इंद्र वशिष्ठ
अंजलि हत्याकांड मामले ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबलियत को भी बेनकाब कर दिया है. क्या आईपीएस अफसरों को तफ्तीश करना भी नहीं आता? क्या अफसरों को एफआईआर दर्ज करने की बुनियादी कानूनी समझ तक भी नहीं है? पुलिस ने इस मामले में शुरू में जानलेवा दुर्घटना का मामला दर्ज किया था. छीछालेदर होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा 304 लगाई गई. गृह मंत्रालय के आदेश के बाद 17 जनवरी को हत्या की धारा 302 लगाई गई. गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद ही 12 जनवरी को इस मामले में रोहिणी जिले के 11 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया.
लेकिन गृहमंत्री द्वारा डीसीपी गुरइकबाल सिंह और डीसीपी हरेन्द्र सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. क्या गृह मंत्री अमित शाह भी आईपीएस को बचाने की परंपरा का पालन कर रहे हैं?
कमिश्नर की भूमिका-
क्या पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा को पुलिस की नाक कटवा देने वाले पुलिसकर्मियों को तुरंत सस्पेंड नहीं कर देना चाहिए था ?
क्या दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों को तफ्तीश करना भी नहीं आता? इसलिए शायद गृह मंत्रालय को धारा 302 लगाने का निर्देश देना पड़ा. पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा द्वारा जानबूझ कर गलत धारा में एफआईआर करने वाले डीसीपी हरेन्द्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई ?
डीसीपी का कारनामा –
इस मामले ने बाहरी जिले के डीसीपी हरेंद्र सिंह की पेशेवर और कानूनी समझ की पोल खोल दी. डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने एक जनवरी को कहा था कि यह मामला “पूरे तौर पर फैटल एक्सीडेंट” (जानलेवा दुर्घटना) का है. कार चलाने वाले लोग पीड़िता को काफी दूर तक घसीटते हुए ले गए. इस सिलसिले में लापरवाही/ असावधानी से वाहन चलाने के कारण हुई मौत का मामला धारा 279,304 ए के तहत दर्ज किया गया है.
बिना तफ्तीश निष्कर्ष निकाला-
डीसीपी ने अपने बयान में साफ कहा था कि अभियुक्त पीड़िता को घसीटते हुए ले गए. इसके बावजूद डीसीपी ने गलत धारा में मामला दर्ज किया और ऐसा बयान देकर एक तरह से बिना तफ्तीश के खुद ही यह साबित कर दिया था कि अभियुक्तों को मालूम ही नहीं था कि उनकी कार के नीचे लड़की फंसी हुई है. डीसीपी हरेन्द्र कुमार सिंह ने 279/304 ए की गलत धारा में तो यह मामला दर्ज किया ही, इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. जबकि इस धारा के तहत तो एक ही व्यक्ति यानी कार चालक की ही गिरफ्तारी बनती है.
तफ्तीश का आलम-
पुलिस की तफ्तीश का आलम यह है पुलिस को आरोपियों की गिरफ्तारी के चार-पांच दिन बाद तो यह पता चला, कि जिस दीपक को उसने दुर्घटना के समय कार चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया है, वह तो उस समय अपने घर में था. पुलिस की गैर पेशेवर तरीके से की गई तफ्तीश के कारण ही आरोपियों को सज़ा नही हो पाती है. इससे पता चलता है कि पुलिस ने बिना तफ्तीश, वैरीफिकेशन किए ही आरोपी दीपक के कहे को ही आंख मूंद कर सच माना और उसे गिरफ्तार कर लिया. 17 जनवरी को डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने बताया कि मौखिक, फिजिकल और फॉरेंसिक साक्ष्यों के आधार पर इस मामले में धारा 302 लगा दी गई है. डीसीपी हरेन्द्र सिंह के अनुसार 1 जनवरी 2023 को उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के बाद आईपीसी की धारा 279/304ए (जानलेवा दुर्घटना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. तफ्तीश के दौरान गैर इरादातन हत्या और साजिश की धारा 304/120बी/34 आईपीसी को भी मामले में जोड़ा गया था।
दिवालियापन उजागर –
डीसीपी के अनुसार आईपीसी की धारा 304 ए को शामिल करने का उद्देश्य पीड़ित परिवार को एमएसीटी से अधिकतम लाभ/ मुआवजा सुनिश्चित करना भी था. डीसीपी हरेन्द्र सिंह का एक जनवरी का पहला बयान ही उनकी पेशेवर काबलियत पर सवालिया निशान लगाने के लिए पर्याप्त था. लेकिन अब तो हरेन्द्र सिंह ने हद ही पार कर दी, ऐसा कुतर्क देकर खुद ही अपनी पेशेवर और कानूनी समझ का दिवालियापन उजागर कर दिया है. डीसीपी हरेन्द्र सिंह को क्या इतनी मामूली सी कानूनी समझ भी नहीं है कि अपराध के मामले में आईपीसी की धारा अपराध के प्रकार/प्रकृति के आधार पर लगाई जाती है, किसी को मुआवजा दिलाने के आधार पर नहीं.
जानबूझ कर गलत धारा लगाई-
डीसीपी के बयान से यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि पुलिस ने शुरू में आरोपियों के ख़िलाफ़ जानबूझ कर ही सही धारा में मामला दर्ज नही किया था. क्या डीसीपी हरेन्द्र सिंह को इतना भी मालूम नहीं कि उनकी ऐसी हरकत/ नादानी का आरोपी अदालत में फायदा उठा सकते हैं.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह क्या अदालत के सामने अपना यही तर्क देकर दिखाएंगे ?
एफआईआर और तफ्तीश में पुलिस द्वारा जानबूझ कर छोड़ी गई गंभीर कमियों और विरोधाभासों का ही अदालत में आरोपी फायदा उठाते हैं.
302 नहीं बनती –
स्पेशल कमिश्नर सागर प्रीत हुड्डा ने 5 जनवरी को बताया था कि तफ्तीश में अब तक के साक्ष्यों/ तथ्यों के आधार पर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह मामला गैर इरादतन हत्या (धारा 304) का फिट केस है. सागर प्रीत हुड्डा ने बताया था कि तफ्तीश के अनुसार यह मामला हत्या की धारा 302 का नहीं बनता है क्योंकि हत्या यानी दफा 302 में हत्या के लिए कारण/मकसद और नीयत /इरादा होना बहुत जरुरी होता है.
आरोपियों को नहीं पकड़ा –
रोहिणी जिले के डीसीपी गुर गुरइकबाल सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस ने समय पर जागरूक नागरिक दीपक दहिया द्वारा सूचना दिए जाने के बाद भी कार सवारों को मौके पर रंगेहाथ नहीं पकड़ा था. जबकि डीसीपी का दावा है कि वह खुद भी उस दौरान जिले में ही थे.
कार सवार आरोपियों को पुलिस यदि युवती के शव सहित मौके पर रंगे हाथों पकड़ लेती, तो पुलिस का केस सबूतों के लिहाज़ से बहुत पुख्ता होता. अंजलि के शव की नग्न फोटो/ वीडियो को लीक करना अमानवीय और शर्मनाक अपराध है. पुलिस ने शव की फोटो खींची थी. फोटो लीक कर पुलिस ने अक्षम्य अपराध किया है.
(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)