संविधान पर बहस: अधिकार, सुधार और चुनौतियाँ

Debate on Constitution: Rights, Reforms and Challenges

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

भारत का संविधान देश की आत्मा और लोकतंत्र की नींव है, जो नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षक है। यह हमारी विविधता में एकता, धर्मनिरपेक्षता, और समानता को सुनिश्चित करता है। संविधान न केवल कानून का स्रोत है, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक आकांक्षाओं का प्रतिबिंब भी है। भारत का संविधान, देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है, जिसे 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था। इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि हमारे मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों, और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को याद किया जा सके। संविधान के तहत सरकार की शक्ति और उसके दायित्वों की सीमा निर्धारित की जाती है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी संस्था, चाहे वह कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अपने अधिकारों का दुरुपयोग न कर सके।

हाल के वर्षों में “संविधान ख़तरे में है” की आवाज़ विपक्षी दलों द्वारा बार-बार उठाई गई है। वहीं केंद्र सरकार इन दावों को खारिज करते हुए कहती है कि वह संविधान की रक्षा और समृद्धि के लिए काम कर रही है। आइए, संविधान दिवस के इस अवसर पर सरकार और विपक्ष की दलीलों का मूल्यांकन करें और केंद्र सरकार की कुछ विवादास्पद कार्रवाइयों की चर्चा करें, जिन पर विपक्ष का आरोप है कि वे संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध हैं।

विपक्ष के आरोप: “संविधान ख़तरे में है”

विपक्षी दलों का मानना है कि मौजूदा सरकार संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को बाधित कर रही है, जिससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही हैं। विपक्ष के अनुसार, कुछ प्रमुख मुद्दे जिनके आधार पर वे यह दावा करते हैं। जैसे कि पहला मुद्दा , संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार के नियंत्रण का आरोप है। विपक्ष का आरोप है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं जैसे कि न्यायपालिका, चुनाव आयोग, और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) पर दबाव बढ़ाया है। उनका मानना है कि इन संस्थाओं की स्वतंत्रता सरकार द्वारा बाधित की जा रही है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। विपक्षी नेताओं का दावा है कि न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार का बढ़ता दखल, निर्णयों पर दबाव, और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

दूसरा मुद्दा मौलिक अधिकारों की अवहेलना का है।विपक्ष का यह भी कहना है कि मौजूदा सरकार ने मौलिक अधिकारों की अवहेलना की है। आलोचना की जाती है कि सरकार ने विरोध प्रदर्शन और असंतोष की आवाज़ों को दबाने के लिए कड़े कानूनों का इस्तेमाल किया है, जैसे कि राजद्रोह कानून, UAPA (गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम), और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA)। इसके अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियों और स्वतंत्र मीडिया के ऊपर दबाव बढ़ाने का भी आरोप लगाया जाता है।

जबकि तीसरा मुद्दा संविधान संशोधन का दुरुपयोग का है। विपक्ष यह भी कहता है कि सरकार ने संवैधानिक संशोधनों का दुरुपयोग कर कुछ कानूनों को लागू किया है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ जाते हैं। वे कहते हैं कि कुछ प्रमुख विधायी निर्णय, जैसे कि जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) संविधान की संघीय ढांचे और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। चौथा मुद्दा, धर्मनिरपेक्षता और समानता पर खतरा का है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार की नीतियाँ देश की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समानता को कमजोर कर रही हैं। उदाहरण के लिए, CAA को लेकर उनके विचार हैं कि यह एक खास धार्मिक समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ा है, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ है।

केंद्र सरकार की दलीलें: “संविधान की रक्षा और सुधार”

विपक्ष के आरोपों का सामना करते हुए, केंद्र सरकार संविधान की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की बात करती है। सरकार का मानना है कि उसके कई निर्णय संविधान के मूल्यों को सुरक्षित रखने और राष्ट्रहित में सुधार लाने के लिए हैं। केंद्र सरकार इन मुद्दों को काउंटर करते हुए कुछ तर्क देता रहा है। जैसे कि पहला, राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता की सुरक्षा मुद्दा है।सरकार का मानना है कि यू ये पी ए (UAPA) जैसे कड़े कानूनों का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। उनका कहना है कि किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा उसके नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ी होती है, और इसके लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। सरकार का यह भी दावा है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना राष्ट्रीय एकता और अखंडता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

सरकार का दूसरा तर्क है विकास और सुधार के लिए संविधान में बदलाव करने का। सरकार का तर्क है कि संविधान में बदलाव करने का अधिकार संसद के पास है, और यह बदलाव राष्ट्रीय हित और विकास के लिए किए गए हैं। उदाहरण के लिए, सरकार का कहना है कि CAA का उद्देश्य धर्म के आधार पर उत्पीड़ित लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है, न कि किसी विशेष समुदाय के खिलाफ भेदभाव करना। उनका मानना है कि संवैधानिक बदलावों से ही विकास के नए द्वार खुलते हैं।

तीसरा तर्क, संविधान की आत्मा का सम्मान का है।केंद्र सरकार का कहना है कि वह संविधान की आत्मा का सम्मान करते हुए काम कर रही है। प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख नेताओं का कहना है कि सरकार का हर कदम संविधान की धारा और भावना के अनुरूप है, और उन्होंने विकास, समानता, और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। जबकि चौथा तर्क संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता का संरक्षण का देता है। सरकार का दावा है कि उसने संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को बनाए रखा है और न्यायपालिका, चुनाव आयोग, और अन्य संस्थाओं की निष्पक्षता को सुदृढ़ किया है। उनके अनुसार, न्यायपालिका में सुधार, पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, जो कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक हैं।

कुछ विवादास्पद कदम और उनके संवैधानिक पहलू

विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों की पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार के कुछ निर्णयों की संवैधानिक समीक्षा करना आवश्यक है। जिसमें पहला है, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना। अगस्त 2019 में, केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने का निर्णय लिया, जिससे जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त हो गई। इस कदम को संविधान संशोधन के रूप में देखा गया, और इस पर संवैधानिक सवाल उठे। कई कानूनी विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का मानना है कि यह कदम संघीय ढांचे और राज्य की स्वायत्तता के विरुद्ध था। वहीं, सरकार का कहना है कि यह निर्णय राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए आवश्यक था।

दूसरा, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी ये ये) का मुद्दा, इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इस कानून पर व्यापक विरोध हुए और इसे संविधान की धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांत के विरुद्ध बताया गया। सरकार का दावा है कि यह कानून उन लोगों की सुरक्षा के लिए है, जिन्हें उनके देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। तीसरा, कृषि कानून और उनका निरसन करना। 2020 में केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून पारित किए, जो कि किसान समुदाय के बीच विवादास्पद बने रहे। इन कानूनों को बिना पर्याप्त चर्चा के पास किए जाने को लेकर संवैधानिक सवाल उठे। विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह संविधान की संघीय भावना का उल्लंघन था, क्योंकि कृषि राज्य का विषय है। बड़े पैमाने पर विरोध और आंदोलन के बाद, सरकार ने अंततः इन कानूनों को निरस्त कर दिया।

इसके अतिरिक्त चौथा, मीडिया पर नियंत्रण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा है। केंद्र सरकार पर मीडिया को नियंत्रित करने और पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का आरोप भी लगा है। कई पत्रकार और मीडिया संगठन मानते हैं कि आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के कारण उन्हें कानूनी मामलों का सामना करना पड़ता है। विपक्ष इसे संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन मानता है, जबकि सरकार का कहना है कि फेक न्यूज़ और राष्ट्रविरोधी प्रचार को रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं।

संविधान दिवस के अवसर पर, यह चर्चा अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि हमारे संविधान की सुरक्षा और संवर्धन में सरकार और विपक्ष की भूमिका कैसी होनी चाहिए। संविधान की आत्मा को बनाए रखना और उसमें सुधार करना दोनों ही आवश्यक हैं। परंतु सुधार का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना की जाए। सरकार और विपक्ष दोनों को चाहिए कि वे संविधान को एक पवित्र दस्तावेज के रूप में सम्मानित करें, जो हमारे लोकतंत्र की नींव है।संविधान के प्रति जागरूकता और उसकी सुरक्षा के लिए सभी नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए। चाहे जो भी दल सत्ता में हो, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान, और समानता की स्थापना हर सरकार की जिम्मेदारी है।