जैनियों के पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर मामले में हुए निर्णय सामूहिक प्रयासों की ऐतिहासिक विजय

रविवार दिल्ली नेटवर्क

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत सरकार के हस्तक्षेप से जैन समुदाय के पवित्र तीर्थ स्थल सम्मेदशिखर को पर्यटन क्षेत्र नहीं बनाए जाने की जैन समाज की माँग सम्बन्धी मामले का पटाक्षेप ही गया है ।

जैन समाज ने इस मामले का सम्मानजनक हल निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत सरकार काआभार व्यक्त किया हैं।

जैन समुदाय ने इस निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह जैन धर्म की ऐतिहासिक विजय होने केसाथ ही समाज की एकता त्याग अनुशासन संघर्ष और सामूहिक प्रयासों की विजय हैं।

केंद्र सरकार ने गुरुवार को तीन साल पहले जारी किए गए अपने आदेश को वापस ले लिया। पर्यावरण मंत्रालयने इसे लेकर दो पेज की चिट्ठी जारी की। इसमें लिखा है, ‘इको सेंसेटिव जोन अधिसूचना के खंड-3 केप्रावधानों के कार्यान्वयन पर तत्काल रोक लगाई जाती है, जिसमें अन्य सभी पर्यटन और इको-टूरिज्मगतिविधियां शामिल हैं। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सभी आवश्यक कदम उठानेका निर्देश दिया जाता है।’

सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित किए जाने के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से जैन समुदाय आंदोलन कर रहाथा। कई जैन मुनियों ने भी आमरण अनशन भी शुरू कर दिया था । इसमें जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज नेमंगलवार को प्राण भी त्याग दिया था।

जैन धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों और भिक्षुओं ने मोक्ष प्राप्त किया है। जैनसमुदाय के इस पवित्र धार्मिक स्थल को फरवरी 2019 में झारखंड की तत्कालीन भाजपा सरकार ने पर्यटनस्थल घोषित कर दिया। इसके साथ ही देवघर में बैजनाथ धाम और दुमका को बासुकीनाथ धाम को भी इससूची में शामिल किया गया। उसी साल अगस्त में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया और कहा कि इस क्षेत्र में “पर्यटन को बढ़ावा देने की जबरदस्त क्षमता” है। अबसरकार के इसी फैसले का विरोध हो रहा था। गुरुवार को केंद्र सरकार ने तीन साल पुराने इसी आदेश कोवापस लिया है।

इस प्रकरण का विरोध कर रहे जैन समुदाय से जुड़े लोगों का कहना था कि ये आस्था का केंद्र है, कोई पर्यटनस्थल नहीं। इसे पर्यटन स्थल घोषित करने पर लोग यहां मांस-मदिरा का सेवन करेंगे। इसके चलते इस पवित्रधार्मिक स्थल की पवित्रता खंडित होगी। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा लोग शत्रुंजयपर्वत पर भगवान आदिनाथ की चरण पादुकाओं को खंडित करने को लेकर भी भड़के हुए हैं। पिछले दिनों इसमामले को लेकर जैन समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की थी। इसके अलावादिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद में महारैली का भी आयोजन किया गया। इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गईहै। लोकसभा में भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने इस मुद्दे को उठाया। कहा, ‘झारखंड सरकार के फैसले कासीधा असर सम्मेद शिखर की पवित्रता पर पड़ा है। जैन लोग चाहते हैं कि इस आदेश को रद्द किया जाए।’

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले में कहा कि सम्मेद शिखरजी को लेकर नोटिफिकेशन भाजपासरकार के वक्त जारी हुआ था। वहीं, सोरेन की पार्टी झामुमो ने कहा कि केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखरजी कोपर्यटन स्थल घोषित किया है। वहीं, भाजपा का कहना है कि जब झारखंड में भाजपा की सरकार थी, तबसम्मेद शिखरजी को तीर्थस्थल घोषित किया गया था। इसके संरक्षण के लिए काम किया गया था। अबझामुमो सरकार इसे खंडित करने और जैन समुदाय के लोगों की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ कर रही है।

गिरिडीह के ज़िला कलक्टर ने सम्मेद शिखरजी के पदाधिकारियों के साथ 22 दिसंबर को एक बैठक की थी।बैठक के दौरान उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया था कि इस स्थल की पवित्रता को बरकरार रखा जाएगा।

जैन आचार्य लोकेश मुनि ने जैन समाज के संघर्ष में सहयोग करने वाले सभी वर्गों के लोगों का आभार जतातेहुए कहा है कि इस स्थल की पवित्रता बनाए रखने का निर्णय लेने के लिए भारत सरकार और झारखंड सरकारदोनों ही साधुवाद की पात्र है।

सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल नही बनाए जाने और एक तीर्थ स्थल के रुप में उसकी पहचान बनायें रखने केनिर्णय का सभी राजनीतिक दलों विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने भी स्वागत किया हैं।