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इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार एक ऐसा अमानवीय कारनामा कर गई, जो किसी सरकार ने कभी नहीं किया। जिसे लोकतंत्र में किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
जेल बना दी-
वह विधानसभा सदन में माननीयों/विधायकों और मीडिया के बीच में शीशे की पारदर्शी दीवार खड़ी कर गई।
यह दीवार जेल में कैदी और मुलाकाती के बीच लगी शीशे की दीवार जैसा अहसास कराती है।
अमानवीय व्यवस्था-
विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष रामनिवास गोयल के कार्यकाल में विधायकों की सुरक्षा के नाम पर मीडिया और दर्शक दीर्घा में यह दीवार लगाई गई। शीशे की इस दीवार को अब भाजपा सरकार हटाएगी है या इस अमानवीय व्यवस्था को जारी रखेगी ? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
जेल में बंद कैदी की तरह पत्रकार शीशे की दीवार के पीछे से ही सदन की कार्यवाही देखने/कवर करने को मजबूर हैं। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर मीडिया और दर्शक दीर्घा में शीशे की दीवार लगाना लोकतंत्र में किसी भी तरह से सही/जायज नहीं ठहराया जा सकता।
दीवार हटाएं-
दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दीवार हटा कर मीडिया और दर्शकों को इस पिंजरे/कैद से मुक्त करके पहले जैसी खुली स्थिति को बहाल करना चाहिए।
वैसे तो आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा मीडिया और दर्शक दीर्घा में जब यह दीवार लगाई थी। तभी तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा और मीडिया को इसका विरोध करना चाहिए था।
संसद से सीखें-
संसद भवन में 13 दिसंबर 2023 को लोकसभा में दो युवक दर्शक दीर्घा से कूदे और रंगीन धुंआ (कलर स्मोक) उड़ाया। नई संसद में लोकसभा सत्र के दौरान सुरक्षा में चूक हुई।
इसके बावजूद भी लोकसभा और राज्य सभा में मीडिया और दर्शक दीर्घा को पहले की तरह खुला ही रखा गया है। उसे तो किसी भी तरह की दीवार लगा कर बंद नहीं किया गया।
केजरीवाल की तानाशाही-
मीडिया की कृपा/मदद के कारण ही अरविंद केजरीवाल का राजनीति में इतना वजूद बना है। लेकिन धूर्त और अहसान फरामोश अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले मीडिया पर ही तानाशाही दिखाई। मुख्यमंत्री बनते ही उसने दिल्ली सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी। पत्रकारों ने विरोध किया तो सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश के लिए एक समय सीमा निश्चित कर दी गई। ऐसा करने से केजरीवाल का असली चेहरा, दोहरा चरित्र और घटिया मानसिकता उजागर हुई।
कोई बंदिश नहीं-
अब देखना है कि भाजपा सरकार सचिवालय में भी मीडिया की एंट्री पहले की तरह बहाल करती है या नहीं?
पहले तो भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में सचिवालय ही नहीं, मंत्रियों के घर और दफ़्तर के दरवाजे पत्रकारों के लिए हमेशा खुले रहते थे।