- प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को देश-विदेश में बच्चों में मधुमेह (टाइप-1 डायबिटीज ) के प्रति जागरूकता फैलाने के काम में जुटी गुजरात की दो चिकित्सक बहनों डॉ .स्मिता जोशी और डॉ. शुक्ला बेन रावल ने लिखा भावुक पत्र
- 11 जनवरी 2023 को “राष्ट्रीय मधुमेह बाल दिवस” घोषित किया जाएँ
- राष्ट्रीय चिकित्सा नीति घोषित करने की जरुरत
- प्रधानमंत्री के “मन की बात” कार्यक्रम में भी दिया जाए सन्देश
नीति गोपेन्द्र भट्ट
नई दिल्ली : बच्चों में मधुमेह (टाइप-1 डायबिटीज ) के लिए देश-विदेश में जागरूकता फैलाने के काम में जुटी गुजरात की दो चिकित्सक बहनों डॉ .स्मिता जोशी और डॉ. शुक्ला बेन रावल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को एक भावुक पत्र लिख कर भारत में बच्चों में टाइप-1 मधुमेह की रोकथाम ,ईलाज और सामजिक चेतना एवं जन जागरूकता लाने के लिए आगामी 11 जनवरी 2023 को “राष्ट्रीय मधुमेह बाल दिवस” घोषित करने का आग्रह किया है I उन्होंने कहा कि ऐसा कर भारत इस वैश्विक चुनौती के समाधान की दिशा में “विश्व गुरु” की भूमिका भी निभा पायेगा I
डॉक्टर जोशी बहनों ने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी को अवगत कराया कि अनुमान है कि विश्व में 537 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और निकट भविष्य में भारत मधुमेह की विश्व राजधानी बनने जा रहा है क्यों कि भारत में मधुमेह से पीड़ित बच्चों और किशोरों की आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। इस मामले में अमरीका दूसरे नंबर पर है I
डॉ .स्मिता जोशी ने बताया कि 11 जनवरी 2023 को इंसुलिन इंजेक्शन खोज के 100 साल पूरे हो रहे हैं, चूँकि 11 जनवरी 1922 को ही कनाडा के एक अस्पताल में मधुमेह से पीड़ित मरणासन्न 14 वर्षीय लियोनार्ड थॉम्पसन नामक बच्चे को इंसुलिन इंजेक्शन की पहली खुराक दी गई थी। इंसुलिन डिस्कवरी की इस खोज को विश्व में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ा मील का पत्थर माना गया था । आगामी 11 जनवरी 2023 को दुनिया इंसुलिन खोज का शताब्दी वर्ष पूरा होने का जश्न मनाने जा रही है।
उन्होंने बताया कि भले ही आज से 100 साल पहले इंसुलिन की खोज हो गई थी लेकिन,इस घातक रोग से विश्व में सबसे अधिक पीड़ित भारत में आज भी बच्चों की डायबिटीज के प्रति जागरूकता का अत्यधिक अभाव है। विशेष कर आमतौर पर सभी यह मानते हैं कि मधुमेह बुढ़ापे का रोग और अमीर लोगों की बीमारी है । यह धारणा हमारे देश के लिए अत्यधिक घातक है क्योकि आज भी हम बच्चों की डायबिटीज के लिहाज से विश्व में सबसे पहले स्थान पर है और इसे नजर अंदाज कर और इसके प्रति लापरवाही बरत कर हम देश में करोड़ों और बच्चों को मधुमेह की अंधी सुरंग में धकेल रहें हैं। दुर्भाग्य से,जागरूकता की कमी के कारण, इन मधुमेह बच्चों के अपंग हो जाने और आखों की रोशनी चले जाने आदि समस्याओं के साथ ही उनका भारत में औसत जीवन काल 25 वर्ष से भी कम है। इस प्रकार ये बच्चे असमय अकाल मृत्यु से काल के ग्रास बन रहें हैं ।
राष्ट्रीय चिकित्सा नीति घोषित करने की जरुरत
डॉक्टर जोशी बहनों ने अपने पत्र में लिखा है कि इन निर्दोष मधुमेह पीड़ित बच्चों की रक्षा के लिए भारत-सरकार को बच्चों के मधुमेह सम्बन्धी एक राष्ट्रीय चिकित्सा नीति घोषित करने की जरुरत हैं क्योकि वर्तमान में ऐसी कोई नीति नहीं होने से किसी सरकारी योजना का लाभ इन्हे नहीं मिल पा रहा हैं। उन्होंने बताया कि मधुमेह पीड़ित बच्चों को प्रतिदिन 3 से 4 बार इंसुलिन इंजेक्शन कि सुइयों की पीड़ा भुगतनी पड़ती हैं,जबकि अमरीका जैसे विकसित देश अपने बच्चों को पीड़ा रहित इंसुलिन इंजेक्शन आदि आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करा रहें हैं। भारत में तों कोविड-19 महामारी के दौरान हालात और भी अधिक ख़राब और भयावह हो गए थे। विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब परिवारों से जुड़े बच्चों के स्थिति बहुत दयनीय थी क्योकि उनके माता-पिता इंसुलिन इंजेक्शन आदि महंगी चिकित्सा का खर्चा उठाने में सक्षम नहीं होने के साथ ही उनके सामने अपने परिवार को पालने के साथ ही आजीविका-रोजगार से जुडी दुगनी चुनौतियाँ भी थी ।
प्रधानमंत्री के “मन की बात” कार्यक्रम में भी दिया जाए सन्देश
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से यह अनुरोध भी किया हैं कि मधुमेह पीड़ित बच्चों के सम्बन्ध में जन जागरूकता पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री के “मन की बात” कार्यक्रम में भी बार बार सन्देश दिया जा सकता हैं । डॉक्टर जोशी बहनों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक “युग पुरुष” बताते हुए लिखा हैं कि आपका स्पर्श मधुमेह पीड़ित बच्चों के स्वास्थ्य के लिए “पारस मणि” जैसा साबित होगा।
उल्लेखनीय हैं कि दोनों डॉक्टर जोशी बहनें गुजरात के मेहसाणा जिला के डॉ. वासुदेव जे.रावल चैरिटेबल ट्रस्ट,उंझा ट्रस्ट की सदस्य और प्रधानमंत्री के गृह नगर वड नगर के पास स्थित विश नगर कस्बें की निवासी हैI