भारत की सनातन परंपरा, लोक जीवन व मर्यादा का अभिन्न हिस्सा है लोकतंत्र : हरिवंश

Democracy is an integral part of India's eternal tradition, public life and dignity: Harivansh

प्रमोद शर्मा

भारत लोकतंत्र की जननी है। भारत की लौकिक और सनातन परंपरा का स्वाभाविक हिस्सा है, लोकतंत्र लोकजीवन और लोकतांत्रिक व्यवहार और आचरण, भारत की पहचान है। पर विडंबना रही कि हमारी ज्ञान परंपरा और शिक्षा प्रणाली को यूरोपीय नजरिए से देखा और आंका गया। उक्त बाते राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने कही

श्री हरिवंश दिल्ली विधान सभा द्वारा आयोजित विट्ठलभाई पटेल के सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष पद का कार्यभार ग्रहण करने के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस आयोजन का विषय “भारत: लोकतन्त्र की जननी” था।
अपने संबोधन में श्री हरिवंश ने कहा कि भारत पटेल बंधुओं का सदैव ऋणी रहेगा। सरदार पटेल आज़ाद भारत के बिस्मार्क थे। इस अवसर पर श्री हरिवंश ने सदन के व्यवधान पर भी बातें की। उन्होंने कहा कि ‘व्यवधानों से सदन का समय तो नष्ट होता ही है, सदस्यों के अधिकारों का हनन भी होता है’।

राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने भारत की विविधता को समाहित करने के लिए भारत का लोकतान्त्रिक और समावेशी होने पर जोर दिया। उन्होने कहा कि “केन्द्रीकरण भारत के चरित्र के विरुद्ध है. हम मूलतः लोकतांत्रिक संस्कृति के हैं.। उन्होने कहा कि “कौन सी विविधता नहीं है भारत में! भाषायी, क्षेत्रीय, धार्मिक,साम्प्रदायिक, वैचारिक हर प्रकार की विविधता भारत में है.

उन्होने कहा कि भारत की सनातन लोक मर्यादाओं, लोकाचरण में सदैव लोकतांत्रिकता दिखती है. इस संदर्भ में उन्होने भगवान राम, महात्मा बुद्ध, सम्राट अशोक और हर्षवर्धन का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के राजतंत्रों में भी लोकतांत्रिकता दिखती है. श्री हरिवंश ने कहा कि यह विडम्बना रही कि हमारी शिक्षा प्रणाली में भारतीय लोकतन्त्र को यूरोपीय मानदंडों से देखा गया. उन्होने कहा कि छोटे प्राचीन यूनानी शहरों के लोकतन्त्र की तुलना भारत जैसे विविधतापूर्ण देश से करना ही हास्यास्पद है. श्री हरिवंश ने प्राचीन साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों में भारत की लोकतान्त्रिक मान्यताओं का विस्तार से उल्लेख किया और कहा कि प्राचीन भारत का लोकतंत्र आधुनिक अर्थों में भले चुनावी न रहा हो, लेकिन वह समवेशी था, जिसमें परस्पर संवाद सहज था.

प्रधानमंत्री द्वारा स्वदेशी अपनाने का आह्वान किए जाने की चर्चा करते हुए, श्री हरिवंश ने कहा कि ‘अपनी संप्रभुता और अपने सुरक्षा के लिए आत्म निर्भर होना, भारत के लिए अभीष्ट ही नहीं, अनिवार्य भी है’. उन्होने कहा ‘हमारा अपना इतिहास बोध हो, वही लोकतन्त्र सच्चा होगा जिसके इतिहास में देश के हर वर्ग का गौरवपूर्ण योगदान हो और उसका सम्मान किया जाये’.
इस अवसर पर, हाल के ससद सत्र के दौरान हुए व्यवधान के संदर्भ में विट्ठलभाई पटेल द्वारा स्थापित संसदीय मान्यताओं और मर्यादाओं को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि हम उन संसदीय परम्पराओं के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. उन्होने कहा कि “व्यवधानों से सदन का समय तो नष्ट होता ही है, सदस्यों के अधिकारों का हनन भी होता है.”

हाल में खत्म हुए राज्यसभा के 268वें सत्र कि उत्पादकता महज 38.5% रही है. 300 मौखिक प्रश्नों में से सिर्फ 14 के मौखिक जवाब मिले. अपना खेद व्यक्त करते हुए, राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने कहा कि आज जब देश आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का नारा दे रहा है, हमारे संसदीय निकायों की इतनी कम उत्पादकता का क्या औचित्य है?

इस अवसर पर दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र गुप्ता तथा अनेक राज्यों के पीठासीन अधिकारियों के साथ दिल्ली विधान सभा के सदस्य उपस्थित रहे.

1926 में पुराने संसद भवन जो अब संविधान सदन के नाम से जाना जाता है, 1912 से 1926 तक तत्कालीन सेंट्रल लेजिस्लटिव एसम्ब्ली कि बैठकें वर्तमान दिल्ली विधान सभा में ही होती थीं और दूसरे सदन काउंसिल ऑफ स्टेट्स कि बैठकें मेटकाफ हाउस में होती थीं. यहीं, 1919 में रौलेट एक्ट पारित किया गया, जिसने देश में स्वधिनता आंदोलन कि दिशा बदल दी. इस अवसर पर श्री हरिवंश ने विट्ठलभाई पटेल के साथ साथ महामना मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, मोतीलाल नेहरू, तेज बहादुर सप्रू, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं को याद किया जिन्होने तत्कालीन विधायिका की संसदीय मर्यादाओं में रहते हुए भी अंग्रेज़ सरकार का पुरजोर विरोध किया.

दिल्ली विधान सभा द्वारा आयोजित इस समारोह में, संसद और प्रांतीय असेंबलियों के अध्यक्षों ने भाग लिया। यह सम्मेलन दो दिनों तक चलेगा।