तनवीर जाफ़री
कहा तो यही जाता है कि पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी प्राणियों में प्रकृति ने सर्वोत्तम प्राणी के रूप में केवल मानव की ही उत्पत्ति की है। प्रवचन,सत्संग,धर्म व अध्यात्म की बातें,अच्छी बुराई के भेद,करुणा,प्रेम,दया क्षमा,परमार्थ,परोपकार,सेवा-सत्कार जैसी बातें केवल मानव के मुंह से ही निकलती सुनाई देती हैं। यह मानव ही है जो कि विपदा के समय एक दूसरे का साथ देता है। ग़रीब,असहाय,भूखे,प्यासे,कमज़ोर अबला की मदद करने को आतुर रहता है। परन्तु सहस्त्राब्दियों से लिखा जाने वाला इतिहास यहाँ तक कि इतिहास लेखन से पूर्व की पौराणिक कथाओं से भी यही पता चलता है कि इन्हीं मानव में हर दौर में अनेक सनकी शासक भी पैदा हुये। अनेक शासक ऐसे हुये जिन्होंने स्वयं को ईश्वर मनवाने तक की कोशिश की जब कि कुछ ऐसे भी हुये जो क्रूरता की सभी हदों को पार कर गये। परन्तु उसका नतीजा यही है कि आज इतिहास उन बदनाम शुदा सनकी शासकों को या तो सनकी शासकों की सूची में रखता है या तानाशाहों अथवा क्रूर शासकों के रूप में उन्हें याद किया जाता है। इनमें एडोल्फ़ हिटलर जैसे तानाशाह भी हुये हैं जिसकी क्रूरता व तानाशाही के चलते जर्मनी के लोग आज भी अपने देश पर लगे ‘हिटलर’ रुपी धब्बे से शर्मिंदगी महसूस करते हैं। एक हिटलर ही नहीं बल्कि इस दुनिया ने स्टेलिन,मुसोलिनी,ईदी अमीन,किम जोंग ईल,मुअम्मार ग़द्दाफ़ी,सद्दाम हुसैन,ज़ियाउलहक़ जैसे अनेक शासक देखे जिन्होंने अपने सनकी व ज़िद्दी स्वभाव के अनुरूप शासन किया। परन्तु प्रायः उनके शासन करने का सनकी अंदाज़ न केवल उन शासकों व तानाशाहों की अपनी ही जान का दुश्मन बना बल्कि ऐसे कई देश बर्बादी व तबाही की कगार पर भी पहुँच गये और इन्हीं के ग़लत फैसलों के चलते लाखों बेगुनाह लोग मारे भी गये।
आजके दौर में भी दुनिया के के कई देशों पर ऐसे ही सनकी लोगों का राज है। नतीजतन दुनिया युद्ध,तनाव,संबंधों में कड़वाहट व अविश्वास,अनिश्चितता जैसे वातावरण में जी रही है। विश्व के अनेक शासक सत्ता में हमेशा बने रहने के लिये तरह तरह की युक्तियाँ इस्तेमाल कर रहे हैं। कोई संविधान बदल कर आजीवन शासन करना चाह रहा है तो कोई धर्म जाति व क्षेत्रवाद का ज़हर बोकर अपनी सम्प्रदायिकता व जातिवाद की फ़सल तैयार कर रहा है। कोई अपने देशवासियों को ऐसे सपने दिखाता है जिससे लगे कि इससे पहले तो इतना बड़ा देशभक्त तो कोई पैदा ही नहीं हुआ। हद तो यह है कुछ सनकी लोग स्वयं को भगवन का अवतार कहने से भी नहीं हिचकिचाते। परिणामस्वरूप जनसमस्याओं व देश की प्रगति के तमाम मुद्दे इसी तरह की फ़ुज़ूल की भावनात्मक बातों में उलझकर रह जाते हैं।
अमेरिका के लोगों ने भी एक बार फिर 47वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में देश की बागडोर सौंपी है। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालते ही अपने पूर्ववर्ती जो बाइडन द्वारा बनाये गये क़रीब 80 नियम-क़ानूनों को निष्प्रभावी बनाने के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं। शपथ लेने के बाद जिन दस्तावेज़ों पर ट्रंप ने सबसे पहले हस्ताक्षर किए उनमें बढ़ते वैश्विक तापमान से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए अहम पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के अलग होने वाले आदेश पर भी हस्ताक्षर किए हैं। इसी तरह एक विवादित फ़ैसला ट्रंप ने यह किया है कि उन की पराजय के समय 6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल में जो हिंसा हुई थी ट्रंप ने उस हिंसा में नामज़द अपने लगभग 1500 समर्थकों की सज़ा माफ़ करने की घोषणा कर दी। इनमें धुर-दक्षिणपंथी समूह ओथ कीपर्स और प्राउड बॉयज़ के सदस्य भी हैं। इनके सदस्य कैपिटल हिंसा से जुड़े केस में देशद्रोह की साज़िश जैसे मामलों के दोषी क़रार दे दिए गए हैं। ख़बर तो यह भी है कि न केवल इन अपराधियों को मुआफ़ किया गया है बल्कि उन लोगों पर मुक़द्द्मा चलने की भी ख़बर है जिन्होंने इन अपराधियों पर केस दर्ज किया था। इससे बड़ा सत्ता का दुरूपयोग और पक्षपातपूर्ण फ़ैसला और क्या हो सकता है ?
इसके पहले चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप कनाडा और ग्रीनलैंड को अमेरिकी राज्य बनाने की बात कह चुके हैं। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री टुडो सहित अनेक विपक्षी नेता भी कह चुके है कि ऐसा होना मुमकिन ही नहीं है कि कनाडा 51वें राज्य के रूप में अमेरिका का हिस्सा बन जाये। गत दिसंबर में भी ट्रंप कई बार कनाडा को अमेरिका का 51 वां राज्य और ट्रूडो को उसका गवर्नर बता चुके थे। यहां तक कि क्रिसमस के बधाई संदेश में भी ट्रंप ने ट्रुडो को कनाडा का गवर्नर बताया था। परन्तु इस तरह की बे सिर पैर की बात कर ट्रंप ने न केवल अपनी धुर दक्षिणपंथी राजनैतिक सोच का परिचय दिया है बल्कि दुनिया को यह सोचने के लिये भी मजबूर कर दिया है कि जो अमेरिका, कनाडा जैसे अपने सैन्य,व्यवसाय व ऊर्जा जैसे अनेक क्षेत्रों में भागीदारी निभाने वाले निकटस्थ देश पर अपनी बुरी नज़रें गड़ा सकता है उस अमेरिका से दुनिया के दूसरे देश आख़िर क्या उम्मीद करें ? इसी तरह ट्रंप ने अपने शुरुआती फ़ैसलों में मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर ‘अमेरिका की खाड़ी’ करने का आदेश दिया है। इसी आदेश के अंतर्गत अलास्का के माउंट देनाली का नाम बदलकर अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैकिन्ली के सम्मान में माउंट मैकिन्ली करने का भी निर्देश दिया गया है। ट्रंप ने ये भी घोषणा कर दी है कि अमेरिका में केवल दो जेंडर को मान्यता होगी- पुरुष और महिलाएं।
डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा नहर को “एक मूर्खतापूर्ण तोहफ़ा” बताते हुये दावा किया है कि “पनामा नहर को चीन संचालित कर रहा है। ” ट्रंप ने कहा, “हमने इसे चीन को नहीं दिया। हम इसे वापस लेंगे। इसी तरह ट्रंप द्वारा लिया गया एक और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है ‘अमेरिका का डब्ल्यूएचओ से अलग होना। यह ख़बर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के स्वास्थ्य जगत के लिए एक बुरी ख़बर है? ट्रंप ने सत्ता संभालते ही कह दिया है कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ से अलग हो जाएगा। अमेरिका के पीछे हटने से डब्ल्यूएचओ की ओर से दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता पर असर होगा, जिसके लिए यह संगठन अपने बनने के साल 1948 से जाना जाता रहा है। इसी आदेश में ट्रंप ने बाइडन के कार्यकाल के दौरान आप्रवासियों के लिए लाई गई कई योजनाओं पर भी रोक लगा दी है। जिससे दुनिया के कई देशों में बेचैनी बढ़ गयी है। जिन अप्रवासियों का अमेरिका के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान है ट्रंप उन्हें अमेरिका से निष्कासित करने पर तुले हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि दुनिया के जिस किसी भी देश में इस तरह का संकीर्ण व ‘सनकी नेतृत्व ‘ है तो वह केवल उस देश के लिये ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिये ख़तरा है।