
प्रो. नीलम महाजन सिंह
संसद को प्रजातंत्र के मंदिर का माना जाता है। जनता के द्वारा चुने हुए व्यक्ती संसद में आतें है। फ़िर ऐसा क्यों होता है कि केन्द्रीय सरकारों व विपक्ष के बीच सहयोग नहीं बनता? बिल, बिना चर्चा के पारित हो रहे हैं। युवा पीढ़ी के समक्ष क्या उदाहरण दिया जा रहा है? संसद के मॉनसून – 2025 सत्र में आम आदमी के सवाल धुल गए। 21 जुलाई, संसद के मॉनसून सत्र का आखिरी दिन हंगामेदार था। विपक्ष वोटर लिस्ट में संशोधन समेत अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी में थी। सत्र की शुरुआत से अंतिम दिन तक, लगभग पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। बीते एक महीने में संसद की कार्यवाही के दौरान विपक्ष ने अलग-अलग मुद्दों को लेकर जमकर हंगामा किया। ख़ासकर बिहार में एसआईआर (SIR) का मुद्दा सदन के अंदर व बाहर छाया रहा। विपक्षी सांसद सदन में एसआईआर पर चर्चा की मांग उठाते रहे। जिसके बाद 22 अगस्त को संसद को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया गया। इस सत्र में लोकसभा में 12 विधेयक पारित हुए व 419 प्रश्न शामिल किए गए। विपक्ष के हंगामे पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि सदन में गरिमापूर्ण तरीके से चर्चा होनी चाहिए। पी.एम. नरेंद मोदी ने मॉनसून सत्र को ‘विजयोत्सव सेशन’ बताया था। इसके बाद भी सदन में पहले दिन से आखिरी दिन तक विपक्ष ने हंगामा जारी रखा। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन अहम बिल पेश किए। विपक्ष ने इन तीनों बिलों के विरोध किया। विपक्ष के हंगामे के बीच ‘ऑनलाइन मनी गेम्स’ पर पूरी तरह से बैन लगाने वाले ‘ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन बिल: 2025’ को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन, विपक्ष को लेकर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा; कि विपक्ष चर्चा में शामिल हो सकता था लेकिन उसने जमकर हंगामा किया। स्पीकर ओम बिरला ने विपक्ष के रवैये को निराशापूर्ण बताया। लोकसभा स्पीकर ने सदन की कार्यवाही में सहयोग के लिए पीएम मोदी, सभापति तालिका पर विराजमान सहयोगियों, केंद्रीय मंत्रिगणों,नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न दलों के नेताओं, माननीय सदस्यों, प्रेस और मीडिया के प्रतिनिधियों, लोकसभा सचिवालय और संबद्ध एजेंसियों का धन्यवाद अदा किया। राज्यसभा की कार्यवाही 38.6 घंटे चली। वहीं लोकसभा की कार्यवाही 36.1 घंटा चली। लोकसभा व राज्य सभा में मर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं हुआ। संसद परिसर में नारेबाज़ी करना, तख्तियां दिखाना और नियोजित गतिरोध संसदीय मर्यादा को आहत करता है। सत्र में जिस प्रकार की भाषा व आचरण को देखा गया, वह संसदीय गरिमा के अनुकूल नहीं है। हम सभी का दायित्व है कि हम सदन में स्वस्थ परंपराओं के निर्माण में सहयोग करें। हमें नारेबाज़ी व व्यवधान से बचते हुए गंभीर और सार्थक चर्चा को आगे बढ़ाना चाहिए था। संसद सदस्य के रुप में सांसदों को अपने कार्य व व्यवहार से देश और दुनिया के समक्ष एक आदर्श स्थापित करना चाहिए। संसद परिसर में हमारी भाषा सदैव संयमित व मर्यादित होनी चाहिए। कार्यसूची में 419 तारांकित प्रश्न (star questions); शामिल किए गए थे, लेकिन लगातार विपक्षिय हंगामे की वजह से मौखिक उत्तर के लिए सिर्फ 55 प्रश्न ही लिए जा सके। सत्र की शुरुआत में यह तय किया गया था कि इस सत्र में 120 घंटे चर्चा और संवाद होगा। बिज़नैस एडवाइजरी कमेटी में भी इस पर सहमति थी। लेकिन लगातार गतिरोध व नियोजित व्यवधान की वजह से ऐसा नहीं हुआ।मॉनसून सत्र में 12 विधेयक पारित हुए। 18वीं लोकसभा के पांचवें सत्र की समाप्ति के दौरान, स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि इस दौरान 14 सरकारी विधेयक पुन:स्थापित किए गए और कुल 12 विधेयक पारित किए गए। 28 – 29 जुलाई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विशेष चर्चा हुई, जिसका समापन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तर के साथ हुआ। 18 अगस्त, 2025 को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों पर विशेष चर्चा शुरू की गई। पहले दिन से आख़िरी दिन तक पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ‘संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025’, ‘संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2025’ और ‘जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025’ को संयुक्त तौर पर पेश किया। इस बिल को जेपीसी (Joint Parliamentary Committee) को भेजा गया। संसद की एक घंटे की कार्यवाही में इतने करोड़ होते हैं खर्च, इस मानसून सत्र में कितना हुआ नुकसान? आपराधिक मामलों में गिरफ़्तारी के बाद पीएम और सीएम को कुर्सी से हटाने वाले बिलों पर खूब बवाल हुआ। ऐसे में सवाल यह है कि संसद में होने वाली इस चर्चा पर एक दिन का खर्च कितना आता है और हंगामे से कितना नुकसान होता है? यह जनता से टैक्स के रूप में लिया गया धन है।
संसद में जब भी चर्चा होती है तो एक मिनट का खर्च आम आदमी की पूरे सालभर की कमाई के बराबर होता है। यहां एक मिनट के लिए 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। यानी एक घंटे में ₹1.5 करोड़ से ज्यादा का खर्च आता है। ये आंकड़ा साल 2012 में पूर्व संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल ने दिया था, अब करीब 13 साल बाद ये खर्च कई गुना ज़्यादा हो सकता है। इसमें लाइव टेलीकास्ट, एयर कंडीशनिंग और कर्मचारियों का पूरा खर्च शामिल हैं। इस दौरान कई अतिरिक्त कर्मचारी भी लगाए जाते हैं। साथ ही सांसदों को आने-जाने व बाकी भत्ते भी दिए जाते हैं। सुषमा स्वराज ने 2012 में कहा था कि ‘संसद को चलने न देना भी अन्य लोकतंत्रों की तरह ही लोकतंत्र का एक रूप है’। अरुण जेटली ने कहा था कि ‘संसदीय अवरोध अलोकतांत्रिक नहीं है’।सारांशार्थ, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जहां मोदी सरकार अपने कार्यों को सकारात्मक रूप से पेश करने की कोशिश कर रही थी, वहीं विपक्ष भी सरकार को आयना दिखाने का अधिकार रखती है। आम जनता के हितों हेतु संसद में प्रश्नोत्तर काल महत्वपूर्ण है। संसद को ना चलने देना, विपक्ष की पराजय है, परंतु संसद को नियंत्रित कर सुचारु रूप से नहीं चला पाना, सरकार की विफलता भी है। इससे लोकतान्त्रिक प्रणाली पर धब्बा अंकित होता है।