विपक्ष काे हरा या तोड़ ….भाजपा की राजनीति का यही है निचोड़

संदीप ठाकुर

भाजपा से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। जिस जिस पार्टी ने भाजपा से
दोस्ती की या तो वह निपट गई या फिर भाजपा में सिमट गई। यानी उस पार्टी की
अपनी पहचान समाप्त हाे गई या फिर वह हाशिए पर चली गई। दरअसल यह भाजपा की
पुरानी रणनीति रही है कि प्रादेशिक पार्टियों को या तो हरा कर खत्म करना
है या तोड़ कर खत्म करना है। देश की राजनीति में आज यही हाे रहा है।
पार्टी के मौजूदा आला नेताओं की सोच है कि कांग्रेस कमजोर रहे और
प्रादेशिक पार्टियां हार या टूट कर खत्म हो जाएं। फिर देश में भाजपा का
एकक्षत्र स्थायी राज बनेगा। कहने काे तो प्रजातंत्र रहेगा। और भी
पार्टियां होंगी लेकिन उनका अस्तित्व मायने वाला नहीं होगा। इस तरह सही
मायने में एक दलीय लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा।

भाजपा का यदि राजनीतिक कामकाज करने का तरीके पर गाैर करें तो यह बात साफ
साफ नजर आती है कि पहले क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे भाजपा राज्य की
राजनीति में प्रवेश करती है। फिर धीरे धीरे उन पार्टियों को तोड़ने के
प्रयास करती है, जिनको वह हरा नहीं पाती है। इस बात को महाराष्ट्र में
शिवसेना के उदाहरण से समझा जा सकता है। कायदे से शिवसेना के प्रति भाजपा
को अहसानमंद होना चाहिए था क्योंकि उसके दम से ही भाजपा महाराष्ट्र में
फली फूली और सत्ता में आई। लेकिन जब लगा कि राज्य में भाजपा अपने दम पर
पर्याप्त मजबूत हो गई है और ठाकरे परिवार की कमान वाली शिवसेना उसके और
मजबूत होने के रास्ते में बाधा है तो शिवसेना को कमजोर करने का मिशन
शुरू हुआ। पहले बड़े भाई की भूमिका में रही शिवसेना को छोटा भाई बनाया
गया। उससे भी काम नहीं चला तो उसमें विभाजन करा दिया गया। भाजपा ने 288
सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ 40 विधायकों वाले एकनाथ शिंदे को
मुख्यमंत्री बनाया है। इसका मकसद सिर्फ इतना है कि ठाकरे परिवार की
राजनीति को खत्म किया जाए। अगर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली और
महाराष्ट्र में गहरी जड़ वाली शिव सेना समाप्त होती है तो एकनाथ शिंदे
आदि को निपटाना तो भाजपा के लिए बाएं हाथ का खेल होगा। ऐसे में शिंदे की
पार्टी का विलय भाजपा में हो ही जाएगा।

वैसे भी भाजपा की पुरानी सोच रही है कि देश में सिर्फ दो ही पार्टियां
होनी चाहिए। अगर दूसरी पार्टी कांग्रेस हो तो वह भाजपा के ज्यादा
फायदेमंद है। क्योंकि भाजपा ने प्रचार के दम पर कांग्रेस को देश की सारी
समस्याओं की जड़ के तौर पर स्थापित कर दिया है। ऐसी छवि बना दी है कि देश
के विभाजन से लेकर गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी,आबादी जैसी तमाम समस्याओं के
लिए एकमात्र कांग्रेस ही जिम्मेदार है। इतना ही नहीं तमाम तरह के
भ्रष्टाचार के लिए भी कांग्रेस को ही जिम्मेदार बना दिया है। इस तरह
भाजपा काे कांग्रेस बतौर विपक्ष सूट करती है। यदि चुनाव नतीजों को देखें
तो साफ लगेगा कि भाजपा के लिए कांग्रेस को हराना बहुत आसान है। जहां भी
कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है वहां भाजपा ज्यादा आसानी से जीतती है।
संसद में कांग्रेस के जो 52 सांसद अभी हैं उनमें से अधिकांश वहां जीते
हैं, जहां उनको सहयोगी पार्टियों का साथ मिला है या भाजपा से सीधे नहीं
लड़ना पड़ा है। भाजपा से सीधे मुकाबले में कांग्रेस हार जाती है।