नरेंद्र तिवारी
भारत के लिए गौरवशाली पल है। इस गरिमामयी उपलब्धि से भारत के कला प्रेमी थिरक उठें है। थिरके भी क्यों नहीं बात ही थिरकने की है। नाटू-नाटू पर ऐसे नाचे की सबको नचा दिया। फ़िल्म आरआरआर के गाने नाटू-नाटू मतलब नाचो-नाचो को बेस्ट ओरिजनल सॉन्ग के लिए अमेरिका के लॉस एंजेलिस में आयोजित 80 वें गोल्डन ग्लोब अवार्ड 2023 के लिए नवाजा गया। गोल्डन ग्लोब अवार्ड्स आस्कर के पुरुस्कार के बाद फ़िल्म ओर मनोरंजन जगत का सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है। यह उपलब्धि भारतीय सिनेमा जगत की स्वर्णिम उपलब्धियों में से एक मॉनी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में ‘भारतीय सिनेमा के लिए ऐतिहासिक क्षण है।, फ़िल्म के संगीतकार एमएम कीरावानी ने अवार्ड लेनें के दौरान भावुक अंदाज में कहा ‘इस उपलब्धि के पीछे पूरी टीम छिपी है। जिसमे डायरेक्टर, राजमौली, कोरियोग्राफर प्रेम रक्षित, गीतकार चंद्रबोस और गायक सिप्लिगूँज उन्होनें भैरव को भी धन्यवाद दिया।’ इस गाने की शूटिंग यूक्रेन के राष्ट्रपति भवन में हुई थी। कलाकार होने के नाते राष्ट्रपति जेलेन्स्की ने खुद इस गाने की शूटिंग के लिए मंजूरी दी थी। फ़िल्म आरआरआर में जूनियर एनटीआर और रामचरण ने 1920 के ब्रिटिश राज के समय भारत के स्वतंत्रता सेनानी कोमाराम भीम और अल्लुरी सीतारामाराजू की भूमिका निभाई थी। इसके अलावा इस फ़िल्म में आलिया भट्ट, अजय देवगन के साथ-साथ ब्रिटिश एक्टर रे स्टीवेंसन, एलिसन डूडी और ओलिविया मारेंस भी शामिल थै। फ़िल्म में जूनियर एनटीआर और रामचरण के देशी डांस नाचो-नाचो में ऐसा धमाल किया की ब्रिटिश डांस पार्टी में नाचो-नाचो पर गोरे अंग्रेज भी थिरकने लगे थै। गीत भी देशी अंदाज से परिपूर्ण दिखाई दिया। शब्द-शब्द देशी ओर गांव के रंग में रंगा दिखाई दिया। अवार्ड मिलने के बाद इस गीत के शब्द-शब्द पर गौर किया। जिसके बोल कुछ इस तरह के है ‘बैल जैसे धूल उड़ा के, सींग उठा के तुम भी नाचो। बाजे जम के ताल-ढोल, बेटा राजू , उड़ के नाचो। तीरों से भी तेज कोई कर सके जो भेद नाचो, अस्तबल में घोड़े जैसे बाग-डोर छोड़ नाचो। मिट्टी जोता, रोड मोटा, मिर्चा खाके ऐसे नाचो, हाँ आजा छोरे, हाँ आजा गोरे हाँ आजा छोरे। नाचो, नाचो-नाचो, नाचो वीरे नाचो। कच्ची केरी जैसा खट्टा नाचो, नाचो, नाचो-नाचो, बिच्छू काटा लागे ऐसा नाचो। गूँजे ढोल ऐसे देखो धन-धना के रोगी नाचे, शोर सुन लो है धमाका, जैसे शेर हाथी नाचे। देखो, दिल का ये मेला, यारा अपने साथ नाचो। एड़ियों के जोरों पे धूम-धड़का देशी नाचो, वो पसीना माथे का चमके-दमके ऐसे नाचो। नाचो, नाचो-नाचो, उसने चखा लागे तीखा नाचो, झूमे गांव, है रेला, ऊंचा पाँव यूँ पटका है ये देशी एक मेला, कैसा रहा यकायक़ी। धुमुक-धुमुक नाचे जा, दुनियाँ हिला दे सारी। नाचो, नाचो, नाचो।’ इस गाने के बोल भी देशी अंदाज में रंगे सजें संवरें है, तो नृत्य भी दुनियाँ को हिला देने वाला रहा है। दुनियाँ को हिला देने वाला ही नहीं भारत को अवार्ड दिला देने वाला भी रहा है। फ़िल्म आरआरआर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी हुई है। इसलिए राष्ट्रीय भावनाएँ भी उफान मारती दिखाई देती है। फ़िल्म आरआरआर भी लगान की तरह अंग्रेजो के द्वारा भारतीयों से दोयम दर्जे के व्यवहार को प्रदर्शित करतीं फ़िल्म है। दक्षिण भारत का भी अपना स्वतंत्रताकालीन इतिहास रहा है। इस फ़िल्म में अंग्रेजो के भारतीयों पर किये जुल्म और ज्यादतियों को बखूबी प्रदर्शित किया। दक्षिण भारतीय फिल्मों ने विगत कुछ बरसों में दक्षिण के दर्शकों को नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत ओर दुनियाँ के दर्शकों को आकर्षित किया है। फिल्में सिर्फ मनोरंजन का माध्यम ही नहीं होती है। फिल्मों के माध्यम से जनमानस में राष्ट्रीय चेतना का संचार भी होता है। फिल्में समाज मे होतें अन्याय, जुल्म ज्यादतियों के विरुद्ध एक नवीन चेतना का निर्माण करती है। दक्षिण भारतीय फिल्मों का बढ़ता आकर्षण इन्ही मानवीय भावनाओं के प्रगटीकरण के परिणामस्वरुप ही निर्मित हुआ है। जिसे वैश्विक स्तर पर सराहना के साथ अवार्ड भी मिल रहा है। आरआरआर ने ग्लोबल लेवल पर 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की थी। नाटू-नाटू याने नाचो-नाचो बेस्ट ओरिजनल सॉन्ग मोशन पिक्चर की कैटगरी में गोल्डन ग्लोब अवार्ड के लिए चुना गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिले इस अवार्ड से भारत का गौरव बड़ा है। फ़िल्म का यह गाना आस्कर फ़िल्म अवार्ड की दौड़ में भी शामिल है। भारतीय फिल्म जगत के इस गौरव पूर्ण क्षण से पूरा भारत गौरवान्वित है। फ़िल्म के नाचो-नाचो गाने को सुनकर और देखकर मन मयूर सा नाच उठता है। भारतीय संगीत की परिभाषा को जाना तो पाया “गीतम, वादयम तथा नृत्यं त्रयम संगीतमुच्यते” अर्थात गायन, वादन एवं नृत्य इन तीनो कलाओं के समावेश को ही संगीत की पूर्णता माना गया है। भारत में दक्षिण भारतीय संगीत दक्षिण भारत मे तो हिंदुस्तानी संगीत शेष हिंदुस्तान में लोकप्रिय रहा है। भारतवर्ष में सारी सभ्यताओं में संगीत का बड़ा महत्व रहा है। साधक नृत्य, वादन ओर गायन से ही ईश्वर की आराधना करतें है। भारत के देशी गीत और नृत्य को अंतर राष्ट्रीय मंच पर सम्मान मिलना भारतीय संगीत और फिल्मी जगत के लिए गौरव की बात है। भारतीय सिनेमा और मनोरंजन जगत को अपनी उत्कृष्टता प्रदर्शित करना होगी। अंतर राष्ट्रीय मंच पर भारत की ख्याति और कीर्ति पताका फहराने में फिल्मी जगत भी अपनी अहम भूमिका निभा सकता है। डायरेक्टर एसएस राजामौली की फ़िल्म आरआरआर ने यह गौरव भारत को दिलाया है। देशी नाचो-नाचो पर सारा भारत थिरक रहा है। यह थिरकन निरन्तर चलती रहना चाहिए। गोल्डन ग्लोब से आस्कर तक चलती रहना चाहिए। भारत के सम्पूर्ण फिल्मी जगत को संगीत की इस महान कला में फूहड़पन और अश्लीलता के समावेश की गैरजरूरी मौजूदगी पर भी विचार करना होगा। संगीत की यह पवित्र परम्परा जिसमे मनोरंजन के साथ अध्यात्म का भी समावेश है। संगीत की यहीं आध्यात्मिक शक्ति विश्व के लोगो में भारत के प्रति जुड़ने का भाव पैदा करती रही है। नाचो-नाचो के देशी नृत्य और गीत ने इस बात को पुख्ता कर दिया है। सच रामचरण और एनटीआर फ़िल्म में ऐसे नाचे की सारी दुनियाँ को हिला दिया है।