रावेल पुष्प
कोलकाता : वर्ल्ड थिंकर्स एंड राइटर्स पीस मीट के अन्तर्गत अपने चतुर्दिवसीय विभिन्न कार्यक्रमों की श्रृंखला में एक दिन रामकृष्ण मिशन, गोलपार्क में कोलकाता ट्रांसलेटर्स फ़ोरम द्वारा एक विशेष परिचर्चा आयोजित की गई जिसका विषय था- अनुवाद और विश्व शांति!
कार्यक्रम के पहले सत्र में फो़रम के अध्यक्ष रावेल पुष्प की अध्यक्षता एवं नबनिता देव सेन के संचालन में फ़ोरम के कार्यकारी अध्यक्ष श्यामल भट्टाचार्य ने बताया कि इस फ़ोरम के साथ अकादमी पुरस्कार प्राप्त तथा विभिन्न भाषाओं के समर्पित अनुवादक जुड़े हुए हैं। यह फ़ोरम इस बीच युवा अनुवादकों के लिए कार्यशाला में भी आयोजित कर चुका है एवं कोरोना-काल में भी सक्रिय रहते हुए विश्व स्तरीय कई अनूदित पुस्तकों तथा अन्य विषयों पर ऑनलाइन चर्चा भी आयोजित कर चुका है । फ़ोरम के अध्यक्ष रावेल पुष्प ने सबसे पहले अपने स्वागत वक्तव्य में इंटरनेशनल सोसायटी फॉर इंटर कल्चरल स्टडीज एंड रिसर्च द्वारा कोलकाता में देश-विदेश के चिंतकों, साहित्यकारों तथा कलाकारों को एक साथ विश्व शांति के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर गंभीर चर्चा के लिए एकत्रित किया, इसके लिए सचिव सुदीप्तो चटर्जी तथा उसकी टीम को धन्यवाद एवं अभिनंदित किया और कहा कि यह एक ऐसा विश्व स्तरीय संगम है,जो निश्चय ही नफ़रत, अविश्वास और असंवेदनशीलता के अंधेरों से दुनिया को मुक्त करने में अपनी सार्थक भूमिका अदा करेगा। उन्होंने एक शायर की पंक्तियों से अपनी बात की पुष्टि करते हुए कहा कि –
कह दो अंधेरों से कहीं और घर बना लें
मेरे शहर में रौशनी का सैलाब आया है।
उन्होंने इस मौके पर लगभग 300 से अधिक विश्व शांति एवं अन्य विषयों पर प्रकाशित लेखों के संकलन की पुस्तक जारी किये जाने की भी चर्चा और प्रशंसा की।
कार्यक्रम के अगले चरण में अनुवाद और विश्व शांति पर अपना बीज वक्तव्य रखते हुए श्री सौम्यजीत आचार्य ने कहा कि अनुवाद वो औजार है जो एक भाषा से दूसरी भाषा, उनकी संस्कृति और विचारों के बीच ऐसा पुल बनाने का काम करता है तो अंततः विश्व शांति की ओर ले जाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस चर्चा में साफल्य नंदी ने जहां उड़िया में किए गए अन्य भाषाओं से अनुवाद की भूमिका पर चर्चा की, वहीं श्यामल भट्टाचार्य और तन्मय बीर ने इसके सांस्कृतिक एवं सामाजिक पक्ष पर अपने विचार रखे।
चंद्रशेखर भट्टाचार्य ने आज के कठिन समय में अनुवाद के महत्व की चर्चा करते हुए जहां इतिहास के उस क्रूर नाज़ी काल की भी चर्चा की वहीं जया चौधरी ने स्पेनिश से बांग्ला अनुवाद के संदर्भ में अपनी बातें रखीं।
रावेल पुष्प ने चर्चा में भाग लेते हुए इसे एक नया मोड़ दिया और कहा कि जब तक व्यक्ति अपने जीवन में अहंकार को त्याग कर मानवतावादी विचारों को अपने कार्यों में अनूदित या रूपांतरित नहीं करता तब तक न तो परिवार में न समाज में और अंततोगत्वा न विश्व में शांति स्थापित हो सकती है।
नवनीता सेनगुप्ता द्वारा संचालन के दौरान की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियों तथा फ़ोरम की सचिव तृष्णा बसाक द्वारा इस पूरी चर्चा पर अपनी समीक्षात्मक दृष्टि ने परिचर्चा को काफ़ी असरदार कर दिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में अनूदित कविताओं का पाठ देश-विदेश से आए कवियों ने किया, जिसमें शामिल थे- सर्वश्री सुधांशु रंजन साहा, लिपिका साहा,फटिक चौधरी,बप्पादित्य रायविश्वास, पारमिता मुखर्जी मल्लिक, पूर्वा दास, नंदिता भट्टाचार्य,शम्पा राय, मिथिलेश झा, मग्गी विजय कुमार, स्वप्न बेरा, जवा मुर्मू, शशांक जौहरी, मोहम्मद जाहिद, तनुश्री सरकार और सुप्तश्री सोम।
अनुवाद और विश्व शांति पर हुई इस तरह की परिचर्चा ने सभी उपस्थित श्रोताओं के चिंतन में कई नए पक्ष जोड़ने का काम किया।