“पिछले साल के पौधे भी देखे क्या?”

“Did you see last year’s plants too?”

हर वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर हम पौधे लगाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन एक प्रश्न अनदेखा रह जाता है — क्या पिछले साल लगाए पौधे अभी भी जीवित हैं?
पौधारोपण अब महज़ एक दिखावे का आयोजन बन चुका है, जिसमें जिम्मेदारी गौण और प्रचार प्रमुख हो गया है।
जरूरत है “वृक्षपालन” की, जिसमें हर पौधा हमारी ज़िम्मेदारी बने। शब्दों से आगे बढ़कर यदि हर नागरिक एक पौधे की सालभर देखभाल करे, तो हरियाली केवल पोस्टरों तक नहीं, ज़मीन पर भी लौटेगी। पर्यावरण दिवस फोटो के लिए नहीं, भविष्य के लिए मनाएं।

प्रियंका सौरभ

आज जब पर्यावरण दिवस की बात होती है, तो सबसे पहले जो दृश्य मन में आता है वह है – एक हरे-भरे पौधे के साथ खड़े कुछ लोग, हाथ में कुदाल या पानी की बाल्टी नहीं, बल्कि मोबाइल कैमरा होता है। चेहरे पर पर्यावरण बचाने का उत्साह कम, तस्वीर में मुस्कुराने का भाव अधिक होता है। पर्यावरण दिवस अब ‘सेल्फी-दिवस’ बन चुका है – पौधारोपण करते हुए नहीं, फोटो अपलोड करते हुए।

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या पिछले वर्ष लगाए गए पौधों की कोई खबर ली आपने?
या वे केवल एक “फेसबुक पोस्ट” का हिस्सा बनकर रह गए?

इस लेख के माध्यम से मैं एक गंभीर और जरूरी सवाल उठाना चाहती हूँ – क्या हमने पौधारोपण को जिम्मेदारी के रूप में नहीं, एक अवसर के रूप में देखा है? और क्या हरियाली सिर्फ फोटो में ही रह गई है?

हरियाली: आंकड़ों में बढ़ी, धरातल पर घटी

सरकारें हर वर्ष दावा करती हैं कि लाखों पौधे लगाए गए। बड़े-बड़े आँकड़े पेश होते हैं कि वन क्षेत्र में वृद्धि हुई, इतने हज़ार हेक्टेयर में वृक्षारोपण हुआ। लेकिन सवाल यह है कि उन लाखों पौधों में कितने जीवित बचे?

सच्चाई यह है कि बिना देखभाल, बिना सिंचाई, बिना सुरक्षा के लगाए गए पौधे जंगल का हिस्सा नहीं बनते, बल्कि मिट्टी में मिल जाते हैं।
लेकिन हम उन्हें आँकड़ों में हरियाली मान लेते हैं।

फोटो से आगे नहीं बढ़ती पर्यावरण की चिंता

आधुनिक समाज में पर्यावरण की चिंता केवल तब तक रहती है जब तक उसका प्रचार किया जा सके। जैसे ही कैमरा बंद होता है, हमारी जिम्मेदारी भी समाप्त हो जाती है।
आज हर सार्वजनिक संस्था, विद्यालय, दफ्तर, यहाँ तक कि नेताओं और अधिकारियों तक के लिए पौधारोपण एक इवेंट बन गया है, जिसमें ‘लाइक्स’ और ‘शेयर’ मिलते हैं, मगर जड़ें नहीं बढ़तीं।

आपने पिछले साल वृक्ष लगाया था, क्या उस पौधे का नाम रखा? क्या आप महीने में एक बार उसे देखने गए?
नहीं ना?

क्योंकि हमने वृक्षारोपण को एक फोटो फ्रेम में कैद कर दिया, जीवन के हिस्से की तरह नहीं अपनाया।

वृक्षारोपण नहीं, वृक्षपालन चाहिए

हमारे पुराणों में, संस्कृति में, यहाँ तक कि जीवन चक्र में भी वृक्षों का महत्व सर्वोपरि बताया गया है।
मनुष्य का जन्म पीपल के नीचे हो सकता है, शिक्षा वटवृक्ष की छाया में मिलती है, और अंतिम यात्रा भी लकड़ी के सहारे होती है।

फिर भी हम वृक्षों के साथ उपयोग के बाद उपेक्षा करते हैं।
हर साल करोड़ों रुपये पौधे लगाने पर खर्च होते हैं, लेकिन उनके संरक्षण पर नहीं।

हमें वृक्षारोपण नहीं, वृक्षपालन चाहिए।

विकास के नाम पर विनाश

शहरों में ‘विकास’ के नाम पर बड़े-बड़े वृक्ष काटे जाते हैं – सड़क चौड़ी करनी है, मॉल बनाना है, बिजली लाइन डालनी है।
प्रशासन कहता है – “हम एक के बदले दो पौधे लगाएंगे।”

पर क्या उन दो पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है?
क्या उन पर जाल नहीं चढ़ते?
क्या कोई उन्हें जल देता है?

विकास की परिभाषा से प्रकृति बाहर कर दी गई है, और अब वह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।

विद्यालयों में हरियाली – केवल प्रतियोगिताओं तक सीमित

विद्यालयों में पर्यावरण दिवस पर भाषण प्रतियोगिताएँ, चित्रकला, और निबंध लेखन तो खूब होते हैं।
बच्चे “वृक्षों का महत्व” पर कविताएँ रटते हैं।
लेकिन क्या किसी स्कूल ने यह सुनिश्चित किया कि जो पौधा बच्चों ने लगाया, उसकी देखभाल वर्षभर हो?

क्या कभी बच्चों की प्रगति पत्रिका में यह लिखा गया कि “अभिजीत ने बरगद के पौधे की देखभाल की”?
नहीं, क्योंकि हमारे लिए पौधे लगाना परीक्षा का प्रश्न है, जीवन का हिस्सा नहीं।

हर वर्ष एक ही दोहराव — फिर समाधान क्या?

हम सब जानते हैं कि वर्षा, जलवायु, ऑक्सीजन, जीवन चक्र – सबका आधार वृक्ष हैं।
पर हम केवल ‘5 जून’ को सजग होते हैं।

तो क्या समाधान है?

एक व्यक्ति – एक पौधा – एक वर्ष तक देखभाल
सरकार, विद्यालय, पंचायतें इस अभियान को अनिवार्य करें।
स्थानीय वृक्षों को प्राथमिकता दें। पीपल, नीम, सहजन, आम, बेर, वटवृक्ष जैसे पेड़ अधिक उपयोगी और टिकाऊ होते हैं।
प्रत्येक पौधे को पहचान संख्या (कोड) दी जाए जिससे उसकी निगरानी हो सके। विद्यालयों में ‘वृक्षपालन प्रतियोगिता’ हो
और छात्रों की रिपोर्ट में उसकी प्रगति जोड़ी जाए। निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के अंतर्गत केवल पौधारोपण नहीं, उनकी जीवित रहने की दर भी अनिवार्य हो। फोटो के साथ यह ज़िम्मेदारी भी पोस्ट करें कि ‘मैं इसे वर्ष भर सींचूंगा।

मानसिक बदलाव आवश्यक है

जब तक वृक्षों को हम प्रकृति का अधिकार नहीं मानेंगे, और स्वयं को उसका रक्षक नहीं समझेंगे, तब तक कोई सरकारी योजना, कोई अभियान काम नहीं आएगा।

आपको याद है आपने पिछले वर्ष जो पौधा लगाया था, वो अब कहां है?

यदि नहीं पता – तो अगली बार लगाने से पहले संकल्प लें कि आप उसका रक्षक भी बनेंगे।

अब ये जरूरी है

पर्यावरण दिवस केवल तिथि नहीं, चेतना है।
वृक्ष केवल लकड़ी नहीं, जीवन हैं।
पौधारोपण केवल कार्यक्रम नहीं, भावनात्मक जुड़ाव है।

इस वर्ष केवल ‘पौधा लगाएं’ मत कहिए,
बल्कि कहिए — “मैं इसे वृक्ष बनाऊँगा।”