पुराने तजुर्बों से कोरोना की नई चुनौती होगी आसान

ऋतुपर्ण दवे

दुनिया एक बार फिर कोरोना की दहशत है। बीते अनुभवों के चलते भारत में चिन्ता से ज्यादा बात हो रही है जो ठीक है। हमेशा की तरह अब नए वैरिएण्ट बीएफ.7 की तबाही का मंजर डरा रहा है। सबसे ज्यादा डर चीन से आ रही हकीकत भरी तस्वीरों और वीडियो ने मचाया हुआ है। चीन की विफल जीरो कोविड पॉलिसी से सारी दुनिया में एक बार फिर उसके प्रति नफरत और गुस्सा है। अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए हल्के-फुल्के, बेअसर और सस्ते उत्पादों को बनाकर इंसानियत को भी नहीं बख्शने वाले चीन ने जिस तेजी से पहले 6 वैक्सीनें बनाकर पहले तो खूब वाहवाही लूटी बाद में इनके धड़ाधड़ बेअसर होने की सच्चाई ने दुनिया को हैरान और परेशान कर दिया। जल्दबाजी में बनी चीनी वैक्सीन जिफिवैक्स, कॉन्विडेसिया, कॉनवेक, कोविलो, वेरो सेल और कोरोनावैक ने दुनिया को कोरोना से बचाने का प्रचार कर खूब बेचा। लेकिन जब ये वो वैसा असर नहीं दिखा पाईं जो भारत सहित दूसरे कई देशों की वैक्सीनों ने दिखाया तो हो हल्ला मचना शुरू हुआ। सच तो यह है कि चीन खुद अपने हल्के और घटिया उत्पादों को लेकर न केवल घिर गया बल्कि सकते में है। सबसे ज्यादा बेअसर दो वैक्सीन कोविलो और वोरो सेल रहीं जिसे एक ही कंपनी सिनोफॉर्म ने बनाया था।

जीरो कोविड पॉलिसी के चलते लगातार लॉकडाउन जैसी तानाशाही भरी चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग की सख्ती ने वहां गृह युध्द जैसे हालात बन गए। महीनों से घरों में कैद लोगों के सब्र के बांध फूटने लगे। हो सकता है कि अभी जो विरोध के स्वर दिख रहे हैं वो शायद आगे ऐतिहासिक बनें? वहां मौत का मंजर और लाशों के अंबार पहले भी दिखे जो अब बेहद ज्यादा हैं। बड़ी हकीकत यह है कि जितना भी सच सामने आता है वह चोरी छुपे जबकि सच्चाई कई गुनी ज्यादा होती है। चीन अक्सर अपनी करतूतों को छिपाने और सच को बाहर न आने देने के लिए पहले ही दुनिया में बदनाम है। उसने कोरोना जैसे मामलों पर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन तक को गच्चा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी जबकि साल के आखिरी दिन भी डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोन गेब्रेयेसस ने फटकारते हुए सच्चाई साझा करने और भारत से बचाव की सीख लेने की नसीहत दी।

जहां वुहान से निकले चीनी शैतान के इलाज खातिर वहां की वैक्सीन के खरीददार देश बेचैन हैं वहीं चीन का यह अहम भी टूटा कि कोरोना फैलाना और काबू करना उसके लिए चुटकियों का खेल है। भारत पहले भी सतर्क था और अब भी। तब और अब में फर्क इतना है कि महामारी का खौफनाक मंजर और मौतों के सच से सीख लेकर इस बार वैसा कुछ नहीं होने देने की कवायद है जो घट चुका है। कोरोना से दुनिया भर में बीते 26 महीनों के दौरान करीब साढ़े 57 लाख लोगों की जान गई है। चंद आंकड़ों पर गौर करें तो अमेरिका में 9, 24,530 ब्राजील में 6,31,069 भारत में 5,30,702 रूस में 3,34,753 मैक्सिको में 3,08,829 पेरू में 2,06,646 यूके में 1,57,984 इटली में 1,48,167 इण्डोनेशिया में 1,44,453 ईरान में 1,32,681 लोग जान गंवा चुके हैं। लेकिन हालात बताते हैं कि पूरी दुनिया में आंकड़ों और हकीकत का सही अंतर बहुत अलग होगा जो कभी पता नहीं लग पाएगा।

अभी भारत में दैनिक संक्रमण दर 0.17 प्रतिशत के करीब है। वहीं साप्ताहिक संक्रमण दर 0.15 प्रतिशत है। जबकि साल के आखिरी दिन 1,57,671 टेस्ट किए गए।

नए साल की शुरुआत के साथ ही भारत में ओमीक्रॉन के नए सब वैरिएण्ट एक्सबीबी.1.5 के मिलने से चिंता बढ़ गई है। पहला मामला गुजरात में मिला है ओमिक्रोन बीए.2 का हाइब्रिड उप-वेरिएंट का एक है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी सीडीएस के आंकड़े की अमेरिका भर में इसके 40 प्रतिशत से ज्यादा मामले सामने आए। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता चीन के हालातों से है। बहरहाल जहां भारत में नए साल की सुबह तक कोरोना के 265 मामले सामने आए और सक्रिय मामलों की संख्या 3,653 हो गई है। जहां विदेशी हवाई यात्रियों की रैण्डम जांच में संक्रमण मिलना और पहले आए कुछ यात्रियों का कोरोना संक्रमित होना चिंताजनक है वहीं शंघाई के देजी अस्पताल का वी चैट मैसेज बताता है कि केवल शहर में बीते हफ्ते 54.3 लाख पॉजिटिव मामले थे। अब यह संख्या सवा करोड़ पहुंच गई होगी जिससे चीन के हालात इसी से समझे जा सकते हैं। यही सच छुपाना पहले भी पूरी दुनिया पर भारी था और दोबारा भारी पड़ने वाला है? वहां चल रही उथल-पुथल और प्रदर्शनों के दबाव से पाबंदियों में कुछ ढ़ील जरूर दी गई है लेकिन दूसरी ओर जांच में ढ़िलाई कराना सरकार की बेबसी दिखाता है। क्रिसमस और नए साल के बावजूद लोग खुद को ही घरों में कैद दिखे। शहरों की गलियां सुनसान हैं तो दूकानें बन्द हैं। कर्मचारी संक्रमित हैं, हालात बद से बदतर हैं। ऐसे में पड़ोसी होने के चलते भारत की चिन्ता जरूरी है।

उधर जापान, दक्षिोण कोरिया और अमेरिका समेत कई देशों में कोरोना तेजी से बढ़ा है। प्रधानमंत्री मोदी का उच्च स्तरीय बैठक लेना गंभीरता को बताता है। भारत में एक बार फिर एहतियात का दौर शुरू होना तय है। निश्चित रूप से व्यापार जगत चिंतित है। दोबारा मास्क जरूरी होगा, सैनिटाइजर, साबुन से हाथ धोना, सामाजिक दूरी का पालन करना तथा भीड़ भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचने की एडवायजरी जारी होगी। जहां 27दिसंबर को देश भर के अस्पतालों में कोरोना संबंधी आपातकालीन तैयारियों लिए हुए मॉकड्रिलल से व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में मदद मिलेगी वहीं भारत में दोनों खुराक और बूस्टर डोज मिलाकर अब तक 220 करोड़ लोगों को वैक्सीन लेना रहात की बात है। हालाकि भारत में बीती लहर में तेजी से संक्रमित हो चुके लोगों में हाइब्रिड इम्युनिटी के चलते खतरा कम है लेकिन सतर्कता जरूरी है। शायद सारी कवायद इस बार इसी पर ज्यादा है। अब भी कइयों ने बूस्टर डोज नहीं लिया है जिसे विशेषज्ञ जरूरी बता रहे हैं।

नया वैरिएण्ट ज्यादा खतरनाक बताया जा रहा है जो दो गुने से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर सकता है। लेकिन सुकून की बात है कि भारत में पहले लाखों संक्रमित हुए जो ठीक भी हुए क्योंकि हमारी अपनी वैक्सीन ने प्रतिरोधी ताकत बनाया। इसी कारण विशेषज्ञ अब डर व खौफ के बजाए सतर्कता को तवज्जो दे रहे हैं। जब सतर्कता से ही दोबारा मंडरा रही चीनी महामारी को पटखनी दे सकते हैं तो बुरा क्या है? क्यों न हम अभी से दो गज की दूरी, मास्क जरूरी पर अमल कर पुराने अनुभवों से कोरोना के लिए खुद ही चुनौती बन जाएं!