ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना ही चाहिए, वह आज भी हैं इसके हकदार : दिलीप टिर्की

  • ध्यानचंद बतौर खिलाड़ी सबसे पहले भारत रत्न के हकदार थे
  • ध्यानचंद ने ही हॉकी की कलाकारी से आजादी से पहले दिलाई भारत को पहचान

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : 44 बरस के दिलीप टिर्की की गिनती भारत की अपने जमाने के महान फुलबैक और पेनल्टी कॉर्नर पर दमदार हिट से गोल करने वाले हॉकी खिलाडिय़ों में होती है। दिलीप टिर्की को भारत के लिए सबसे ज्यादा 412 अंतर्राराष्ट्रीय हॉकी मैच खेलने के गौरव हाासिल है ही उनके नाम 77 गोल भी हैं। वह भी तब जब दिलीप टिर्की ड्रैग फ्लिक से नहीं बल्कि अपनी दमदार सपाट हिट से पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करनेे के लिए ख्यात रहे। दिलीप टिर्की (1996 अटलांटा, 2000 सिडनी, 2004 एथेंस) भी दद्दा ध्यान चंद की तरह भारत के लिए लगातार तीन ओलंपिक खेले। बस फर्क इतना ही रहना खुद शानदार खिलाड़ी होने के बाद बावजूद एक भी ओलंपिक में भारत को पदक नहीं जिता पाए। वहीं दद्दा ध्यानचंद (1928 एमस्टर्डम, 1932 लॉस एंजेल्स, 1936 में बर्लिन) ने मुल्क के आजाद होने सेपहले भारत को लगातार तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जिता सुनहरी तिकड़ी पूरी की। भारत और दुनिया के निर्विवाद रूप से सर्वकालीन महानतम हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद की जन्म दिन 29 अगस्त को 2012 यानी पिछले एक दशक से राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप से मना रहा है। सोमवार 29 अगस्त को देश दद्दा ध्यानचंद की 117 वीं जयंती और राष्ट्रीय खेल दिवस मनाएगा।

देश में खेल में उत्कृष्टï योगदान के लिए सोमवार को राष्टï्रीय खेल दिवस पर देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार ध्यानचंद खेल रत्न और ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया जाएगा। हॉकी के जादूगर ध्यान चंद ने भारत के लिए अपने दो दशक के अंतर्रराष्ट्रीय हॉकी करियर में 185 मैचों में 570 गोल किए। ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक खेल भारत के लिए कुल 12 मैच खेल 39 गोल किए। घरेलू और अंतर्राष्टï्रीय हॉकी को कुल मिलाकर ध्यानचंद ने एक हजार से ज्यादा गोल किए। ध्यानचंद को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे की गुहार सबसे पहले 2011 में की गई। 2014 में कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार द्वारा सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न दिए जाने पर आज भी सवाल उठ रहे हैं। पूर्व ओलंपियन दिलीप टिर्की ने 2012 से 2018 तक बीजू जनता दल(बीजीडे) के राज्यसभा सांसद के रूप मे सड़क से संसद तक में ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने के लिए संघर्ष किया।

ध्यानचंद की 117 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर दिलीप टिर्की ने कहा, ‘ मेरे लिए बतौर हॉकी खिलाड़ी यह गौरव की बात है कि दद्दा ध्यानचंद जैसा लीजैंड भी हॉकी खिलाड़ी ही है। बेशक सचिन तेंडुलकर को तत्कालीन कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार ने 2014 में सबसे पहले भारत रत्न से नवाजा। फिर भी मेरा मानना है कि ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना ही चाहिए, वह आज भी सही मायनों में इसके हकदार हैं। आजादी से पहले और उसके बाद भी ओलंपिक में खेलों के रूप में तब भारत की पहचान सिर्फ और सिर्फ हॉकी से ही थी। होती भी क्यों न यह वाकई भारतीय हॉकी का सुनहरा दौर था। फिर भी मेरी नजर में बतौर खिलाड़ी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे जाने के हकदार ध्यानचंद ही थे। तब की यूपीए सरकार सोचना चाहिए था कि सबसे पहले कौन सा खिलाड़ी इसका दावेदार है। दद्दा ध्यानचंद ने अपनी हॉकी की कलाकारी से आजादी से पहले 1928, 1932, और 1936 में लगातार तीन ओलंपिक में भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक जिता कर उसे खेलों में अलग पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 1936 में बर्लिन ओलंपिक में भारत को सुनहरी कामयाबी तो ध्यानचंद ने अपनी कप्तानी में ही दिलाई। मैंने बीजेडी राज्यसभा सांसद के रूप में अपने कार्यकाल में संसद में तो इस मुद्दे को उठाया ही सड़क पर पूर्व ओलंपियनों के साथ मिलकर तत्कालीन सरकार से ध्यानचंद को भारत रत्न से नवाजे जाने की गुहार की थी।’

वह कहते हैं, ‘यह हम हॉकी खिलाडिय़ों के लिए गौरव की बात है कि अब देश का सबसे बड़ा पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न(पूर्व में राजीव गांधी खेल रत्न) के रूप में दिया जाने लगा है। ध्यानचंद के नाम लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया जाता है। हम हॉकी खिलाडिय़ों के लिए यह भी फख्र की बात है दद्दा ध्यानचंद जैसे हॉकी के जादूगर के नाम पर ही उनके जन्म दिन 29 अगस्त को 2012 से राष्टï्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब जितनी जल्द ध्यानचंद को भारत रत्न से नवाजा जाएगा उतना हॉकी खिलाडिय़ों के साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात होगी। हॉकी में दद्दा का सा योगदान मेरी राय में किसी और खिलाड़ी का नहीं है। इस खेल दिवस पर भी दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न मिल जाए तो इससे बेेहतर और क्या होगा। भारत की पुरुष हॉकी टीम ने बीते बरस 1980 में मास्को में ओलंपिक में हॉकी में अपना आठवां आखिरी स्वर्ण पदक जीतने के 41 बरस टोक्यो में कांसे के रूप में अपना पदक जिता। इसमें हमारी ओडिशा सरकार के भारतीय हॉकी टीम के मिले सहयोग का भी खासा योगदान रहा। दद्दा आज जीवित होते तो वह भी जरूर आज की विश्व की प्रतिस्पद्र्धात्मक में भारतीय टीम की इस उपलब्धि से जरूर खुश होते।’

दिलीप टिर्की ने कहा, ‘जहां तक हॉकी इंडिया को फिलहाल जहां तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रशासकों की समिति(सीओए) द्वारा चलाने पर एफआईएच द्वारा चेताने की बात है तो इस बाबत मैं यही कहूंगा कि हॉकी सहित खेलों के विकास के लिए जरूरी है कि सरकार, खेल संघ (हॉकी इंडिया), एफआईएच के बीच तालमेल बराबर बना रहे। खेलों का विकास तभी मुमकिन है जब सब कुछ नियमों के मुताबिक हो। मैं उम्मीद करता हूं कि हम एक बार फिर पुरुष हॉकी विश्व कप बिना किसी बाधा के सफलतापूर्वक कराने में कामयाब होंगे।