एक और स्तंभकार कुंवर नटवर सिंह का निधन अपूरणीय क्षति

Death of another columnist Kunwar Natwar Singh is an irreparable loss

भारत की विदेश नीति के निर्माण में राजस्थान का भारी योगदान

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

नयी दिल्ली : भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक रणनीति बनाने में राजस्थान की कई शख्शियतों का बेजोड़ योगदान रहा है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल से ही विदेश सेवा के अधिकारी के रुप में उदयपुर के जगत सिंह मेहता चीन और तंजानिया जैसे देशों में राजनियक के रुप में काम करते रहे और कालांतर में 1969 से 1979 तक भारत के विदेश सचिव भी रहे । उन्होंने अपने विदेश सेवा के अपने 50 वर्षों की सेवाओं में भारत की विदेशिक कूटनीति में अपना विशेष योगदान दिया।

इसके बाद राजस्थान के ही दो विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह और जसवंत सिंह जसोल लंबे समय तक भारतीय विदेश नीति के मुख्य स्तंभ कार बने। कुंवर नटवर सिंह इंदिरा गांधी परिवार के समय और जसवंत सिंह जसोल अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत के विदेशों में प्रतीक रहें।

लेकिन अब एक और स्तंभकार कुंवर नटवर सिंह भी नहीं रहें ।

के. नटवर सिंह ,सोमवार को नई दिल्ली के लोदी शवदाह केंद्र पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में बारिश के बीच लोधी शव दाहगृह में दोपहर को किया गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर,केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा सहित कई नेताओं ने उन्हें अंतिम विदाई दी। नटवर सिंह के परिवार के सदस्यों, मित्रों और समर्थकों के अलावानेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा अन्य कई नेता उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शवदाहगृह पहुंचे।नटवर सिंह का लंबी बीमारी के बाद शनिवार रात गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में 10 अगस्त को निधन हो गया था। उन्हें कुछ सप्ताह पहले भर्ती कराया गया था। वह 93 वर्ष के थे। वे कुछ समय पहले से बीमार चल रहे थे।

नटवर सिंह का जन्म 1931 में राजस्थान में भरतपुर जिले के जघीना गांव में हुआ था।वह भारतीय विदेश सेवा में थे, लिहाजा जब वह राजनीति में आए तो उनके पास कूटनीतिक मामलों की समझ, पकड़ और अनुभवों की थाती भी साथ थी। वह अच्छे लेखक भी थे और उन्होंने ‘‘महाराजा’’ के जीवन से लेकर विदेश मामलों की बारीकियों तक के विषयों पर किताबें लिखीं। उन्हें 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

नटवर सिंह ने विदेश मामलों सहित अन्य विषयों पर कई चर्चित किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘द लिगेसी ऑफ नेहरू : अ मेमोरियल ट्रिब्यूट’ और ‘माई चाइना डायरी 1956-88’ शामिल हैं। उनकी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ काफी सुर्खियों में रही थी।

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने नटवर सिंह के निधन को राजनीति और कूटनीति दोनों के क्षेत्रों में एक ‘‘अपूरणीय क्षति’’ बताया।उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘एक राजनयिक के रूप में उन्होंने जिस तरह से देश की सेवा की और एक नेता के रूप में जिस तरह उन्होंने देशहित के लिए काम किया, दोनों ही बातें इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेंगी।’’केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘नटवर सिंह जी एक निडर और साहसी व्यक्ति थे और उन्होंने हमेशा देश एवं समाज के हित वाली बातों पर अपने विचारों को निडरता से और खुलकर सामने रखा। उन्होंने हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बोलने का साहस दिखाया।’’

पूर्व कांग्रेस सांसद नटवर सिंह 2004-05 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में विदेश मंत्री पद पर काबिज थे। उन्होंने पाकिस्तान में भारत के राजदूत के रूप में भी सेवाएं दी थीं और 1966 से 1971 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से जुड़े हुए थे।कुंवर नटवर सिंह अपने पिता मेजर गोविन्द सिंह और मां प्रयाग कौर के चार बेटों में सबसे छोटे बेटे थे. उनकी पढ़ाई में काफी रूचि थी. उन्होंने सिंधिया स्कूल ग्वालियर, मेयो कॉलेज अजमेर, दिल्ली और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, चीन में पेकिंग यूनिवर्सिटी में विजिटिंग स्कॉलर रहे. कुंवर नटवर सिंह 1953 में भारतीय विदेश सेवा में चुने गए. कुंवर नटवर सिंह 31 साल तक विदेश सेवा में काम किया. वह पहली बार 1984 में भरतपुर से सांसद चुने गए थे . वर्ष 1985 में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे. वर्ष 1984 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. कुंवर नटवर सिंह ने लोकसभा का दूसरा चुनाव मथुरा से लड़ा था, जिसमे उन्हें हार का सामना पड़ा था। कुंवर नटवर सिंह का राजनीतिक करियर उतार चढ़ाव भरा रहा. कुंवर नटवर सिंह विदेश सेवा से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. 1984 में पहली बार भरतपुर से सांसद बने थे. कुंवर नटवर सिंह केंद्र में राजीव गांधी की सरकार में 1985 में इस्पात ,कोयला खान एवं कृषि राज्य मंत्री का भार सौंपा गया था. उन्हें वर्ष 1986 में विदेश राज्य मंत्री बनाया गया था. 1987 में न्यूयॉर्क में निरस्त्रीकरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए. संयुक्त राष्ट्र महासभा के 42 वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया. वर्ष 1989 के लोकसभा आम चुनाव में कुंवर नटवर सिंह उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे जहां उनको हार का सामना करना पड़ा था.

वर्ष 2002 में कुंवर नटवर सिंह राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए. कांग्रेस की मनमोहन सिंह की सरकार में वर्ष 2004 में कुंवर नटवर सिंह विदेश मंत्री बनाये गए. वर्ष 2005 में कुंवर नटवर सिंह का आयल फॉर फ़ूड घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें विदेश मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कुंवर नटवर सिंह की शादी 1967 में पटियाला के अंतिम शासक महाराजा यादविंद्र सिंह की बड़ी बेटी हेमेंद्र कौर से हुई थी. हेमेंद्र कौर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बहन हैं। इस शादी में इंदिरा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थीl

वर्ष 2014 में कुंवर नटवर सिंह की वन लाइफ इज नॉट इनफ जारी हुई. इस किताब ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी थी. उनकी यह किताब इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के शासन के दौरान कई संवेदनशील घटनाक्रमों का खुलासा करती है. किताब में नटवर सिंह ने वोल्कर रिपोर्ट और उनके इस्तीफे से पहले की पृष्ठभूमि पर हुए विभिन्न राजनैतिक प्रस्तावों का विवरण लिखा गया था. इस किताब पर सोनिया गांधी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी और अपनी आपत्ति जताई थी।

भारतीय विदेश नीति के एक और स्तंभकार कुंवर नटवर सिंह के भी ठह जाने से भारत को अपूर्णीय क्षति हुई है ।विशेष कर ऐसे वक्त में जब पड़ोसी देश बांगला देश में उत्पन्न परिस्थितियों में उन जैसे शख्शियत की राय अहम साबित हो सकती थी।