योग-क्रांति से नये मानव एवं नये विश्व की संरचना संभव

Creation of new human and new world is possible through yoga revolution

ललित गर्ग

हिंसा, युद्ध, आतंकवाद, आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में दुनिया शांति एवं अमन चाहती है और इसका सशक्त माध्यम है योग। इंसान से इंसान को जोड़ने, शांति का जीवन जीने एवं स्वस्थ जीवन के लिये भारतीय योग के महत्व को दुनिया ने स्वीकारा है। योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है, यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का आधार है, संयम और अहिंसा प्रदान करने वाला तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है। योग के व्यापक मानवहितकारी महत्व के कारण ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिये गये अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद सर्वप्रथम इसे 21 जून 2015 को पूरे विश्व में मनाया गया। इस वर्ष 11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने योग दिवस की थीम ‘योगा फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ’ रखी है। इसे आसान भाषा में समझें तो ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योगा’ है। इसका मतलब है कि जिस तरह से पृथ्वी एक है ठीक उसी प्रकार से हमारा स्वास्थ्य भी एकमात्र है, जिसे हमें दुरुस्त रखने की जरूरत है। इसी से नये मानव एवं नये विश्व की संरचना संभव है।

आज जबकि मनुष्य जीवन अनेक असाध्य बीमारियों से जूझ रहा है, ऐसे जटिल स्वास्थ्य-संकट के दौर में इस थीम का मुख्य उद्देश्य है कि हमें हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करनी चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य एकमात्र ऐसी चीज है, जिसके सहारे आप अपना स्वस्थ जीवन जीते हुए न केवल परिवार, समाज, राष्ट्र बल्कि विश्व के लिये एक ऊर्जा, एक शक्ति एवं एक गति बन सकते हो। प्रधानमंत्री मोदी ने योग को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने वाली जीवनशैली के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने समाज के सभी वर्गों में योग की पहुंच बढ़ाने और स्वस्थ, खुशहाल और अधिक सामंजस्यपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए योग को एक साधन के रूप में उपयोग करने की दिशा में संयुक्त प्रयासों की अपील की। योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि अपने भीतर एकता की भावना, अहिंसा एवं शांति, दुनिया और प्रकृति की खोज है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न महासंकट से निपटने में मदद कर सकता है।

योग एवं ध्यान के माध्यम से भारत दुनिया में गुरु का दर्जा एवं एक अनूठी पहचान हासिल करने में सफल हो रहा है। आज हर व्यक्ति एवं परिवार अपने दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव/दबाव महसूस कर रहा है। हर आदमी संदेह, अंतर्द्वंद्व और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मनुष्य के सम्मुख स्वस्थ-शांतिपूर्ण जीवन का संकट खड़ा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीक है, एक विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। जब हम योग करते हैं, श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब हमारे शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिये प्रेरित करती है, जिसकी आज विश्व मानवता को सर्वाधिक अपेक्षा है।
एक ऐसे विश्व में रहने की कल्पना करें जहां आपकी प्रत्येक सांस मानसिक शांति, शारीरिक शक्ति और हमारे साझा ग्रह पर सद्भाव को बढ़ावा देती हो। एक समय में एक मुद्रा, एक श्वास, एक क्षण, यह जानने के लिए कि योग किस प्रकार आपके जीवन और आपके आस-पास की दुनिया को बदल सकता है, योग दिवस का मुख्य ध्येय है। मनुष्य, पशु और पौधे सहित सभी जीवित प्राणी हमारे ग्रह को अपना घर मानते हैं। हमें प्राकृतिक दुनिया के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व बनाए रखते हुए इसकी देखभाल करनी चाहिए। योग हमें सद्भावना से रहना, सचेत रहना और समझदारी-विवेक से निर्णय लेना सिखाता है। हम योग का अभ्यास करके पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। पर्यावरण की स्थिति का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। जब हम अपने पर्यावरण और खुद का ख्याल रखते हैं तो सभी को फायदा होता है। विश्व अनेक स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनमें प्रदूषण, तनाव और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ शामिल हैं। योग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक त्वरित, प्राकृतिक साधन है।

अभी कुछ दिन पहले ही समाचारपत्रों में पढ़ा कि कैंसर क्यों होता है, इसके कई कारण हैं। एक कारण यह है कि जो लोग मस्तिष्क का सही उपयोग करना नहीं जानते, उनके कैंसर हो सकता है। मस्तिष्क विज्ञानी तो यह भी कहते हैं कि मस्तिष्क की शक्तियों का केवल चार या पांच प्रतिशत उपयोग आदमी करता है, शेष शक्तियां सुप्त पड़ी रहती है। यह भी कहा जाता है कि कोई मस्तिष्क की शक्तियों का उपयोग सात या आठ प्रतिशत करने में समर्थ हो जाए तो वह दुनिया का सुपर जीनियस बन सकता है। सबसे पहले हमारी जानकारी मस्तिष्क विद्या के बारे में होनी चाहिए। योग विद्या भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। योगविद्या के आचार्यों ने मस्तिष्क विद्या से दुनिया का परिचय कराया था। हमारे मस्तिष्क में एक पर्त है एनीमल ब्रेन की। वह पर्त सक्रिय होती है तो आदमी का व्यवहार पशुवत हो जाता है। जितने भी हिंसक और नकारात्मक भाव हैं, वे इसी एनीमल ब्रेन की सक्रियता का परिणाम है। इसे संतुलित करने का माध्यम योग है।

हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर भी विचार करेंगे। यहीं से हमारी तरक्की का रास्ता खुलता है और इसके लिये योग ही प्रभावी माध्यम है। हम अपनी समस्या को समझें और अपना समाधान खोजें। समस्याएं परेशान करती हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। आज विश्व में जो आतंकवाद, हिंसा, युद्ध, साम्प्रदायिक विद्धेष की ज्वलंत समस्याएं खड़ी हैं, उसका कारण भी योग का अभाव ही है। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है- जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उसे योग को अपनाना होगा। बार-बार क्रोध करना, चिड़चिड़ापन आना, मूड का बिगड़ते रहना- ये सारे भाव हमारी समस्याओं से लडने की शक्ति को प्रतिहत करते हैं। इनसे ग्रस्त व्यक्ति बहुत जल्दी बीमार पड़ जाता है। हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम योग को अपनी जीवनशैली बनायेंगे।
योग एवं ध्यान एक ऐसी विधा है जो हमें भीड़ से हटाकर स्वयं की श्रेष्ठताओं से पहचान कराती है। हममें स्वयं पुरुषार्थ करने का जज्बा जगाती है। स्वयं की कमियों से रू-ब-रू होने को प्रेरित करती है। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराती है। आज जरूरत है कि हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिये औरों के मुंहताज न बने। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान हमारे भीतर से न मिले। भगवान महावीर का यह संदेश जन-जन के लिये सीख बने- ‘पुरुष! तू स्वयं अपना भाग्यविधाता है।’ औरों के सहारे मुकाम तक पहुंच भी गए तो क्या? इस तरह की मंजिलें स्थायी नहीं होती और न इस तरह का समाधान कारगर होता है। आधुनिक भौतिकवादी एवं सुविधावादी जिंदगी मनुष्य को अशांति, असंतुलन, तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट की ओर धकेल रही हैं, जिससे अस्त-व्यस्तता बढ़ रही है। ऐसी विषमता एवं विसंगतिपूर्ण जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिये योग एक ऐसी रामबाण दवा है जो माइंड को कूल तथा बॉडी को फिट रखता है। योग से जीवन की गति को एक संगीत एवं शांतिमय रफ्तार दी जा सकती है। योग में गहरी दिलचस्पी लेने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक महान संकल्प लेकर उसे कार्यान्वित किया है। निश्चित ही उनकी योग-क्रांति विश्व मानवता के जीवन में विकास, अहिंसा, सुख और शांति का माध्यम बन रही है। आंतरिक व आत्मिक विकास, मानव कल्याण से जुड़ा यह विज्ञान सम्पूर्ण दुनिया के लिए एक महान तोहफा है।