ललित गर्ग
देश भर में हर साल 25 अगस्त से 8 सितम्बर तक मनाए जाने वाले नेत्रदान पखवाड़े का मकसद यही है कि लोगों में नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियां दूर हो एवं नेत्रदान के लिये लोगों को प्रोत्साहित किया जाये। किसी व्यक्ति के जीवन में नेत्रदान के महत्व को समझने के साथ ही नेत्रदान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी संगठनों, सार्वजनिक संस्थानों और दूसरे व्यवसायों से संबंधित लोगों द्वारा हर वर्ष यह पखवाड़ा मनाया जाता है। इंसान की सम्पत्ति का कोई मतलब नहीं अगर उसे बांटा और उपयोग में नहीं लाया जाए, चाहे वे शरीर के अंग ही क्यों न हो। इस दृष्टि से नेत्रदान एक महान् दान है, जो हमें स्वर्ग-पथ की ओर अग्रसर करता है। ऐसा दानदाता समाज, सृष्टि एवं परमेश्वर के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन करता है। किसी के द्वारा दिये गये नेत्र से किसी को जीवन में रोशनी मिल सकती है, उसकी जिन्दगी में बहार आ जाती है।
आंखों के अभाव में जीवन जटिल, अंधकारमय एवं अधूरा होता है। व्यक्ति की आंखें न केवल जीवनभर उसे रोशनी देती हैं वरन मरने के बाद किसी और की जिंदगी का अंधेरा भी दूर कर सकती हैं। यह अंधेरा कैसे मिटाया जा सकता है इस सवाल का जवाब भी हमारे पास ही है। नेत्रदान के जरिए ही उन लोगों के जीवन में रोशनी लाई जा सकती है जिन्हें अंधेरा अभिशाप के रूप में मिला है। कॉर्निया खराबी के कारण हुई अंधता से ग्रसित व्यक्तियों के लिए नेत्रदान वरदान है। कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, जाति, धर्म और समुदाय का हों, वह नेत्रदान कर सकता है। भारत महर्षि दधीचि जैसे ऋषियों का देश है, जिन्होंने एक कबूतर के प्राणों व असुरों से जन सामान्य की रक्षा के लिये अपना देहदान कर दिया था। परंतु समय के साथ भारत में अंगदान की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई। निश्चित तौर पर नेत्रदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में नई उम्मीदों एवं रोशनी का सवेरा लाया जा सकता है। इस तरह नेत्रदान करने से एक प्रेरणादायी शक्ति पैदा होती है, जो अद्भुत होती है, यह ईश्वर के प्रति सच्ची प्रार्थना है। इस तरह की उदारता व्यक्ति की महानता का द्योतक है, जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी प्रसन्नता, जीवनऊर्जा प्रदान करती है।
समाज में नेत्रदान के प्रति जागरूकता बढ़ाकर भारत नेत्रदान के क्षेत्र में एक सम्मानजनक मुकाम पर पहुंच सकता है। यदि सभी मृत व्यक्तियों द्वारा नेत्रदान किया जाए तो देश में कोई भी कॉर्निया में खराबी होने के कारण हुई अंधता से ग्रसित नहीं होगा। तथ्यों की रोशनी में लगभग 1 करोड़ 80 लाख व्यक्ति अंधता के अभिशाप से ग्रसित है। देश में अंधता/दृष्टिबाधिता के पांच प्रमुख कारण मोतियाबिंद, कालापानी, दृष्टिदोष, रेटिना (पर्दे) की बीमारियां एवं आंख की पारदर्शी पुतली (कॉर्निया) में होने वाले रोग हैं। भारत में कुल अंधता का लगभग एक फीसदी कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के कारण है। देश भर में एक लाख बीस हजार लोगों की दोनों आंखों का कॉर्निया अंधता की स्थिति तक खराब है। वहीं लगभग दस लाख लोगों की दोनों आंखों का कॉर्निया प्रभावित होने के कारण उन्हें कम दिखता है। लगभग 68 लाख लोगों का एक कॉर्निया प्रभावित है। चिंता की बात यह है कि हर साल 25-30 हजार लोग कॉर्निया खराब होने के कारण अंधता से ग्रसित हो रहे है। हर वर्ष कम से कम एक लाख पचास हजार कॉर्निया की जरूरत रहती है पर नेत्रदान इसके मुकाबले एक तिहाई भी नहीं है। इसलिये नेत्रदान के लिये एक जन-क्रांति एवं जागृति अभियान की जरूरत है। हम लोग लायन्स क्लब नई दिल्ली अलकनन्दा के माध्यम से विगत 30 वर्षों से लगातार नेत्रदान को प्रोत्साहन देने के लिये अभियान चला रहे हैं, ऐसी अनेक संस्थाएं हैं, जो इस कार्य में लगी है।
दुनियाभर में नेत्रदान एवं रक्तदान के प्रति जागरूकता की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों ने इसका महत्व समझा और आगे आकर स्वेच्छा से नेत्रदान एवं रक्तदान करने लगे हैं, उसी प्रकार अंगदान के प्रति वैश्विक जागरूकता की महत्ती आवश्यकता है। लोग अब नेत्रदान के लिए भी आगे आने लगे हैं। तथ्य बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर अंगदान में भारत की हिस्सेदारी बहुत ही कम है। यहाँ प्रति 10 लाख पर मात्र 0.15 लोगों द्वारा ही अंगदान किया जाता है। जब की प्रति 10 लाख पर अमेरिका में 27, क्रोएशिया में 35 एवं स्पेन में 36 लोग अंगदान करते हैं। अंगदान का पूरा रिकार्ड संधारित किया जाता है जिसकी जानकारी ‘‘नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन‘‘ को दी जाती है। 65 वर्ष उम्र तक के वे व्यक्ति जिनका ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हैं वे अंगदान कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति का 4 घंटे तक दिल एवं फेफड़े, 6 से 12 घंटे तक किडनी, 6 घंटे तक लिवर, 24 घंटे तक पेनक्रियाज एवं 5 साल तक टिश्यू को सुरक्षित रख जा सकता है। प्राकृतिक मौत पर दिल के वाल्व, कॉर्निया, त्वचा एवं हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है।
नेत्रहीनता एक अभिशाप है, जिसका असर हमारी अर्थ-व्यवस्था पर भी देखने को मिलता है। इण्डियन जरनल ऑप्थेलमॉलोजी के जून 2022 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार भारत में नेत्रहीनता की वजह से देश भर में करीब 800 करोड़ रुपए की उत्पादकता प्रभावित होती है। मृत्यु के बाद आंखों का दान करने को लेकर हमारी धार्मिक मान्यताएं भी आड़े आती हैं। मृत देह से आंखें निकालने के बाद चेहरे में विकृति आने, मधुमेह व रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत आंखें काम नहीं आने व पुरुष के केवल पुरुष व महिलाओं के केवल महिलाओं की आंख लगाने जैसी भ्रांतियों को दूर किया जाना जरूरी है। इतना जरूर है कि धीरे-धीरे लोगों में नेत्रदान को लेकर जागरूकता आने लगी है और वे मृत्यु उपरांत नेत्रदान का संकल्प करने लगे हैं। नेत्रदान की अहमियत और प्रक्रिया के बाबत लोगों को जागरूक करने के लिये ही नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। एक दाता आठ जरूरतमंदों की जान बचा सकता है। कोई भी व्यक्ति इस पुनीत कार्य से जुड़ कर जीवन सार्थक बना सकते हैं।
एक जीवित व्यक्ति के लीवर का अंश दो व्यक्तियों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। लीवर की भांति पैंक्रियाज का आंशिक दान किया जाता है, फिर भी दाता का यह अंग बखूबी कार्य करता रहेगा। केवल भारत में ही नहीं दुनिया में हर साल लाखों लोगों के शरीर के अंग खराब होने के कारण मृत्यु हो जाती है। कुछ लोग चाहते हुए भी नेत्रदान नहीं कर पाते। इसकी बड़ी वजह प्रक्रिया की जानकारी का अभाव है। नेत्रदान के बारे में जागरूकता बढ़ाकर नेत्रदान की परम्परा को आगे बढ़ाया जा सकता है। हमारे यहां कॉर्निया के दान के क्षेत्र में गुजरात, आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र सबसे आगे हैं। देश में कॉर्निया की खराबी के कारण अंधता (कॉर्नियल ब्लाइंडनेस) की गहन समस्या को देखते हुए यह जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों से मरणोपरांत नेत्रदान के संकल्प पत्र भरवाए जाएं। हादसों में अपने प्रियजनों को गंवाने वाले भी धैर्य धारण करते हुए अपने प्रियजन के नेत्रदान की दिशा में पहल करते हुए इस मुहिम को गति देने में आगे आ सकते हैं। जरूरत नेत्रदान को लेकर भ्रांतियों को दूर करने की है।
भारत के आम नागरिकों में नेत्र दान को लेकर उचित शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। अधिकांश लोग मृत्यु के बाद जीवन एवं पारलौकिक विश्वासों में जीता है। अतः शरीर के अंगों में काट-छाँट उन्हें प्रकृति व धर्म के विपरीत लगता है। इसके अलावा समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अंगदान के प्रति लोगों में स्पष्ट अवधारणा का अभाव में भय एवं मिथक, दूर दराज क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव, मानसिक तौर पर मृत व्यक्ति के परिजनों की सहमति नहीं मिल पाना, अस्पताल में अंग लेने के साधनों का अभाव और सबसे ऊपर जागरूकता का अभाव ऐसी चुनौतियां है जिन पर गहन चिंतन-मनन करते हुए अंगदान को व्यापक बनाया जा सकता हैं। लोगों को खासकर ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को समझना होगा कि अंगदान सबसे बड़ा दान एवं पुण्य का काम है। अंगदान कर आप किसी जरूरतमंद व्यक्ति का जीवन बचा कर पुण्य कमाने में पहल कर समाज में उदाहरण बन सकते हैं।