पाकिस्तानी हुक्मरानों को बेनक़ाब करती फ़िल्म धुरंधर

Dhurandhar, a film that exposes Pakistani rulers

नरेंद्र तिवारी

फ़िल्म देखने के पूर्व समीक्षाए पढना माइंड सेट करती है। धुरंधर को देखने से पूर्व इसकी तमाम समीक्षाओं ने भी यही किया। लेखकों ने समीक्षाओं में अपने विचारों को थोपने की कोशिश भी की। असल में फ़िल्म धुरंधर सभी समीक्षाओं के पार अपने नाम के अनुरूप दर्शकों के मन को भा गयी। फ़िल्म देखकर यह महसूस हुआ की फ़िल्मी समीक्षाए पढ़कर किसी भी प्रकार की धारणाओं का निर्माण फ़िल्म के साथ अन्याय होता है। धुरंधर के विषय में कुछ ऐसी ही स्थिति बनी। आमतौर पर जब छोटे शहरों में सिनेमाघर संकट के दौर से गुजर रहे हो, बरसों बाद कुछेक मूवी इन बदहाल सिनेमा घरों को गुलजार कर जाती है, फ़िल्म धुरंधर भी इसी श्रेणी की फिल्मो में शामिल की जा सकती है। इस दौर में सच कहना, लिखना और दिखाना साहसिक कार्य हो गया है फिर फिल्मो के माध्यम से सच दिखाना तो और भी कठिन हो गया है। बरसों में एक दो फ़िल्म सच कह पाती है धुरंधर उनमे से एक है। इस फ़िल्म में भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के हुक्मरानों को बेनक़ाब किया गया है जो बरसों से भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे है। उन्होंने भारत को अशांत करने के लिए सारी मर्यादाओ को तोड़ दिया।

पाकिस्तान प्रायोजित आंतकवाद ने भारत की संसद पर हमला किया, मुंबई में 26/11के हमले को अंजाम दिया, नकली करेंसी भेजकर भारतीय अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया, भारत के कश्मीर सहित सीमावर्ती राज्यों में लगातार लम्बे समय तक आंतकी गतिविधियों को अंजाम दिया। यह सब पाकिस्तानी हुक्मरानों के इशारों पर पाकिस्तान में चल रहे आतंक के कारखानों, पाक सेना द्वारा प्रशिक्षित आतंकियों ने भारत में घुसकर किया।
धुरंधर आदित्य धर द्वारा लिखित ऐसी ही एक्शन फ़िल्म है। इसमें रणवीर सिँह, अक्षय खन्ना, आर माधवन, अर्जुन रामपाल, संजय दत्त, सारा अर्जुन और राकेश बेदी का शानदार अभिनय है। मानव गोहिल, दानिश पंडोर, सौम्या टंडन, गौरव गेरा और नवीन कौशिक सपोर्टिंग रोल में है।

फ़िल्म की शुरुवात 2001 में हुए संसद पर हमले के बाद विदेश मंत्री देवव्रत कपूर और आईबी के निदेशक के मध्य बातचीत से होती है। जिसमे कपूर, सन्याल के ‘आपरेशन धुरंधर’ को मंजूरी देते है। सन्याल भारतीय ऐजेंट हमजा अली मजारी को अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान भेजते है। हमजा की कराची के ल्यारी में मुलाक़ात मोहम्मद आलम से होती है, जो जूस की दुकान का मालिक है। हमजा जूस की दुकान पर वेटर का काम करता है, इस दौरान उसे गेंगस्टर रहमान डकैत और उसके विरोधी गैंग का पता चलता है। बलूच होने के नाते हमजा सिर्फ रहमान के गिरोह में ही शामिल हो सकता है। हमजा रहमान के गिरोह में शामिल होने की ताक में रहता है। इसी दौरान आलम और हमजा को पता चलता है की रहमान से अलग हुए बाबू डकैत के नैतृत्व में एक पठान गिरोह, रहमान के बड़े बेटे नईम बलूच को मारने की योजना बना रहे है। अगले दिन बाबू के आदमी एक शादी पर हमला करते है, जिसमे नईम और उसका छोटा भाई फैजल भी शामिल होता है। हमजा फैजल को बचा लेता है, लेकिन नईम मारा जाता है। अस्पताल में हमजा रहमान और उजेर से मिलता है, यहां से हमजा रहमान की गैंग में शामिल हो जाता है। गैंग में शामिल होकर अपने कामों से रहमान का खास बन जाता है। हमजा यहीं से पाकिस्तानी सरकार के हुक्मरानों और आतंक के सरगनाओं की निकटता को देखता है। पाकिस्तान की राजनीति के बड़े नाम रहमान जमाली, व्यवसाई खनानी बंधुओ, आईएसआई प्रमुख मेजर इक़बाल और रहमान डकैत की निकटता पाकिस्तानी मानसिकता को उजागर करती है। हमजा इस पूरी जुगलबंदी की भारत विरोधी गतिविधियों का साक्षी बनता है। हमजा भारत की इंटलीजेन्स को सूचनाएं भी भेजता है। हमजा द्वारा भेजी जानकारी के बाद भी 26/11 जैसी घटना घटित होती है। हमजा इसे देखकर आश्चर्यचकित रहा जाता है। वह पाकिस्तानी आंतकी गठजोड़ को खत्म करने का संकल्प लेता है। इस कार्य में जमील की बेटी यलीना से प्रेम और फिर शादी करता है। ये सबंध हमजा और जमील की निकटता को बढ़ाते है। रहमान डकैत के नेटवर्क को खत्म करने के लिए वह जमील और असलम के साथ सौदा करता है। 9 अगस्त 2009 को इसी योजना के तहत रहमान डकैत का खेल खत्म होता है।

फ़िल्म में हमजा अली जमाली की भूमिका रणवीर कपूर ने बखूबी निभाई रणवीर का लुक, बाड़ी और हावभाव ने उनकी अदाकारी का लोहा मानने को मजबूर कर दिया। रहमान डकैत के रोल में अक्षय खन्ना ने जान डाल दी है भूमिकाए सभी अच्छी निभाई गयी, फ़िल्म तीन घंटे में 30 साल की कहानी कह गयी। इस फ़िल्म ने पाकिस्तान की भारत विरोधी मानसिकता को उजागर किया है। जिसे भारतीय जनमानस लम्बे समय से महसूस करता आ रहा था, किंतु देख नही पाता था। फ़िल्मी परदे के माध्यम से पाकिस्तानी कारतूतों का सच उसी प्रकार दिखाई दिया जो भारत के नागरिको की सोच में शामिल था। फ़िल्म कितना कुछ बता पाई कितना बचा रह गया इसका अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है, किंतु भारत में अशांति फैलाने की पाकिस्तानी कोशिशो को नाकाम किया जाना बहुत जरुरी है। आपरेशन सिंदूर भारत की ऐसी ही कोशिश थी। जिसमे भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंक के कारखानों को नेस्तनाबूत किया था।

धुरंधर फ़िल्म का असली नायक हमजा अली जमाली है जो भारत के लिए जासुसी करने पाकिस्तान की धरती पर पहुंचाया गया था। फ़िल्म के बाद विभिन्न माध्यमो से इस किरदार के बारे में जानकारी एकत्रित करने पर ज्ञात हुआ की उक्त किरदार भारतीय सैनिक जसकिरत सिँह रंगी है, जिसे जासुसी के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। कुछेक माध्यम रंगी को एक कैदी भी बता रहे है जिसने खुद को छुड़ाने के लिए पाकिस्तान जाना भी मंजूर किया। असल में इस कार्य के लिए साहसी जीने का मकसद खो चुके व्यक्ति की तलाश थी, रंगी को यह भूमिका दी गयी थी। इन जानकारियों में कितनी सच्चाई है यह तो कह पाना मुश्किल है, किंतु इतना जरूर कहा जा सकता है की फ़िल्म के निर्माता निर्देशक ने सच्ची कहानी से जुडी फ़िल्म बताया है।

असल में पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए भारत में आतंकी गतिविधियों को बरसों तक अंजाम दिया है। सच्चाई यह भी है की पाकिस्तान के सत्तानवीशो का चरित्र कभी भी मानवीय नही रहा। यही कारण रहा की पाकिस्तान प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया। जबकि भारत ने पाकिस्तान की काली कारतूतों का जवाब भी दिया और दुनियाँ को यह दिखाने में कामयाब भी हो गया की पाकिस्तान की जमीन आतंक के कारखानों के रुप में उपयोग की जाती रही है। आपरेशन सिंदूर इन्ही कारखानों को नेस्तनाबूत करने की कार्यवाही थी। फ़िल्म धूरंधर ने तीन घंटे में बरसों से जारी पाकिस्तानी हुक्मरानों की भारत विरोधी नीतियों और काली कारतूतों को बेनक़ाब करने की कामयाब कोशिश की है।