
प्रभुनाथ शुक्ल
भारत धर्म और आस्था का देश है, लेकिन यहाँ धार्मिक यात्राएं सुरक्षित नहीं हैं। जब चारधाम जैसी यात्रा भी सुरक्षित नहीं है तो दूसरे की बात छोड़िए। धार्मिक स्थलों पर आए दिन श्रद्धालुओं के मरने की घटनाएं होती रहती हैं। उत्तराखंड में आए दिन हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं सुर्खियों में हैं। मई और जून में अब तक पांच दुर्घटनाएं सिस्टम को हिलाकर रख दिया है। हादसों में चालक दल के साथ 14 लोग मारे जा चुके हैं। पवित्र चारधाम यात्रा के दौरान यह आम बात हो गईं है। जून 2009 से जून 2025 तक 15 हेलीकॉप्टर क्रैश की घटनाएं हो चुकी हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबित 16 साल में इस तरह की दुर्घटनाओं में 45 लोगों की मौत हुईं है।
रविवार 15 जून को गौरीकुंड के पास एक हेलीकॉप्टर की दुर्घटना में पायलट सहित 7 लोग मारे गए। चार धामयात्रा प्रबंधन ने इसके पूर्व हुईं दुर्घटनाओं से सबक नहीं लिया। 17 मई को केदारनाथ में एम्स ऋषिकेश की एक हेली एम्बुलेंस की इमरजेंसी लैंडिंग हुई जिसमें हेलीकॉप्टर का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबित 12 वर्षों में केदारनाथ में कुल 14 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें 33 लोगों की मौत हुई। धार्मिक यात्रा के दौरान बढ़ता जोखिम हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है। नागरिक और उड्डयन मंत्रालय को इस तरह के हादसों पर गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। निजी एविएशन कंपनियों पर नकेल कसने की जरूरत है। धार्मिक स्थलों पर बढ़ते हादसे हमारे विश्वास और आस्था पर चोट पहुँचाते हैं।
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान बढ़ते हेलीकॉप्टर हादसे को देखते हुए मुख्यमंत्री धामी ने उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। निश्चित रूप से राज्य सरकार का यह उचित फैसला। भारत सरकार के डीजीसीए ने अगले आदेश तक हेलीकॉप्टर की सभी उड़ानों पर रोक लगा दिया है। लेकिन सिर्फ रोक से काम नहीं चलेगा सम्वधित घटनाओं की जाँच होनी चाहिए। सवाल उठता है किस तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। किस स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है। निर्दोष यात्रियों की जान को जोखिम में क्यों डाला जा रहा है। पैसा कमाने की होड़ में श्रद्धालुओं को मौत के मुंह में क्यों धकेला जा रहा है। सभी बिंदुओं पर गहराई से जांच पड़ताल की जानी चाहिए। हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं को लेकर जिस तरह की लापरवाही देखने को मिली है वह हमारी व्यवस्था पर सबसे बड़ा सवाल है।
15 जून रविवार को हुए हेलीकॉप्टर क्रैश में मीडिया रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए हैं कि खराब मौसम के बाद भी निर्दोष श्रद्धालुओं की जान को जोखिम में डालकर हेलीकॉप्टर को उड़ाने के अनुमति दी गई। हालांकि यह जाँच का विषय है, लेकिन सवाल उठता है कि जब मौसम खराब था फिर हेलीकॉप्टर को उड़ाने की अनुमति किसने दी। जबकि मौसम की गड़बड़ी की वजह से उड़ानों को निलंबित रखा जाता है। इस मामले की निष्पक्ष रूप से जांच होनी चाहिए और निर्दोष लोगों की जान से खेलने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
हम आस्था को लेकर अधिक भीरू हैं। जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। धार्मिक स्थलों पर भीड़ तो जरूर से ज्यादा जुटा ली जाती है, लेकिन उसके प्रबंधन के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जाती है। आए दिन धार्मिक स्थलों पर मौत की खबरें सुर्खियां बनती हैं। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ में सबसे बेहतरीन व्यवस्था का दावा किया गया था, लेकिन भीड़ प्रबंधन में लापरवाही की वजह से बड़ा हादसा हो गया।
मंदिरों और सत्संग जैसे स्थलों पर आवश्यकता से अधिक भीड़ जुटा ली जाती है, लेकिन उसके नियंत्रण के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। थके-हारे लोग किसी चमत्कार में पड़कर भगदड़ के शिकार हो जाते हैं। लेकिन हम घटनाओं के बाद सबक लेना नहीं चाहते। अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए हम भीड़ अधिक से अधिक जमा कर लेते हैं, लेकिन उसके नियंत्रण के लिए हमारे पास कोई संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं। इसका नतीजा होता है कि भगदड़ या दूसरी स्थिति में काफी संख्या में लोग मारे जाते हैं।
उत्तराखंड में चल रही चारधाम यात्रा में देश भर से लाखों लोग पहुंचते हैं। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता अतुलनीय है। दुर्गम पहाड़ियों की चढ़ाई से होते हुए लोग बद्रीनाथ केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री पहुँचते हैं। वहां की प्राकृतिक स्थिति बेहद जटिल है। तीर्थयात्रा के दौरान बुजुर्ग और बच्चों के साथ अस्वस्थ श्रद्धालुओं को चढ़ाई पर कठिन चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। क्योंकि, पहाड़ों की कठिन चढ़ाई चढ़ने के बाद ही पवित्र मंदिरों तक पहुंचा सकता है। चढ़ाई दुर्मगम और कठिन होने से घोड़े, खच्चर या हेलीकॉप्टर की सुविधा लेनी पड़ती है।
उत्तराखंड पहाडों का राज्य है यहाँ हम जितनी ऊंचाई पर जाते हैं ऑक्सीजन लेवल कम होता जाता है। कई लोगों की यात्रा के दौरान मौत भी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी से भी जूझना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन चारधाम की पूरी यात्रा जोखिम भरी होती है। जो लोग पैदल यात्रा पूरी नहीं कर सकते वे घोड़े, खच्चर या हेलीकॉप्टर की सुविधा लेते हैं। हेलीकॉप्टर जैसे महंगी सुविधा सभी यात्रियों के लिए उपलब्ध नहीं है। क्योंकि आम श्रद्धालुओं के लिए यह सस्ती और सुलभ नहीं है।
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान दुर्गम पहाड़ी इलाकों और मौसम की खराबी सबसे बड़ी समस्या बनती है। जिसकी वजह से आए दिन हेलीकॉप्टर क्रैश की दुर्घटनाएं होती रहती है। उड़ान को निर्देशित करने के लिए कोई एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। दूसरी तरफ हेलीकाप्टर में सिंगल इंजन होते हैं। उड़ान के दौरान कोई रडार सिस्टम नहीं होता है। कभी उड़ान भरने के बाद अचानक मौसम बिगड़ जाता है जिसकी वजह से उड़ान में दिक्क़त हो जाती है। दुर्गम और सकरी घाटियों के साथ ऊँचे-ऊँचे वृक्ष।
मौसम खराब होने की स्थिति में लैंडिंग की कोई जगह नहीं होती है, जहाँ विषम स्थिति में हेलीकॉप्टर को उतार दिया जाय। इसके अलावा हर उड़ान के समय तकनीकी जाँच होनी चाहिए, पता नहीं ऐसा होता भी रहा या नहीं। फिलहाल उड़ान पर प्रतिबन्ध लगाकर धामी सरकार ने उचित निर्णय लिया है। उड़ान भरने वाली सभी निजी कंपनियों की जाँच होनी चाहिए।
हेलीकॉप्टर हादसों के लिए जिम्मेदार लोगों की जबाबदेही तय होनी चाहिए। धार्मिक यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाने चाहिए।