गोरे रंग पे न इतना गुमान कर

शिशिर शुक्ला

पिछले दिनों एक राज्य की हाईकोर्ट के फरमान से तो जैसे मेरा दिल गार्डन गार्डन हो गया। पूरी बात समझाने के लिए स्टोरी को जरा विस्तार देना चाहूंगा। असल में दुनिया और कुदरत बड़ी रंगबिरंगी है, बस आपके अंदर रंग को पहचानने की प्रतिभा होनी चाहिए। अब मैं ठहरा भौतिकी का शिक्षक, सो ये गहरी बात मुझे पता है कि भइया ऑब्जेक्ट से जो रंग अंखियों तक पहुंचेगा, ऑब्जेक्ट उसी रंग का नजर आएगा। हमारे सूरज देवता भी अपने अंदर सात रंग छुपाए रहते हैं। खैर भूलोक में तरह-तरह के ऑब्जेक्ट हैं। कुछ तो इतने शालीन व सज्जन हैं कि सूर्यनारायण को प्रणाम करके सारे के सारे रंगों को रिफ्लेक्ट कर देते हैं। ऐसे ऑब्जेक्ट आम बोलचाल की भाषा में गोरे या गौरवर्ण की उपाधि से विभूषित एवं विख्यात होते हैं। ये जो गीत बना है, “गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर..” वह खासतौर से इन्ही के लिए रचा गया है। अब बात आती है दूसरे प्रकार के या यूं कहें कि बेशरम ऑब्जेक्ट की, तो भैया जो विज़िबल स्पेक्ट्रम के सारे रंग चूस लेते हैं वो इस विशेष श्रेणी में आते हैं। एक राज की बात आपको बता दें, मैं भी इसी बेशर्म वाली स्पेशल कैटेगरी में आता हूं। अब बेशर्मी का कुछ तो प्रसाद मिलेगा ही, तो ये बेशर्मी के जीते जागते पुतले काले कलूटे, करिया भुजंग, उल्टा तवा, कल्लू आदि-आदि अलंकारों से विभूषित किये जाते हैं। बहुत हद तक अगर कहीं इज्जत बख़्श दी गई, तो बेचारों को सांवरा सलोना कहकर कुछ सांत्वना दे दी जाती है।

मैं भी बचपन से अनवरत रूप से इन विशेष उपाधियों के द्वारा संबोधन के कड़वे काढ़े के साथ गिनी चुनी तथाकथित सम्मान की बूंदों के प्रसाद से खुद को धन्य करता आया हूं।विद्यार्थी जीवन तक तो जैसे तैसे मैं अपनी गाड़ी खींच लाया। लेकिन प्रोफेसर की नौकरी मिलने के बाद बात आई शुभविवाह की, तो मैं भलीभांति समझ रहा था कि नौकरी और छोकरी दोनों उपलब्धियों की योग्यता और मानक अलग-अलग हैं। छोकरी की प्राप्ति में टैलेंट के साथ-साथ सुंदरता और वो भी गौरवर्ण का अपना अलग ही रोल होता है। लेकिन ये बातें दुनिया को कौन समझाए। खैर, घरवालों की जिद पर वो दिन आ पहुंचा, जब मुझे रिश्ते का श्रीगणेश करने जाना था। जिसका डर था वही हुआ, कन्या के रंग और मेरे रंग में जमीन आसमान का अंतर था। “मुश्किल है अपना मेल प्रिये…” वाली धुन मेरे दिलोदिमाग पर दस्तक दे रही थी। बात करना तो दूर की बात नजरों की फ्रीक्वेंसी मिलाना भी नितांत मुश्किल लग रहा था। मुझे बाहर का रास्ता एकदम साफ दिख रहा था। लेकिन कभी-कभी किस्मत भी पूरे मजे लेने के मूड में होती है। कन्या इतनी सुशील व संस्कारवान निकली कि मेरा भौतिक विज्ञान का शिक्षक होना मेरे काले रंग पर भारी पड़ गया था। नतीजा ये हुआ कि चट मंगनी पट ब्याह। कुछ बरस तो सब कुछ इस तरह चलता रहा जैसे कि एक गीत है कि, “दिन महीने साल गुजरते जाएंगे, हम प्यार में जीते प्यार में मरते जाएंगे”। लेकिन कुंडली के ग्रहदशा हमेशा एक से तो रहते नहीं। मैडम का पता नहीं कैसे कुछ ऐसा ब्रेनवाश हुआ कि अब तो मेरा प्रातःजागरण से लेकर रात्रिशयन तक कर्कश शब्दबाणों का सामना करते हुए बीतने लगा। और कोई विषय तो था नहीं, केवल एक मेरा करिया रंग ही था, जिसे गौरवर्णी मैडम हमेशा निशाने पर लिए रहती थीं। हद तो तब हुई जब मेरे काले रंग को रिमांड पर लेकर मुझ पर भावनात्मक अत्याचार किया जाने लगा और इस अत्याचार के सहारे अपनी फरमाइशों को पूरा किया जाने लगा। मैं दिन-रात लाचार होकर यही मनाता था कि साला कैसे भी चमड़ी में मेलनिन का लेवल ऊपर नीचे हो जाए या फिर कुछ चमत्कार हो जाए कि चमड़ी की अवशोषण क्षमता शून्य हो जाए। बॉडी केवल रिफ्लेक्शन ही रिफ्लेक्शन करने लगे तो फिर हम भी हीरो बन जाएं। मगर चमत्कार तो केवल फिल्मों में होते हैं, असलियत में नहीं। लेकिन एक कहावत है कि जिसका कोई नहीं, उसका खुदा होता है।

अभी कुछ दिन पूर्व कर्नाटक की हाईकोर्ट ने मेरे जैसे कलुओं पर कृपा बरसाते हुए मानो एक अभेद्य सुरक्षा कवच पहना दिया हो। कोर्ट ने साफ कहा कि पति को काला कहना क्रूरता है और इस आधार पर पति पत्नी को तलाक दे सकता है। अपनी कसम खाकर कहता हूं, जिस दिन यह समाचार अखबार की सुर्खियों में आया और हमारी गोरी मैडम जिनकी कि सुबह उठते ही अखबार बांचने की आदत है, उनकी नजरों के सामने पड़ा, यकायक उनकी आंखें जैसे फट गई हों। बड़ी गहनता से पढ़ने के बाद मानो उनको और उनके गोरे रंग को सांप सूंघ गया। बहरहाल मेरे प्रति उनका व्यवहार अचानक बदल गया है। लहजे में सम्मान और वाणी में मिठास की ओवरडोज शामिल होती दिख रही है। खाते पीते, घूमते टहलते, शॉपिंग हर वक्त अब मेरी ही मर्जी चलती है। मैं भी कम खुराफाती नहीं हूं, सो यदा-कदा मैडम को कोर्ट के फरमान वाला अखबार दूर से ही दिखा देता हूं। नतीजा यह होता है कि मैडम को भी ये गीत याद आ जाता है कि, “काले गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है.”। अब मुझे अपने मेलनिन लेवल अथवा अवशोषण क्षमता को लेकर ऊपरवाले से कोई शिकायत नहीं।