प्रो: नीलम महाजन सिंह
जैसे ही मैं यह लेख लिख रही हूँ, मेरा दिल टूटा हुआ है और मेरी आत्मा छलनी सी हो गई है। मेरी आंखों से आँसू बह रहे हैं और मैं कांपते हाथों से लिख रही हूँ! भारत की राष्ट्रपति भी महिला हैं; महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी। मैंने बालिकाओं और महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों पर हज़ारों-हज़ार लेख लिखे हैं। हर बार मुझे समय में पीछे जाकर महिलाओं के जीवन में घटी उन दर्दनाक घटनाओं को याद करना पड़ता है, जिन्हें साधारण भाषा में ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध’ कहा जाता है। प्रत्येक राजनीतिक नेता और सरकार जो सत्ता में आती है, हमारे देश में महिला आबादी और समान अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डालती है। राजनेताओं का कहना है कि वे समाज में महिला सशक्तिकरण व सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने यह भी देखा है कि समय-समय पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े आदेश दिये हैं। उन्होंने इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को कैसे रोका जाए। हाल ही में मणिपुर में महिलाओं के साथ भयावह यौन शोषण ने महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यानाकर्षित किया है। सचमुच मुझे क्षमा कीजिए! !जैविक रूप से एक पुरुष और एक महिला अलग प्राकृति से बने होते हैं। अंतर गुप्तांगों, हार्मोनों और स्तनों का है! शरीर के बाकी सभी आंतरिक अंग वैसे ही हैं! फिर दोनों लिंगों के प्रति दृष्टिकोण में अंतर क्यों है? पिछले तीन दशकों से मैंने महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों का खुलासा किया है। मैंने बालिकाओं को सशक्त बनाने का समर्थन किया है। मैं उन लोगों में से थी जिन्होंने भारत में मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का विचार; तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दिया था। मेरा हमेशा से यह दृढ़ विश्वास रहा है कि हमारे देश के शासन में युवाओं को अधिक शक्ति दी जानी चाहिए। हमारी युवा पीढ़ी जो हर तरह से संघर्ष कर रही है व अपनी उपलब्धियों से देश को गौरवान्वित कर रही है। अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में, मुझे पिछले पैंतीस वर्षों को फिर से याद करते हुए उन भयावहताओं को याद करना होगा जिनसे महिलाएं गुज़री हैं और कैसे उनके साथ अमानवीय क्रूरता का व्यवहार किया गया है, कैसे उन्हें भावनात्मक रूप से प्रताड़ित, परेशान किया गया व घुटन का सामना करना पड़ा है। नैना साहनी का उनके पति सुशील शर्मा द्वारा ‘तंदूर मर्डर केस’, शकेरेॅ खलीली की उनके दूसरे पति, स्वामी श्रद्धानंद मिश्रा द्वारा जिंदा दफना दिए जाने के मामले; आज भी हमें परेशान करते हैं। शकेरेॅह की पहली शादी भारतीय राजनयिक अकबर खलीली से हुई थी। मनु शर्मा द्वारा जेसिका लाल की हत्या, ए.के. सिंह द्वारा प्रियदर्शिनी मट्टू की निर्मम हत्या, कुछ ऐसे मामले हैं जिन्होंने देश के नागरिकों को झकझोर कर रख दिया। हालाँकि ‘ज्योति सिंह उर्फ निर्भया कांड’ के सामूहिक बलात्कार व हत्याकांड ने समाज की सामूहिक चेतना को आक्रोशित किया। संसद द्वारा एक कानून बनाया गया है, ‘कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम -2013’। इस कानून ने ‘विशाखा दिशानिर्देश’ का स्थान लिया है। न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा ने ऐसे नियम और कानून बनाए जिनका अनुपालन हर राज्य के लिए अनिवार्य है। प्रत्येक संगठन कार्यालय, सरकारी विभाग, निजी कंपनी आदि को 4 से 5 सदस्यों की एक समिति का गठन करना होगा, जिसमें से दो महिलाएँ होनी चाहिए। कामकाजी महिला के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न या किसी भी तरह की समस्या की जानकारी इस समिति को देनी होगी, जो शिकायतों की जांच करेगी व कार्रवाई के लिए तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी। सामाजिक और आर्थिक डर के कारण, पीड़िता शायद ही शिकायत दर्ज करवातीं हैं। इसके अलावा ये तथाकथित समितियाँ, महिलाओं के मुद्दों पर गौर करने के प्रति गंभीर नहीं हैं। हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक समारोह, महिला की उपस्थिति के बिना अधूरा है। अथर्ववेद में कहा गया है कि “माँ बच्चे की पहली शिक्षक, परिवार की पहली गुरु व घर की देवी है”। उपनिषद, महिलाओं को देवी के रूप में स्तुति करते हैं। पवित्र ‘क़ुरान’ माँ को महत्व देती है और उसके बाद पिता को! “यदि आप अपने माता-पिता से प्यार व उनका सम्मान नहीं करते हैं, तो कोई भी धर्म आपकी प्रार्थना स्वीकार नहीं करेगा”। अपने जीवन के सांध्यकाल में, मुझे उन भयावहताओं को याद करना होगा जो महिलाओं के साथ हुई हैं; बर्बर, अमानवीय क्रूरता से उन्हें लाल-नीला किया गया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में एक श्लोक है: “एक माँ अपने बेटे के अपराधों पर ध्यान नहीं रखती। हे भगवान, मैं आपका बेटा हूँ। आप मेरे पापों को नष्ट क्यों नहीं करते?” माँ एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी होती है। “माँ के कदमो के आला जन्नत हैहै” कुरान। पैगंबर साहिब के दूत ने एक सलाह चाही तो, पैगम्बर साहब ने पूछा, “क्या आपकी माँ है? उन्होंने कहा, हाॅ। पैगंबर साहब ने कहा, उसके साथ रहो, क्योंकि माँ पैरों के नीचे स्वर्ग है (स्रोत: सुनन अल-नसाई 3104)। यशायाह 66:13: “जैसे किसी को उसकी माँ शांति देती है, वैसे ही मैं भी तुम्हें शांति दूंगा।” यशायाह 49:15: “क्या कोई माँ अपने दूध पीते बच्चे को भूल सकती है? क्या वह उस बच्चे के प्रति प्रेम महसूस नहीं करती, जिसे उसने जन्म दिया है?” नीतिवचन 31:25: “वह शक्ति और गरिमा से ओत-प्रोत है; वह आने वाले दिनों पर हँस सकती है।” पवित्र बाइबल कहती है कि “माँ मैरी प्रभु यीशु की माँ है”। फिर समाज में बर्बर पुरुषों का एक ऐसा वर्ग क्यों है, जो मनोरोगी अपराधी हैं? ये बर्बर पुरुष महिलाओं के साथ घृणा, शत्रुता व अवमानना का व्यवहार करते हैं। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि हम सभी महिलाओं के गर्भ से पैदा हुए हैं। माँ प्रकृति सृष्टि की जननी है। वह गर्भ में पल रहे बच्चे को दूध पिलाना शुरू कर देती है। माँ अपने जीवन की आखिरी सांस तक अपने लड़के या लड़की की देखभाल करती है। फिर ऐसा क्यों है कि हम माँ, पत्नी, बहन या बेटी का सम्मान नहीं करते? समाज महिलाओं के प्रति इतना उदासीन क्यों हो गया है? मैं एक महिला हूँ और मैं उस दर्द को समझती हूँ जो एक माँ, पत्नी, बेटी, बहन या हमारी महिला मित्रों के साथ दुर्व्यवहार होने पर होता है। मैं एक महिला हूँ और मैं समझती हूं कि जब पति अपनी पत्नी पर विश्वासघाती तरीके से हमला करता है तो इसका क्या मतलब होता है? मैं स्वयं अपने निजी जीवन में राजनेताओं, नौकरशाहों या मीडियाकर्मियों के हाथों; जघन्य अपराधों की शिकार हुई हूँ! मैंने भरोसा किया और मेरे सामाजिक जीवन में, मेरी पीठ पीछे छुरे घोंपें गये। जो पुरुष मेरे जीवन में आए व जिन्होंने अपने जीवन में मेरा ध्यानाकर्षित करने के लिए विनती की, उन्होंने ही मुझे भावनात्मक रूप से पीड़ा दी और मेरे ही संसाधनों को हड़प लिया! उनके आँसुओं और विनती ने अंततः मुझे पिघला दिया। कुछ संबंध तो इतने जुनूनी हो गये कि मेरा सांस घुटने लगा। चौदह वर्षों तक मुझे परित्याग दिया गया। कई दिनों तक बिना भोजन व पानी के कमरों में बंद रखा गया। फिर भी आज मैं जीवित हूँ ओर युवाओं के लिए प्रेरणा भी! भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति फातिमा बेगम थीं। जस्टिस भानुमति, इंदु मल्होत्रा, इंदिरा बनर्जी, बी.वी. नागरत्ना, बेला त्रिवेदी आदि भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचीं। स्त्रियों के संबंध में भगवद्गीता कहती है, “क्योंकि, हे पुत्र पार्थ, जो निम्न कुल की स्त्रियां, वैश्य शूद्र भी हो सकती हैं, वे भी मेरी शरण में आकर परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेतीं हैं” (गीता 9 32.3)। आइए जाति, धर्म व लिंग भेद से ऊपर उठकर अपने सपनों का एक ऐसा भारत बनाएं, जहां महिलाओं को सम्मान व सुरक्षा मिले। ऐसा न हो कि समाज टूट जाये और भविष्य में अंधकार छा जाये। कयोंकि हम भारत के लोगों को महिला सशक्तीकरण का हिस्सा बनना है। सत्यमेव जयते।
प्रो: नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)