लाड़ली बहना गेम चेंजर नहीं गेम डेंजर

भूपेन्द्र गुप्ता

मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में वोट डल चुके हैं। मशीन बंद हो चुकी है।विश्लेषण की दुनिया शुरू हो चुकी है और संभावनाओं की गरमा गरम बहस चल रही है।कुछ विश्लेषकों का मानना है कि लाड़ली बहना योजना ने गेम चेंजर का रोल अदा किया है । इस आधार पर वे एक इनकम्बेंट सरकार की वापसी का नरेटिव बनाने की चेष्टा कर रहे हैं । जबकि लाड़ली बहना योजना भाजपा सरकार के लिए गेम चेजर नहीं बल्कि गेम डेंजर योजना साबित होने वाली है ।अगर बारीकी से विश्लेषण करें तो मध्य प्रदेश में लगभग 2 करोड़ 73 लाख महिला मतदाता पंजीकृत हुए हैं जिनमें से सरकारी दावों के अनुसार एक करोड़ 31 लाख महिलाएं लाड़ली योजना की हितग्राही है ।जबकि एक करोड़ 42 लाख महिला मतदाता वे हैं जो लाड़ली बहना योजना की हितग्राही नहीं हैं। उन्हें अपात्र घोषित किया जा चुका है ।

कांग्रेस द्वारा घोषित नारी सम्मान योजना में पात्रता का बंधन न होने के कारण ये एक करोड़ 42 लाख महिला मतदाता नारी सम्मान योजना की आकांक्षी मतदाता हैं। वे अपात्रता के कारण इस योजना के विरुद्ध हैं।

सामाजिक सुरक्षा पेंशन जिसमें वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, परित्यकता पेंशन ,दिव्यांग पेंशन आदि शामिल है ,के लगभग 49 लाख 20 हजार हितग्राही हैं। इनकी पेंशन विगत कई महीनों से रुकी हुई है।इनमें भी अधिकांश महिला मतदाता हैं जिनका मानना है कि उनकी पेंशन रोककर ही लाड़ली बहना योजना का भुगतान किया गया है।

जिसे यह मतदाता समूह भाजपा की चालाकी मानकर नाराज है। माना जा सकता है कि उसने भाजपा के खिलाफ मतदान में लाड़ली को काउंटर किया है। लाड़ली बहना के हितग्राहियों में भी बहुत सारी महिलाओं का यह मानना है कि जब तक कमलनाथ जी ने 1500 रुपये की घोषणा नहीं की थी तब तक वे लाड़ली क्यों नहीं थीं? इस प्रश्न ने भी भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
अगर उन पांच आदिवासी जिलों को देखें जहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की जनसंख्या अधिक है,तो वहां महिलाओं के मत प्रतिशत में औसतन 7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है जिसका अर्थ है कि यह योजना आदिवासी अंचलों तक या तो नहीं पहुंची,या उन्हें आकर्षित करने में फेल हुई है।

बड़ी मात्रा में युवाओं ने मतदान में हिस्सा लिया है।बीस से तीस वर्ष आयु के लगभग डेढ़ करोड़ मतदाता वे हैं जो एक या दो बार भाजपा सरकार को देख चुके हैं।वे बेरोजगारी का शिकार हैं।यह संख्या भी लाड़ली बहना के हितग्राहियों से अधिक है।जो भाजपा के खिलाफ सक्रिय लहर बनाने में उत्प्रेरक रहे हैं।इनमें 12 लाख पटवारी परीक्षा में शामिल परीक्षार्थी एवं शिक्षक भर्ती में रोके गये पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण लगभग एक लाख युवा शामिल हैं ।कोविड काल का पैरा मेडीकल स्टाफ,कोरोना वारियर,एनआरएचएम भर्ती घोटाले एवं कान्स्टेबिल भर्ती के शिकार भी सरकार के खिलाफ बैठकें ले रहे थे।

हालांकि चुनाव के पूर्व ही सरकार ने खाद वितरण की व्यवस्था कर ली थी ताकि किसान आक्रोश से बचा जा सके। एन मतदान के पूर्व ही 14 -15 नवंबर को खाद की किल्लत होने से किसान आक्रोशित हो गया और सरकारी प्रयास विफल हो गये। जबकि किसान पहले से ही जय किसान फसल ऋण माफी योजना से आश्वस्त था और भाजपा सरकार से नाराज था। कमलनाथ के वचनों में पांच हार्स पावर तक मुफ्त बिजली का आकर्षण भी कम नहीं था।

सबसे महत्वपूर्ण मतदाता समूह शासकीय कर्मचारियों का है जो पुरानी पेंशन स्कीम चाहते है।लगभग 5 लाख कर्मचारी और 5 लाख पेंशनर परिवार लगभग 40लाख मतदाता समूह बनाते हैं।उन्होंने भी सरकार के खिलाफ मतदान कर इस योजना के संभावित लाभों पर पानी फेर दिया है।

हालांकि सरकार समर्थित अधिकारियों पर इस समूह का मतदान घटाने के आरोप लग रहे हैं ।अशोकनगर कलेक्टर को तो अदालत ने चुनावी ड्यूटी के लिये अयोग्य ही घोषित कर दिया है ।इन प्रयासों के बावजूद यह समूह भी सरकार बनाने में भाजपा की बड़ी बाधा बन चुका है।

ओबीसी आरक्षण और जातिगत जनगणना ने सामाजिक उथल पुथल के मुद्दों को पारिवारिक विमर्ष का विषय बना दिया है।जिसमें भारत जोड़ो अभियान से जुड़े जनआंदोलन बहुत हद तक सफल हुए हैं।राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी के आक्रामक और सधे हुए प्रचार से भाजपा अपने नेरेटिव बनाने में असफल हो गई। उसे मजबूरन कांग्रेस की पिच पर खेलना पड़ा।ग्वालियर के गुर्जर आंदोलन को कुचलना भी इस बदलाव यज्ञ में आहुति बन गया है।यह आ़ंदोलन आगे के चुनावों में भी भाजपा के लिये तकलीफदेह होगा।

पूरे चुनाव में कमलनाथ ने सच्चाई के लिये वोट मांगा,तथा जनमत को वे यह समझाने में सफल हुए कि प्रदेश या तो भ्रष्टाचार का शिकार है या गवाह है ।केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे रामू के कथित वायरल विडियो ने इस नेरेटिव को पुख्ता कर दिया।इन वीडियो के सामने आने के बाद भाजपा कोई भी सटीक गेंद नहीं फेक सकी।इस मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी ने उसे दौड़ से बाहर कर दिया।

कई चुनावी सर्वे करने वाली संस्थाओं ने मतदान से निकले मतदाताओं से बातचीत कर यह निष्कर्ष निकाला है कि लगभग 3फीसदी मतदाता बदलाव के लिये वोट डाल चुका था । अगर यह निष्कर्ष सही है तो भी लगभग 15लाख मतदाता बदलाव की लहर पर सवार थे। इसीलिये नई सरकार की पटकथा लिखने में बेरोजगार, किसान,पेंशनर,ओपीएस और अपात्र महिलायें ही अहम साबित होंगीं जो जीत के आंकड़े को 150सीटों के पार भी ले जा सकतीं हैं।

(लेखक स्वतंत्र विष्लेषक हैं)