भारत और मॉरीशस के अटूट सम्बंधों के सूत्रधार रहें हैं राजस्थान के देवीदान रत्नु

Devidan Ratnu of Rajasthan has been the architect of the unbreakable relationship between India and Mauritius

  • देवीदान रत्नु उर्फ स्वामी कृष्णानंद सरस्वतीको मॉरीशस के राष्ट्रपिता तुल्य माना जाता है
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी मॉरीशस यात्रा में दोनों देशों के साझा इतिहास तथा लोगों के बीच मजबूत संबंधों को याद किया

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिनों की मॉरीशस की भारत लौट आए हैं। वे भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो कि मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में दूसरी बार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए है तथा उन्हें मॉरीशस के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया गया हैं। मॉरीशस और भारत के सम्बंध बहुत पुराने है। विशेष कर मॉरीशस में जाने वाले लोगों को कभी यह महसूस ही नहीं होता कि वे अपने देश से बाहर हैं । मॉरीशस में हिन्दी और भौजपुरी बोलने वालों की संख्या बहुत अधिक हैं ।

भारत के सबसे बड़े भौगोलिक प्रदेश राजस्थान के साथ भी मॉरीशस का बहुत गहरा संबंध है। बहुत कम लोगों को यह मालूम हैं कि पश्चिम राजस्थान के बीकानेर जिले में जन्मे देवीदान रत्नु (स्वामी कृष्णानंद सरस्वती) को मॉरीशस के राष्ट्रपिता तुल्य माना जाता है और उनके सम्मान में मॉरीशस सरकार ने एक स्मृति डाक टिकट भी निकाला है ।

स्वामी कृष्णानंद सरस्वती का जन्म बीकानेर रियासत के गाँव दसौड़ी में चारण समाज में हुआ था । इनके पिता ठाकुर दौलतदान जी रत्नु गांव खारा के जागीरदार थे। स्वामी कृष्णानंद सरस्वती का जन्म नाम देवीदान रत्नु था। देवीदान की प्रारंभ से ही समाज सेवा , संगठन एवं पत्रकारिता में गहरी रुचि थी। उन्होंने मंडलीय चारण सभा और क्षत्रिय महासभा जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।अपनी योग्यता के कारण वे राजा महाराजा से लेकर आम जनता में सभी वर्गों के लोगों में लोकप्रिय हो गए।

इसी दौरान देवीदान का संपर्क क्रांतिकारी चारण केसरी सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, एवं अलवर के तत्कालीन महाराजा राज ऋषि जय सिंह आदि क्रांतिकारी देशभक्तों से हुआ ।देवीदान भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए इन राष्ट्र भक्त क्रांतिकारियों की भावनाओं से काफी प्रभावित हुए।दूसरी तरफ पंडित मदन मोहन मालवीय,महर्षि अरविंद स्वामी माधवानंद एवं स्वामी रामसुखदास जैसे महापुरुषों से भी बहुत प्रभावित थे । अंततः देवीदान रत्नु ने अपनी युवावस्था में जागीर ,पद एवं पूरे परिवार का परित्याग कर जोशीमठ में सन्यास जीवन ग्रहण कर लिया और वे स्वामी कृष्णानंद सरस्वती बन गए ।

सन्यास ग्रहण के पश्चात उन्होंने सर्वथा एकांत बद्रीनाथ के निकट भैरव गुफा में गहन चिंतन एवं समाधि में छह माह का समय बिताया। अंततः उन्हें प्रेरणा मिली कि दिन-दुखी प्राणी की सेवा में ही मानव जीवन सार्थक है । इस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने अपना प्रथम सेवा कार्य ऋषिकेश के कोढी रोगियों की सेवा के साथ प्रारंभ किया । बाद में वे विश्वव्यापी सेवा कार्य पर निकल पड़े। उस समय नेपाल में लोग मोतियाबिंद की बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद इलाज करवाने से कतराते थे।

स्वामी कृष्णानंद जी ने पटना से नेत्र चिकित्सकों के एक दल को नेपाल ले जाकर नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया ।स्वामी जी के मित्र एवं नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन शाह देव ने इस शिविर का उद्घाटन किया । तत्पश्चात स्वामी जी ने सैकड़ों नेत्र चिकित्सा शिविर लगाए एवं रोगियों को नेत्र ज्योति प्रदान की। इसके फलस्वरूप स्वामी कृष्णानंद नेपाल में “आंखें देने वाले बाबा” के नाम से विख्यात हों गए ।

कालान्तर में स्वामी जी का नेपाल से अफ्रीकी देशों में पदार्पण हुआ और उन्होंने वहां भी लोगों की सेवा का अनुपम कार्य किया। युगांडा के तत्कालीन तानाशाह ईदी अमीन ने वहाँ बसे भारतीयों को 15 दिन में देश छोड़ने का फरमान जारी किया और नहीं छोड़ने पर उन्हें मृत्युदंड देने का आदेश भी जारी किया था ।ऐसी स्थिति में स्वामी कृष्णानंद सरस्वती ने उन भारतीयों को इंग्लैंड और भारत की नागरिकता दिलवाकर अभूतपूर्व काम किया ।

स्वामी कृष्णानंद सरस्वती जी ने 71 देशों में निस्वार्थ सेवा का कार्य किया। इसी क्रम में स्वामी जी ने दीनबन्धु समाज तथा हिंदू मॉनेस्ट्री आदि संस्थाओं की भी स्थापना की। उस कालखंड में यूरोपियन एवं अमेरिकन देशों में बसे भारतीय मूल के कई प्रवासियों में संस्कारहीनता बढ़ने लगी थी । इस कारण वे धर्म परिवर्तन पर आमादा हों गए थे। स्वामी जी ने तब एक लाख गीता एवं रामचरितमानस की प्रतियां घर-घर पहुंचाई एवं सनातन संस्कृति का व्यापक प्रचार प्रसार किया।

इस दौरान स्वामी कृष्णानंद जी ने सर्वाधिक अद्भुत कार्य मॉरीशस में किया।मॉरीशस में भारतीय मूल के लोगों की बहुतायत थी परंतु फ्रांसीसी उपनिवेश होने के कारण बहुसंख्यक भारतीय मूल के लोगों के साथ वहाँ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।मॉरीशस के राष्ट्रीय नेता डॉ.शिवसागर रामगुलाम को निर्वासित कर उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। भारतीय मूल के लोग बहुसंख्यक होते हुए भी शिक्षा एवं राजनीतिक चेतना के अभाव में असहाय से हो गए थे, लेकिन तैरह वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद मॉरीशस स्वतंत्र हो गया। इस बीच स्वामी कृष्णानंद जी ने मॉरीशस के 40 होनहार नौजवानों के लिए इंग्लैंड और भारत में शिक्षा का प्रबंध किया और जब मॉरीशस आजाद हुआ तो डॉ.शिवसागर रामगुलाम को प्रधानमंत्री बनाया गया।तब से लेकर आज तक स्वामी कृष्णानंद जी द्वारा प्रशिक्षित वही 40 शिष्य मॉरीशस की सत्ता का भार संभालते रहे हैं। मॉरीशस की स्वतंत्रता से लेकर उसकी प्रगति तक के सूत्रधार स्वामी कृष्णानंद सरस्वती ही थे। इसी वजह से मॉरीशस सरकार ने स्वामी कृष्णानंद सरस्वती पर डाक जारी कर उनके प्रति श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट की है।मॉरीशस की गणना आज विकासशील देशों में की जाती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी मॉरीशस यात्रा में अपने अविस्मरणीय स्वागत से बहुत अभिभूत हुए है और उन्होंने कहा है कि यहां की संस्कृति में भारतीयता किस तरह रची-बसी है, उसकी पूरी झलक मुझे ‘गीत-गवई’ प्रदर्शन में देखने को मिली। हमारी भोजपुरी भाषा मॉरीशस में जिस तरह से फल-फूल रही है, वह हर किसी को गौरवान्वित करने वाली है। उन्होंने अपने सोशल हैंडल एक्स पर भोजपुरी में भी अपने उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा कि “मॉरीशस में यादगार स्वागत भइल। सबसे खास रहल गहिरा सांस्कृतिक जुड़ाव, जवन गीत – गवई के प्रदर्शन में देखे के मिलल। ई सराहनीय बा कि महान भोजपुरी भाषा मॉरीशस के संस्कृति में आजुओ फलत-फूलत बा और मॉरीशस के संस्कृति में अबहियो जीवंत बा।”

बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने मौरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल से स्टेट हाउस में मुलाकात की।दोनों नेताओं ने भारत और मॉरीशस के बीच विशेष तथा घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ावा देने पर चर्चा की और दोनों देशों के बीच साझा इतिहास तथा लोगों के बीच मजबूत संबंधों को याद किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में दूसरी बार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना उनके लिए सम्मान की बात है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति गोखूल और उनकी पत्नी वृंदा गोखूल को ओसीआई कार्ड सौंपे। राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल ने प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में राजकीय भोज का आयोजन किया।

तदुपरान्त प्रधानमंत्री मोदी ने सर शिवसागर रामगुलाम वनस्पति उद्यान, पैम्पल माउसेस में सर शिवसागर रामगुलाम और सर अनिरुद्ध जगन्नाथ की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम भी मौजूद थे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने मॉरीशस की प्रगति और भारत-मॉरीशस संबंधों के लिए एक मजबूत नींव बनाने में दोनों नेताओं की अमिट विरासत को याद किया।

पुष्पांजलि के बाद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत सरकार के सहयोग से स्थापित स्टेट हाउस में आयुर्वेद गार्डन का भी दौरा किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा के लाभों को आगे बढ़ाने में मॉरीशस भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार है।प्रधानमंत्री मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री रामगुलाम ने इस ऐतिहासिक उद्यान में “एक पेड़ माँ के नाम” पहल के तहत पेड़ भी लगाए ।

इस प्रकार भारत और मॉरीशस के अटूट सम्बंधों के सूत्रधार रहें राजस्थान में जन्में देवीदान रत्नु उर्फ स्वामी कृष्णानंद सरस्वती के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी मॉरीशस यात्रा में दोनों देशों के साझा इतिहास तथा लोगों के बीच मजबूत संबंधों को बहुत श्रद्धा पूर्वक याद किया हैं ।