
ऋतुपर्ण दवे
कोरोना की रफ्तार फिर पहले सरीखे गति पकड़ रही है। देश-दुनिया में चिंता है। भारत में हर दिन नई-नई आती सूचनाएं डरा रही हैं। उंगलियों पर गिने जाने वाले आंकड़े हफ्ते भर में ही हजारों में पहुंच गए। मरने वालों की संख्या में भी हो रही वृध्दि अलग डराती है। कहां 19 मई तक आधिकारिक तौर पर 257 मामले थे। इस रविवार सुबह तक यह आंकड़े 3395 पार गए हैं। मरने वालों की संख्या भी हर रोज बढ़ रही है। सबसे ज्यादा केरल में 1336 सक्रिय मामले हैं। वहीं इससे होने वाली मौतों की शुरुआत भी हो चुकी है जो अभी बहुत ही कम है। लेकिन एक दिन में 685 मामले दर्ज होना, बड़ा इशारा है। महाराष्ट्र में 467 दिल्ली में 375 गुजरात में 265, कर्नाटक में 234, पश्चिम बंगाल में 205, तमिलनाडु में 185 मामले आए हैं। हांगकांग और सिंगापुर में यह बहुत तेजी से फैलते कोरोना ने भारत में जिस तरह पैर पसारा वो चिंतनीय है। इसके नए वैरिएंट जेएन-1 का प्रकोप जारी है जो पहली बार अगस्त 2023 में मिला था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे दिसंबर 2023 में ही ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित कर साफ किया था कि यह ओमीक्रॉन बी.ए.2.86 का वंशज है। इसमें 30 के लगभग म्यूटेशन पाए गए जिनमें एल.एफ.7 और एन.बी.1.8 की संख्या ज्यादा थी। कोरोना की यह नई लहर साउथ-ईस्ट एशिया में कुछ ज्यादा ही असर दिखा रही है। सिंगापुर, हांगकांग और थाईलैंड जैसे देशों में कोविड के मामले बहुत ही तेजी से बढ़ने के बाद अब भारत में रफ्तार पकड़ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका कारण लोगों के शरीर में एंटीबॉडी का कम हो जाना भी है। भारत में भी ऐसी संभावनाओं से इंकार नहीं है।
इतना तो लगने लगा है कि सप्ताह भर में ही बढ़े संक्रमण के मामलों में जो उछाल आया है वो चिंताजनक है। चीन से भी छन-छन कर जो निकल रहा है उससे इतना तो पता चल गया कि वहां भी बीते एक महीने में कोरोना के मामलों में काफी तेजी आई है। लेकिन दुनिया को कोरोना देकर भी छुपाने और तबाही की कगार पर पहुंचाने के बाद चीन से जितने सच सामने आए, उसने दुनिया में कैसा विनाश मचाया था, सबने देखा।
इस बार संक्रमित होने वाले अधिकतर लोग वो ज्यादा हैं जो या तो कोमर्बिडिटी यानी सह-रुग्णता वाली स्थिति में हैं। इसमें प्रभावितों को एक ही समय में एक से अधिक बीमारियाँ होती हैं जिसके कई कारण हो सकते हैं। कुछ सामान्य जोखिम कारक होते हैं, जबकि कुछ अन्य स्थितियों से उत्पन्न लक्षणों या उसके उपचारों के कारण होते हैं। अभी ज्यादातर लक्षण, कोमोर्बिटी या फिर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में दिख रहे हैं। लेकिन प्रभावित हर आयु वर्ग के लोग हो रहे हैं। स्वास्थ्य जोखिमों को देखते हुए अधिकारियों ने डॉक्टर की सलाह पर अपडेटेड वैक्सीन लेने की सलाह दी है। उच्च जोखिम वालों बुजुर्गों, कोमोर्बिटी के शिकार को पहले से ही सालाना कोविड-19 वैक्सीन लेने की सलाह दी जाती रही है।
केरल के बाद महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में भी कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ना चिंताजनक है। उधर अब हॉन्गकॉन्ग के स्वास्थ्य अधिकारी अल्बर्ट अउ का वो बयान सामने है जिसमें उन्होंने माना कि कोरोना वायरस के मामले वहां तेजी से बढ़ रहे हैं। सांस लेने की तकलीफ वाले मरीजों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने की संख्या अभी साल के महज पाँचवें महीने में ही उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। जबकि चीन में श्वांस संबंधी बीमारियों की जांच करवाने वाले मरीजों में कोविड वायरस पाए जाने के मामले दो गुने होना चिंताजनक है। लोगों को बूस्टर शॉट लेने की सलाह दी गई है। साथ ही चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड की लहर जल्द ही तेज भी हो सकती है। चीन, थाईलैंड और हांगकांग में वहां की सरकारें अलर्ट पर हैं।
साउथ-ईस्ट एशिया के हालात देखते हुए भारत भी सतर्क है। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक यानी डीजीएचएस ने राष्ट्रीय रोग नियंत्रण, आपदा प्रबंधन सेल, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और केंद्रीय सरकारी अस्पतालों के विशेषज्ञों के साथ बैठकें कर चुके हैं। देश की बड़ी आबादी के दृष्टिगत बढ़ती संख्या कहीं न कहीं चिंता बढ़ाने वाली है। अस्पतालों को इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों और श्वसन संक्रमण के गंभीर मामलों की निगरानी करने के लिए कहा गया है। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय स्थिति पर बारीकी से निगरानी रख सतर्क और सक्रिय होकर सुनिश्चित कर रहा है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उचित उपाय किए जाएं।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं आयुष विभाग किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए पूरी तरीके से तैयार है। स्वास्थ्य मंत्रालय पूरी तरीके से सतर्कता के साथ हर परिस्थिति पर नजर रख रहा है। हां, देश भर के सभी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की भी जिम्मेदारी है कि सतर्क रहें, सतर्क करें। ऑक्सीजन और वैक्सीन के इंतजाम पर्याप्त रखे जाएं। ईश्वर करे कि वो स्थिति न आए जिसे हमने देखा, भोगा है। लेकिन पुराने कड़ने अनुभव, काली यादें और कोरोना के कुछ साल का दौर कितना भयावह था, याद कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। याद कीजिए कैसे उंगलियों पर गिनने लायक कोरोना के मामले पहले दर्जन से सैकड़ा, फिर हजार और उसके बाद लाखों में पहुंचे। अच्छा हो इस बार इससे शुरू में ही निपट लिया जाए जिसका तरीका हमें अब पता है। यकीनन एक बार फिर वो दौर आ गया है जब 2019-20 जैसे अहतियात और मास्क की जरूरत आन पड़ी है। अच्छा हो कि अभी से सचेत हो जाएं। इस बार ज्यादा चिंता की जरूरत वैसी नहीं है जैसी पिछले बार थी। चूंकि हमने कोरोना से बचना, लड़ना और निपटना सीख लिया है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम लापरवाह हो जाएं। इस बार भी इस वायरस को चुनौती देने के लिए फिर पुरानी और एक तरह से अब परंपरागत कही गतिविधियों यानी मास्क, दो गज की दूरी, हाथ धोने जैसे तरीकों को अपनाना होगा। इस सच्चाई को मानकर चलना होगा कि अब हमें अगले कुछ वर्षों तक कोरोना के साथ ही जीना होगा इसलिए इससे निपटना भी उनता ही जरूरी होगा। बस तो जरूरत है कि सतर्क रहें। जरा से संदेह पर चिकित्सकीय परामर्श में कोताही न करें और फिर पनप रहे कोरोना के बहुरूपिया वायरस को चुनौती दें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)