इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली के राजेन्द्र नगर में राऊ आईएएस कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में बारिश का पानी भर जाने से तीन सिविल सेवा अभ्यर्थियों की डूब जाने से हुई मौत के मामले में पुलिस की जांच के तरीके ने दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबलियत की भी पोल खोल कर रख दी।
मध्य जिले के डीसीपी एम हर्षवर्धन के नेतृत्व में पुलिस ने इस मामले में एक बेकसूर वाहन चालक को गैर इरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर खाकी वर्दी को खाक में मिला दिया।
कमिश्नर,आईपीएस पर लगा दाग़-
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा, स्पेशल कमिश्नर (कानून एवं व्यवस्था) रवींद्र सिंह यादव, संयुक्त पुलिस आयुक्त परमादित्य, मध्य जिले के डीसीपी एम हर्षवर्धन की पेशेवर काबलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है। कमिश्नर और आईपीएस अफसरों पर बेकसूर इंसान को गिरफ्तार करने का दाग़ तो लग ही गया।
क्या इन आईपीएस अफसरों को तफ्तीश की कानूनी रूप से अनिवार्य और बुनियादी बातें भी नहीं मालूम हैं ?
इन आईपीएस अफसरों ने अगर समझदारी/जिम्मेदारी/ गंभीरता/ संवेदनशीलता और सही तरीके से अपने कर्तव्य का पालन किया होता, तो हाईकोर्ट में भी दिल्ली पुलिस की इतनी जबरदस्त बेइज्जती नहीं होती।
कार्रवाई हो-
जिस वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बेकसूर वाहन चालक को गिरफ्तार करने का अमानवीय/ गैर कानूनी/ हास्यास्पद निर्णय लिया और जिस वरिष्ठ अफसर ने गिरफ्तारी की अनुमति/मंजूरी/सहमति दी, उनके खिलाफ तो सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि ऐसे मामले में बिना वरिष्ठ अफसरों के निर्देश/ सलाह/अनुमति के एसएचओ/जांच अधिकारी अपने आप तो किसी को गिरफ्तार करने का निर्णय नहीं लेता।
माफ़ी मांगें-
आईपीएस अफसरों की आंखों में अगर जरा सी भी शर्म या पानी है तो उन्हें कम से कम उस कार चालक से सार्वजनिक रूप से माफ़ी तो मांगनी ही चाहिए।
पुलिस की बख़िया उधेड़ दी-
इस मामले में पुलिस की भूमिका और तफ्तीश को लेकर हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की, ताने दिए और जांच सीबीआई को सौंप दी। दो अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायधीश तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने आदेश दिया कि जांच दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपी जाए, क्योंकि पीठ ने पाया कि दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों या अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
पानी का चालान नहीं काटा-
अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने अभी तक एमसीडी अधिकारियों को तलब भी नहीं किया है, बल्कि एक गुजर रहे वाहन के चालक को गिरफ्तार कर लिया है।
अदालत ने कहा शुक्र है, कि आपने बेसमेंट में घुसने के लिए बारिश के पानी का चालान नहीं काटा और न ही पूछा कि पानी बेसमेंट में कैसे घुसा। जिस तरीके से आपने वहां से गुजर रही गाड़ी के ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस में हिम्मत नहीं-
पीठ ने बिना किसी संकोच के कहा, आपमें एमसीडी अधिकारियों को बुलाने की हिम्मत भी नहीं है। एमसीडी अधिकारियों की जिम्मेदारी गाद साफ करने की है। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो उसे समझना चाहिए कि यह आपराधिक लापरवाही है।
राहगीर की गिरफ्तारी कैसे-
अदालत ने इस बात पर आपत्ति जताई कि कैसे एक राहगीर वाहन चालक को गिरफ्तार किया गया, जिसका प्रथम दृष्टया बाढ़ या मौतों में कोई योगदान नहीं था।
जस्टिस मनमोहन ने कहा, सड़क से गुजर रहे एक व्यक्ति को कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है ? यह उचित नहीं है। इस स्थिति में किसी को माफी मांगनी चाहिए। पुलिस का सम्मान तब होता है जब आप अपराधी को गिरफ्तार करते हैं और निर्दोष को छोड़ देते हैं। अगर आप निर्दोष को गिरफ्तार करते हैं और दोषी को छोड़ देते हैं, तो यह बहुत दुखद होता है। दिल्ली पुलिस के वकील ने कहा, अगर ऐसी धारणा बन रही है तो हम माफी मांगते हैं।
पुलिस ने समय बरबाद किया-
अदालत ने कहा कृपया वैज्ञानिक तरीके से जांच करें, किसी तरह के तनाव में न आएं। अदालत ने पूछा कि क्या पुलिस ने एक भी एमसीडी अधिकारी को बुलाया है। एमसीडी के एक भी अधिकारी का नाम बताएं, जिसे आपने बुलाया हो। आपने एक भी कर्मचारी को नहीं बुलाया। मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि आपने कीमती समय बरबाद कर दिया। भगवान जाने उन फाइलों का क्या हो रहा है।
बेकसूर को जमानत-
इससे पहले एडिशनल सेशन जज राकेश कुमार की अदालत ने एक अगस्त को मनुज कथूरिया( एसयूवी फोर्स गुरखा के ड्राइवर) को जमानत दे दी थी। पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि उन्होंने कथूरिया के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का कठोर आरोप हटाने का फैसला किया है। हालांकि इसके पहले पुलिस ने निचली अदालत में जमानत का विरोध किया था।
27 जुलाई को जिस दिन राऊ की लाइब्रेरी में तीन छात्रों की मौत हुई थी, उसी दिन वहां से मनुज कथूरिया अपनी गाड़ी लेकर गुजर रहे थे। पुलिस ने उन्हें इसलिए गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उनके वहां से गुजरने के बाद बेसमेंट में पानी भरा था।
इस पर पहले भी दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की खिंचाई की थी। 31 जुलाई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली पुलिस उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर रही है जो वहां से गाड़ी लेकर गुजरा था, लेकिन वो नगर निगम के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। हाई कोर्ट ने सवाल उठाया था कि दिल्ली पुलिस कर क्या रही है, क्या उसका संतुलन बिगड़ गया है?
(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं।)