति की पूजा उसका संरक्षण कर की जाती थी। प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं का वह उतना ही उपयोग करता था जितनी आवश्यकता होती थी।

ज्यों-ज्यों मानव सभ्यता विकसित होती गयी त्यों-त्यों प्रकृति को भुलाया जाने लगा। प्रकृति की पूजा करना तो दूर प्रकृति पर प्रहार कर उसका दोहन होने लगा। प्रकृति भी धीरे-धीरे रुष्ट होने लगी। आज विकास के नाम पर जिस बेरहमी से प्रकृति को उजाड़ कर छिन्न-भिन्न किया जा रहा है उसका भयंकर से भयंकर परिणाम मनुष्य से लेकर तमाम प्राणियों को भोगना पड़ रहा है। यहां तक कि रितु-चक्र भी तेजी से बदलता जा रहा है। प्रकृति बार-बार मनुष्य को विनाश की चेतावनी व संकेत दे रही है। इसके बाबजूद भी मानव चेत नहीं रहा।