
प्रो. नीलम महाजन सिंह
अपराधशास्त्र के जनक माने जाने वाले इतालवी चिकित्सक डा. सेसारे (शेजारे) लोम्ब्रोसो 19 वीं सदी में जब किसी भी अपराध के पीछे की मानसिकता का गहन अध्ययन कर रहे थे, तब उनके अध्ययन क्षेत्र में एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी की नृशंस हत्या का मामला नहीं था। यूं तो वह दौर भी जघन्य अपराधों से भरपुर था, लेकिन संतान की हत्या के केस विरले ही नज़र आते हैं। भारतीय समाज में ऐसी घटना विचलित करने वाली होती है। समाजशास्त्र में एक वाक्य उद्धृत है – ‘नो सोसायटी एग्जिस्टज़ विदाउट क्राइम’। लेकिन इस वाक्य के भाव में भी पिता अपनी ही बेटी की हत्या कर दे, यह नहीं है। मानवता के लिए, समाज के लिए मध्ययुगीन दौर को सबसे अधिक बर्बर व हिंसक माना गया है। उस दौर में भी अधिकांश हत्याएं राजसत्ता के लिए हुई हैं, समाज में इतनी गिरावट नहीं देखी गई, जबकि समाज, सामंती सोच से अभिप्रेत था। आज 21वीं सदी में जब समाज प्रगतिशील है, मानवीय मूल्य महत्वपूर्ण हैं, मानवता श्रेष्ठतम धर्म है, सोच-विचार से हम आधुनिक हो रहे हैं, परिवार में संवाद, उदारता, अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता को जगह मिल रही है, वैचारिक आज़ादी है, ऐसे दौर में अगर एक पिता अपनी बेटी की हत्या सिर्फ इसलिए कर दे कि वह जीवन में आगे बढ़ना चाहती थी व उनकी कमाई पर जीने का आरोप पिता सह नहीं पा रहा था। हरियाणा के गुरुग्राम में राधिका यादव की पिता द्वारा हत्या ने देश-समाज को सन्निहित किया है। क्या बेबी का आगे बढ़ना इतना बड़ा अपराध है कि एक पिता उसकी जान ही ले ले? यदि पुत्र व पुत्री में कोई अंतर नहीं है तो उसकी कमाई में भी कोई फर्क नहीं होना चाहिए। भारतीय समाज की सोच में गज़ब का दोगलापन व विरोधाभास है। एक तरफ तो ‘सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। यत्र नारीयस्य पूजयन्ते तत्र रमंते देवता।’, दूसरी ओर समाज पितृसत्तात्मक सामंती सोच में जकड़ा हुआ है। बीते सप्ताह ‘राधिका यादव हत्याकांड’ ने समाज के इसी दोगलेपन को एक बार फ़र अनावृत किया है।
पिता दीपक यादव ने अपनी 25 साल की बेटी को, ताबड़तोड़ गोलियों से भून दिया। फ़िर अपने भाई विजय से बोला, “भाई मैंने कन्या वध कर दिया है, मुझे फांसी दिलवाओ”। वो तो मिलेगी ही मासूम बेटी के हत्यारे! राधिका की सहेली हिमांशिका सिंह राजपूत ने इंस्टाग्राम पोस्ट में एक वीडियो संदेश में कहा है कि राधिका के पापा उसे कंट्रोल करते थे। उसे तस्वीर खिंचवाना, वीडियो बनाना पसंद था, लेकिन सब धीरे-धीरे बंद हो गया व राधिका की आज़ादी उन्हें नागवार थी। राधिका कहती थी उसके परिवार में बहुत रेस्ट्रिक्शन हैं। हर चीज़ के बारे में सफाई देते रहो कि क्या कर रहे हो और क्या नहीं? दीपक यादव ने अपनी बेटी की हत्या का ज़ुर्म, पुलिस व मैजिस्ट्रेट के समक्ष कुबूल कर लिया है। पुलिस ने बताया था कि राधिका यादव एक टेनिस अकादमी चलाती थी, जो उसके व उसके पिता के बीच विवाद का कारण बन गई थी, क्योंकि उसके पिता को अक्सर अपनी बेटी की कमाई पर गुज़ारा करने के लिए ताने मारे जाते थे। लव जिहाद के आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया है।
शायद महिलाओं की बलि चढ़ती रहेगी, क्योंकि भारत में पिता, भाई, पति व पुत्र ही महिलाओं को कंट्रोल करते हैं। दो वर्ष पूर्व देव-भूमि उत्तराखंड में 19 वर्षीय युवती, अंकिता भंडारी की निर्मम हत्या के उपरान्त, महिला सुरक्षा का मुद्दा सुर्खियों में आया था। समाज की यह चुप्पी निंदा योग्य है। भोपाल की सुषमा सिंह को मगरमच्छों की झील में फेंक दिया गया था। शकीरे नमाज़ी खलीली, एक रियल एस्टेट डेवलपर थीं, जो 1991 में लापता हो गईं। मुख्य संदिग्ध उनका ढोंगी दूसरा पति, स्वामी श्रद्धानदा था, जिसका मूल नाम ‘मुरली मनोहर मिश्रा’ था। एक स्टिंग ऑपरेशन द्वारा; तीन साल के बाद, कर्नाटक पुलिस को उसने हत्या की बात स्वीकारा। 1994 में पुलिस को शकीरे खलीली के, आवास में दफनाए गए अवशेषों तक अपराधी ले गया। वह जेल में आजीवन कारावास में सज़ा पूरी कर, रिहा हो चुका है। राजदूत अकबर मिर्ज़ा खालिली, आईएफएस की पत्नी, शकीरे खलीली, 4 बेटियों के बाद, बेटे की मां बनने की इच्छुक थीं। वे इस तांत्रिक के जाल में फंस गईं थीं। ‘निर्भया कांड’; ज्योति सिंह मर्डर केस के दरिंदों को तो फांसी मिल चुकी है। जेसिका लाल की हत्या के मामले ने सनसनी फैलाई थी। इस केस में सज़ा पाए मनु शर्मा को ‘अच्छे व्यवहार’ के कारण रिहा कर दिया गया। नैना साहनी की हत्या 2 जुलाई 1995 को की गई। यह हत्याकांड ‘तंदूर कांड’ के नाम से चर्चित हुआ। नैना साहनी के पति, कांग्रेसी नेता सुशील शर्मा, ने ही उनकी हत्या की थी। सुशील शर्मा भी कानूनी सज़ा पूरी कर आज़ाद है। 26 साल पहले हुए एक खौफनाक कांड में, पुलिस अफसर के बेटे, सुशील कुमार सिंह ने प्रियदर्शिनी मट्टू का रेप व मर्डर किया था। आम जन का पुलिस व कानून से भरोसा हटने लगा है। प्रियदर्शनी मट्टू के पिता, सी.एल. मट्टू ने यह न्यायिक युद्ध लड़ा। परंतु अब सुशील सिंह भी सजा पूरी कर आज़ाद हो चुका है।
उत्तर प्रदेश के अमर मणि त्रिपाठी व मधुमिता शुक्ला का प्रसंग; रौंगटे खड़े कर देने वाला है। मधुमिता शुक्ला के गर्भवती होने की कहानी ने सुर्खियां बटोरीं। त्रिपाठी पति-पत्नी ने उसे षडयंत्रपूर्ण मार डाला व अब आजीवन कारावास काट रहे हैं। भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे, पुलकित आर्य के निजी रिसॉर्ट; ‘अनंतरा’ के परिसर से लापता हुई, अंकिता भंडारी का शव पुलिस को चिल्ला बिजलीघर के पास मिला। पुलकित आर्य को आजीवन कारावास की सज़ा हुई है। महिलाओं की हत्या व उनके साथ दरिंदगी की हदें पार हो गई हैं। सरला मिश्रा, कांग्रेसी नेता व मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की अनुयायी थी। भोपाल में उसे आग में जला कर मार दिया गया था। न्यायिक आदेश द्वारा सरला हत्याकांड की पुनः जांच, सीबीआई करेगी। सरला मिश्रा की आत्महत्या या मर्डर का रहस्य जारी है। देश में महिला हत्या की अनेक घटनाएं हुई हैं, लेकिन सबका ज़िक्र संभव नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक, सबसे अधिक क्राइम महिलाओं के खिलाफ़ हो रहे हैं।
जस्टिस ऐ. एन. वर्मा कमिटी रिपोर्ट के आधार पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो पारित हो गये हैं, परन्तु धरातल पर वे कार्यान्वित नहीं होते। जब तक पुरुष प्रधान समाज से ‘सामंती (फ्यूडल) विचारधारा’ को ध्वस्त नहीं किया जाएगा, तब तक इसी प्रकार महिलाओं के साथ अपराध होते रहेंगें। ‘नारी का सम्मान’, ‘लाडली’, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘बेटियाँ हमारी गौरव’ जैसे प्रोग्रेसिव विचार; अक्षर मात्र हैं। पितृसत्तात्मक सामंती दृष्टिकोण, महिलाओं के मर्डर व असंबद्ध समाज महिलाओं का हत्यारा है। राधिका यादव को इंसाफ मिलना चाहिए, यह इंसाफ समाज का प्रायश्चित है कि वो अपनी बेटियों की सुरक्षा का संकल्प लें। ज़रा सोचिये, क्या राधिका की आत्मा नहीं कहेगी, ‘अगले जन्म मुझे बिटिया न कीजो’। आप के घर में भी बच्चियां होंगीं? कृप्या उन्हें सुरक्षित रखें, गोलियों से मत भूनिये।