बांग्लादेश हिंदू घर के मंदिर में हिंसा के बाद हिंदू अल्पसंख्यक कर्मचारियों से इस्तीफे की मांग

Demand for resignation from Hindu minority employees after violence in Bangladesh Hindu home temple

रविवार दिल्ली नेटवर्क

हिंदू घरों और मंदिरों को तोड़ने के बाद अब सरकारी कार्यालयों और कॉलेजों में हिंदू कर्मचारियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

ढाका: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के खिलाफ हालात बदलते नजर नहीं आ रहे हैं। हिंदू घरों और मंदिरों को तोड़ने के बाद अब सरकारी कार्यालयों और कॉलेजों में हिंदू कर्मचारियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश के हिंदुओं को अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक ​​कि अब तक हिंदुओं को हिंसा का सामना करना पड़ा है। उनके घरों और मंदिरों पर हमले किये गये। कई हिंदुओं की जान भी गई। उसके बाद बांग्लादेश में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की अध्यक्षता में एक अस्थायी सरकार का गठन किया गया। इसके बाद भी उम्मीद थी कि अल्पसंख्यकों, ख़ासकर हिंदू समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा में कमी आएगी। हालाँकि, कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। हालाँकि थोड़ा अंतर आया है। फिर भी हिंदुओं के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाएँ देखी जाती हैं। अब इस बीच हिंदुओं का काम ठप हो गया है और हिंदू कर्मचारियों से जबरन इस्तीफा दिलवाया जा रहा है।

अब तक हिंसा से त्रस्त रहा हिंदू समाज अब इस नए संकट से भयभीत है। बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, जो आबादी का 8 प्रतिशत हैं। आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बांग्लादेश में हिंसा शुरू हो गई। इसमें करीब 650 हिंदुओं की जान गई है। इसके बाद शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और वह भारत आ गईं।

हैंडओवर के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई। और हिंदू घरों, पूजा स्थलों और व्यवसायों पर हमला किया गया। पटुआखाली के धमराई, नटोर, कालापारा, ढाका के शरीयतपुर और फरीदपुर में हिंदू मंदिरों पर हमला किया गया और तोड़फोड़ की गई। जबकि जेसोर, नोआखाली, मेहरपुर, चांदपुर और खुलना में हिंदुओं के घरों पर हमला किया गया। दिनाजपुर में हिंदुओं की 40 दुकानें तोड़ दी गईं।

बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद के महासचिव राणा दासगुप्ता ने कहा कि हमारी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। हमारी चिंताएं भी ख़त्म नहीं हुई हैं। अल्पसंख्यक सदस्यों को सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ कॉलेजों और स्थानीय सरकारी निकायों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जबरन इस्तीफे की प्रक्रिया शनिवार को शुरू हुई और अब भी जारी है।

जबरन इस्तीफे की मांग को लेकर शनिवार को दोपहर 12 बजे से साढ़े तीन बजे के बीच पांच बार फोन किया गया। उन्होंने इस संबंध में अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया। ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों ने कहा कि वे बहुत चिंतित नहीं हैं।